भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश को लेकर बहुत चर्चा है। उन्होंने राष्ट्र से यह कहा है कि लोकल के लिए वोकल बनें। नरेंद्र मोदी का विचार स्वागत योग्य है कि हमें आत्म निर्भर बनना चाहिए।उनका लोकल के लिए वोकल बनें की अपील का यही सन्दर्भ है। विशेष कर चीनी माल इन दिनों भारत ही नहीं दुनिया में बहुत चल रहा है।यह सस्ता होने के कारण अधिक चल रहा है।लोग कहते हैं चीन में मजदूरी सस्ती है ।यह बात समझ में नहीं आती है। कम्युनिज्म का मूल सिद्धांत मजदूरों के शोषण के खिलाफ है। क्या चीन में मजदूरों का शोषण हो रहा है?
कोरोना के संबन्ध में दो तरह के विचार सामने आ रहे हैं। एक ओर वे आशावादी लोग हैं जो यह मान कर चलते हैं,यह बीमारी नियंत्रण में है , इसके संक्रमण मे धीरे धीरे कमी हो रही है और.कुछ माह में यह.घातक रोग समाप्त. हो जाएगा तथा. इसका रोग प्रतिबंधक टीका तैयार हो जाएगा । दूसरी ओर वे लोग हैं जो यह मानते हैं घातक बीमारी
.जल्दी बिदा होने वाली नहीं है और हमें इसके साथ रहने की आदत डालनी होगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बाद भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी यह मत अभिव्यक्त किया है । अनेक लोग इस विचार के हैं । रतन टाटा जैसे अग्रणी उद्योगपति का नाम इस संबंध में उल्लेखनीय है। उन्होंने अपने हम.पेशेवर मित्रों से कहा है कि वर्ष २०२० किसी तरह जीवित रहने का काल खंड है। जब रतन टाटा जैसे उद्योगपति का यह हाल है तो बाकी उद्योगपति और व्यापारियों की मन:स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
वैसे यह रोग डरावना स्वरूप धारण करता जा रहा है। रोग के आंकडे प्रतिदिन चिंता के कारण बन रहे हैं।
ताजे आंकड़े यह बताते हैं कि भारत का स्थान कोरोना से प्रभावित देशों में पांचवां है जबकि एक माह पूर्व तक हमारा देश इस बीमारी से प्रभावित पहले बीस देशों में भी नहीं था। अमेरिका का स्थान पहला है लेकिन रोग की वृद्धि दर में कमी हुई है। भारत की वृद्धि दर कई देशों से अधिक है। यह स्थिति चिंताजनक है। महाराष्ट्र का पहला नम्बर बना हुआ है। इस प्रदेश ने दुनिया के कई अन्य देशों को इस मामले में पीछे छोड़ दिया है। अहमदाबाद में तो स्थिति इतनी खराब है कि वहां बीएसएफ को भी बुलाना पड़ा है।वास्तव में गुजरात में हालात नियंत्रण के बाहर हो गए हैं। आश्चर्य नहीं होगा यदि गुजरात महाराष्ट्र को भी पीछे छोड़ दे। कुल मिलाकर भारत में कोरोना का संकट बढ़ता जा रहा है ।यह चिंता जनक है।
कोरोनावायरस से बड़ा संकट हमारे सामने है ।यह है रोजगार और विश्वास का संकट। भारत में रोजगार कभी संतोष जनक नहीं रहा। लेकिन देश का काम किसी तरह से चल रहा था। इस बीमारी ने विश्वास का संकट भी पैदा कर दिया है । पहले मिल मालिकों और मजदूरों में परस्पर समन्वय था जो अब समाप्त हो गया हैं ।
इसी प्रकार खेतिहर मजदूरोंऔर किसान का समन्वय समाप्तप्राय है। यह समन्वय या आपसी विश्वास , समझदारी मिटने के दुष्परिणाम सामने आयेंगे। यदि कुछ किसान खेती में परिवर्तन करें, परंपरागत उपज को छोड़ कर ऐसी फसल लेना चाहें जिसमें उनकी निर्भरता खेतिहर मजदूरों पर कम हो तो इसमें अचरज नहीं होना चाहिए।वास्तव में भारतीय समाज का ताना बाना कोरोना के खतरे ने बदल दिया है।
इसी प्रकार की हालात प्रिन्ट मीडिया की है । अखबारों की प्रसार संख्या में कमी नहीं है लेकिन उनकी पृष्ठ संख्या कम हो गई है।इसका प्रभाव कई लोगों की नौकरी पर पड़ा है । इनमें श्रमजीवी पत्रकार भी हैं और दूसरे श्रमिक भी हैं। भारत में रोजगार बड़ी समस्या है।यह प्रतिपक्ष का बड़ा मुद्दा है।यह समस्या सुलझाना सरकार का काम है ।
अखिल भारतीय मेडिकल संस्थान के डायरेक्टर डा, गुलेरिया ने यह चेतावनी दी है कि जून -जुलाई माहों में कोरोनावायरस के प्रकरण चरम की स्थिति में होंगे । अर्थात.इन माहों में इस रोग का प्रकोप सर्वाधिक होगा । इस संबंध में सरकार को अभी से तैयारी करना होगी।
इस संबंंध.में समस्याओं की सूची लम्बी है। अर्थव्यवस्था को सम्हालना भी होगा । एक अनुमान के अनुसार दुनिया मेंं लगभग डेढ़ सौ करोड़ लोग बेरोजगार होंगे। भारत में रोजगार खोने वाले लोगों की संख्या का अन्दाज इससे
लगाया जा सकता है।
इस बीमारी का घातक असर और लगभग दो माह.चले लाकडाउन ने अवसाद तथा अज्ञात मानसिक भय की परिस्थित पैदा की हैं ।क्या देश में इतने मनोवैज्ञानिक उपलब्ध हैं जो इसका समुचित उपचार कर सकें ।
पहले ही.लिखा है जा चुका है कि करोना के कारण उत्पन्न समस्याओं की सूची लम्बी है।
(लेखक -हर्ष वर्धन पाठक)
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आत्म निर्भर भारत और विदशी माल का बहिष्कार