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कुछ न्यूरॉन दिमाग तक अलग तरह से भी पहुंचाते हैं संकेत    - अनुसंधान कर रहे वैज्ञानिक हुए हैरान

कुछ न्यूरॉन दिमाग तक अलग तरह से भी पहुंचाते हैं संकेत    - अनुसंधान कर रहे वैज्ञानिक हुए हैरान

नई दिल्ली । अभी तक वैज्ञानिकों लगता था कि हमारी आखों और दिमाग के बीच संचार का एक ही तरीका था। लेकिन नए शोध से पता चला है कि हमारी आंखों की रेटीना के कुछ न्यूरॉन दिमाग तक संकेत अलग तरह से भी पहुंचाते हैं। नॉर्थवेस्टर्स यूनिवर्सिटी में हुए इस शोध में पाया गया है कि रेटिना के कुछ न्यूरॉन दिमाग में आमतौर पर भेजी जाने वाली उत्तेजनाकारी संकेत के अलावा दमनकारी संकेत भी भेजते हैं। आमतौर पर आंखें उत्तेजनाकारी संकेत ही मस्तिष्क को भेजती हैं। अभी तक यही माना जाता था कि वे केवल उत्तेजनकारी संकेत ही भेजती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि इन रेटिना के न्यूरॉन की हमारे अवचेतन बर्ताव में भी भूमिका होती है। ये हमारी बॉडी क्लॉक यानि कि शारीरिक घड़ी पर भी असर डालते हैं जो दिन और रात के मुताबिक इंसान की आंखो का बर्ताव तय करती हैं। ये न्यूरॉन तेज रोशनी में आंख की पुतलियों के सिकुड़ने का हमारी उस आंतरिक घड़ी के तालमेल में भी सामन्वय करती हैं। 
इस शोध से शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि वे रोशनी से इंसान के व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव को समझ सकेंगे। नॉर्थवेस्टर्न की प्रमुख शोधकर्ता टिफनी शिमिड ने कहा कि ये दमनकारी संकेत हमारी आंतरिक घड़ी या बॉडी क्लॉक जिसे सर्केडिअन क्लॉक भी कहते हैं, को कम रोशनी के हिसाब से बदलने से रोकती हैं। ये हमारी पुतलियों को भी कम रोशनी में सिकुड़ने से रोकती है। जबकि ये दोनों ही बदलाव हमारे दिखने की क्षमता के हिसाब से दिन की रोशनी में होते रहते हैं। टिफनी ने कहा, “हमें लगता है कि हमारे नतीजे हमें यह समझने में मदद करेंगे कि हमारी आंखें क्यों रोशनी के प्रति इतनी ज्यादा संवदेनशील हैं, जबकि हमारे अवचेतन व्यवहार तुलनात्मक रूप से रोशनी के प्रति असंवेदनशील हैं।” टिफ्नी नॉर्थेवस्टर्न यूनिवर्सिटी के वेइनबर्ग कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस में न्यूरोबायोलॉजी की एसिस्टेंट प्रोफेसर हैं। टिफनी की टीम ने चूहे के रेटीना के न्यूरॉन का अध्ययन किया। उन्होंने इन न्यूरॉन का कार्य रोककर दमनकारी संकेतों का अध्ययन किया। 
संकेत रुक जाने की स्थिति में कम रोशनी चूहे की आंतरिक घड़ी में असरदार बदलाव करने में सफल रही है। इसका मतलब था कि आंख से एक संकेत जाता है जो आंतरिक घड़ी में बदलाव को रोकने की भूमिका निभाते हैं खास कर जब वातावरण की रोशनी प्रत्याशित रूप से बदलती है। हमारा शरीर भी यही चाहता है कि छोटे मोटे रोशनी के बदलावों के कारण हमारी आंतरिक घड़ी बदलाव न करे। टीम ने यही पाया कि जब दमनकारी संकेत आंखों से जाने से रोक दिए जाते हैं तो चूहे की आंख कि पुतलियां रोशनी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह व्यवस्था पुतलियों को कम रोशनी में सिकुड़ने से रोकती है। इससे हमारी आंखों के परदे पर ज्यादा रोशनी आती है। और हम कम रोशनी वाले हालातों में आसानी से देख पाते हैं। यही वजह है कि हमारी पुतलियां तब तक सिकुड़ना शुरू नहीं करतीं जब तक रोशनी बहुत तेज नहीं हो जाती। हमारे शरीर की जटिलताएं इतनी ज्यादा है कि वे आए दिन हमारे वैज्ञानिकों को चौंकाती रहती है। इस बार वैज्ञानिकों को चौंकाने का काम आंखों ने किया है।
 

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