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(कविता) हे राम 

(कविता) हे राम 

कितने भोले हो राम तुम
सहज प्रसन्न हो जाते हो
जो भी मांगता है तुमसे
उसे वही तुम दे देते हो
अवतार रूप में आकर
हर एक का उद्धार किया
सनातन रक्षा की खातिर
रावण का संहार किया
वचन दिया जो भी आपने
उसे हर हाल में निभाया है
वचन के लिए छोड़ा राज
वनवास को गले लगाया है
जिनको दिया रामराज्य
उन्ही ने प्रश्न उठाया है
पवित्रता की देवी सीता को
अकारण वन भिजवाया है
अवतारी होकर भी तुमको
सुखचैन नही मिल पाया है
जब भी अवसर मिला जिसे
लाभ तुमसे उठाया है
इस कलियुग में देखा मैंने
नाम तुम्हारा भुनाया गया
सत्ता पाने को बार बार 
नाम तुम्हारा पुकारा गया
ताले में बंद रहना पड़ा तो
तिरपाल ही आशियाना थी
भक्तो के बजाए खाकी वर्दी
आपका एक सहारा थी
भला हो राजीव गांधी का
जिसने ताले खुलवाये थे
आपके साक्षात दर्शन
आम जनता को कराये थे
मंदिर बनाने को आपका
दिलई बहुतो की इच्छा थी
 कुछ के लिए आपके नाम से
कुर्सी पाने की चाहत बनी
आपके नाम की शक्ति का
कई बार चमत्कार हुआ
आपके नाम पर कई बार
कुर्सी का सपना साकार हुआ
कुर्सी पाकर हर बार वे तो
राम नाम भूल जाते थे
जब भी कोई सवाल उठता
कोर्ट का बहाना बनाते थे
जगत स्वामी को न्याय न मिले
ऐसा कैसे हो सकता था
तारीख पर तारीख चलती रहे
कब तक ऐसा हो सकता था
बिना राजनीतिक लाभ दिए
निष्पक्षता का निर्णय आया
सर्वोच्च न्यायालय के हाथों
मंदिर निर्माण का फैंसला आया
सच है राम तुम्हारी लीला
कभी कोई जान न पाया है
तुम हो भक्तो के स्वामी
भक्त ही तुम्हारी रियाया है।
(लेखक-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)
 

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