मेगास्टर अमिताभ बच्चन की बढ़ती उम्र भी उनके काम करने के हौसले को कम नहीं कर पा रही है। इसके साथ ही वह सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं। उनकी हाल ही में बदला फिल्म रिलीज हुई थी। इसका निर्देशन सुजोय घोष ने किया था। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई है। इसमें उनके अलावा तापसी पन्नू और मानव कौल ने मुख्य किरदार निभाया था। यह फिल्म स्पैनिश सस्पेंस-थ्रिलर फिल्म द इनविजिबल गेस्ट की हिंदी रीमेक थी।
इसके अलावा अमिताभ बच्चन अयान मुखर्जी के निर्देशन में बन रही फिल्म ब्रह्मास्त्र में भी नजर आएंगे।
फिल्मों में आने के पहले भी अमिताभ ने संघर्ष किया। फिल्मों में आने के बाद उनकी संघर्ष की राह और कठिन हो गई। उन्होंने जो फिल्में की वे बुरी तरह फ्लॉप हो गईं। कई लोगों ने उन्हें घर लौट जाने की या कवि बनने की सलाह भी दे डाली। ‘जंजीर’ के हिट होने के पहले तक उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। जंजीर के बाद क्या हुआ यह सभी जानते हैं।
उन दिनों ख्वाजा अहमद अब्बास सात हिन्दुस्तानी फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे थे। इन सात में एक मुस्लिम युवक का रोल अमिताभ को प्राप्त हुआ। 1969 में जब अमिताभ की यह पहली फिल्म (सात हिन्दुस्तानी) दिल्ली के शीला सिनेमा में रिलीज हुई, तब अमिताभ ने पहले दिन अपने माता-पिता के साथ इसे देखा। उस समय अमिताभ जैसलमेर में सुनील दत्त की फिल्म रेशमा और शेरा की शूटिंग से छुट्टी लेकर सिर्फ इस फिल्म को देखने दिल्ली आए थे। उस दिन वे अपने पिता के ही कपड़े कुर्ता-पाजामा शॉल पहनकर सिनेमा देखने गए थे, क्योंकि उनका सामान जैसलमेर और मुंबई में था। इसी शीला सिनेमा में कॉलेज से तड़ी मारकर उन्होंने कई फिल्में देखी थीं। उस दिन वे खुद की फिल्म देख रहे थे।
अब्बास साहब अपने ढंग के निराले फिल्मकार थे। उन्होंने कभी कमर्शियल सिनेमा नहीं बनाया। उनकी फिल्मों में कोई न कोई सीख अवश्य होती थी। यह फिल्म चली नहीं, लेकिन प्रदर्शित हुई, यही बड़ी बात थी। रिलीज होने से पहले मीनाकुमारी ने इस फिल्म को देखा था। अब्बास साहब मीनाकुमारी का बहुत आदर करते थे। वे अपनी हर फिल्म के ट्रायल शो में उन्हें जरूर बुलाते थे। वे उनकी सर्वप्रथम टीकाकार थीं। ट्रायल शो में मीनाकुमारी ने अमिताभ के काम की तारीफ की थी।
संघर्ष के दिनों में अमिताभ को मॉडलिंग के ऑफर मिल रहे थे, लेकिन इस काम में उनकी कोई रुचि नहीं थी। जलाल आगा ने एक विज्ञापन कंपनी खोल रखी थी, जो विविध भारती के लिए विज्ञापन बनाती थी। जलाल, अमिताभ को वर्ली के एक छोटे से रेकॉर्डिंग सेंटर में ले जाते थे और एक-दो मिनट के विज्ञापनों में वे अमिताभ की आवाज का उपयोग किया करते थे। प्रति प्रोग्राम पचास रुपए मिल जाते थे। उस दौर में इतनी-सी रकम भी पर्याप्त होती थी, क्योंकि काफी सस्ता जमाना था। वर्ली की सिटी बेकरी में आधी रात के समय टूटे-फूटे बिस्कुट आधे दाम में मिल जाते थे। अमिताभ ने इस तरह कई बार रातभर खुले रहने वाले कैम्पस कॉर्नर के रेस्तराओं में टोस्ट खाकर दिन गुजारे और सुबह फिर काम की खोज शुरू।
एंटरटेनमेंट
बढ़ती उम्र में भी बॉलीवुड में जमे हैं अमिताभ