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जीवन जीने की रिवायत का नाम है रमज़ान 

जीवन जीने की रिवायत का नाम है रमज़ान 

कोरोना के खौफ से दूर इबादत का महीना रमज़ान लोगों को खुदा से अपनी दुआओं को कुबूल कराने का बेहतरीन मौका देता है। कोरोना की महामारी से हर आंख नम है, इसलिए दुनियाभर के मुसलमान अल्लाह से मानव जाति पर आये इस संकट को दूर करने और दुनिया की सेहत वा सलामती के लिए रब को राज़ी करने की दुआएं मांग रहे हैं। रमज़ान के महीने में अल्लाह अपने बन्दों की सिदद्त से मांगी गयी दुआ को जरूर कुबूल करता है। रमज़ान हिज़री संवत के साल का नौवा माह और सभी महीनों का सरदार कहा गया है। इसकी फ़जीलत बरकत और नेकी देने वाली हैं। अल्लाह की तरफ से बन्दों पर रहमत की बारिस की जाती है, जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते है। अल्लाह की बन्दों पर रहमत नाजिल होती है। रोजा इस्लाम की पांच बुनियादों में से एक है। रमज़ान के महीने में दुनियाभर के मुसलमान पूरे माह के रोजा रखते है। कहते हैं, रोजा हर बालिग इंसान पर फर्ज है, हालांकि अल्लाह ने बीमारी और कुछ जरूरी हालात में सहूलियत भी दी हैं। रोज़ा लोगों को प्रेम, दया, करूणा, क्षमा, सहयोग, सहानूभूति, मानवता और आत्मीयता की सीख देता है। लोगों को शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ जीवन जीने की रिवायत की भी ताकीद करता है।  
   रमज़ान में रोजे की धार्मिक फज़ीलते तो बेशुमार है, साथ ही विज्ञान की नज़र इसे मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी मानती है। विज्ञान कहता है कि साल में एक माह का उपवास शरीर से कई तरह की गन्दगी को बाहर निकालने में मदद करता है, यह शरीर और दिमाग दोनों के लिए सेहतमंद है। रोजा भूख, प्यास, सहनशीलता, सहयोग और समर्पण से तालमेल बैठाकर मानवता की कडी को मजबूती प्रदान करता है। रमज़ान में रोजा व्यक्ति को संयमित जीवन शैली, लोगों की गरीबी-भूख को स्वयं महसूस कराने के साथ समाजकल्याण की भावना को पेरित करने का बेहतरीन तरीका है। रमज़ान खुद भूखे-प्यासे रहकर उन लोगों की तकलीफ को समझने के सिद्धान्त पर आधारित है, जिनके पास जीवन गुजारने के सीमित साधन भी नहीं है। आज दुनिया कोरोना के मुश्किल दौर से गुजर रही है ऐसे में रमज़ान जरूरतमंदों की मदद करने का बेहतरीन जरिया बनकर आया है। कोरोना संकट के इस मुश्किल दौर में दुनिया का बजट फेल होने की कगार में है। गरीबों के चूल्हे ठंडे पडे हुए हैं, ऐसे में हर मुसलमान का अपनी अफतार और सेहरी के पकवानों का एक हिस्सा गरीबों की मदद करने की कोशिशों में शामिल करना, खुदा को राजी करने की दिशा में मददगार साबित होगा। मानव सेवा से अल्लाह खुश होता है। रमज़ान में हर जरूरतमंद का ख्याल रखा जाता है, ताकि कोई भूखा न सोये, सबके पास ईद में नये कपडे हो, पैरों में चप्पल-जूते हो, हर किसी के पास ईद की तैयारियों के पुख्ता इन्तेजाम हो कोई बच्चा उदास न हो कोई बूढा परेशान न हो, सबके घर खाने का भरपूर सामान हो, इसका ख्याल रखना हर व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी रहती है। तो क्या हुआ ? अगर इस बार थोडी अपनी जरूरते कम पूरी होगीं, मुश्किल का दौर है ये भी गुजर जाएगा। थोडा समझदारी से खर्च करके इस रमज़ान ज्यादा लोगों की मदद की जा सकती है। यदि ज्यादा तादाद में लोगों की भूख-प्यास की तकलीफे दूर की जाए तो यह कोरोना से लोगों की मुश्किलों को थोडा कम भी करेगा और अल्लाह को राजी करने का बेहतरीन जरिया भी साबित होगा।  
कोरोना महामारी से आज दुनिया परेशान है ऐसे में हमारी प्राथमिकता मानवता की मदद करने की होनी चाहिए। रमज़ान में इफतार कराना बहुत पुन्य का काम है। लोग अपने घरों से ढेरों पकवान बनाकर मस्जिदों के दस्तरखान सजाते हैं, ताकि सब अमीर और गरीब अल्लाह के घर में साथ-साथ बैठकर अफतार करे, लेकिन कोरोना के साये में ऐसा करना संभव नहीं है, क्योंकि सभी धार्मिक स्थल बन्द हैं। लोग अपने घरों में कैद है,सम्पूर्ण मानव जाति को कोरोना से बचाने का यही एक रास्ता है, सामाजिक दूरी बनाये रखना। हज़रत मोहम्मद साहब का मानना है कि अल्लाह बन्दे की नियत देखता, व्यक्ति की अकीदत अफ़तार की है तो वह एक खजूर से भी अफ़तार करा सकता है। मुश्किल के इस दौर में हज़रत मोहम्मद साहब की बातों से सबक लेने की जरूरत है, आप अपने से पहले अपने पडोसियों का ख्याल रखते थे। सबकी तकलीफों को दूर करते थे। कोरोना एक दूसरे से संपर्क होने पर तेजी से फैलता है। ऐसे में जरूरत है कि किसी को तकलीफ न हो। साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें, हज़रत मोहम्मद साहब बाहर जाने या घर वापस आने, रात में सोने से पहले, सुबह उठने के बाद वुजू बनाने की हिदायत करते थे। “हदीश बुखारी 6311,मुस्लिम-2710“ उनका कहना है कि लोगों को आम रास्तों, छायादार जगहों, सार्वजनिक स्थलों पर, नदी-तालाबों पर जहां लोग नहाते हो थूकना नहीं चाहिए ऐसा करना ईमान के खिलाफ है। लोगों को परेशानियों में डालने वाला है। “हदीश अबू दउद 26“। कोरोना के माहौल में रमज़ान का महीना और भी खास है, ज्यादा इबादत और ज्यादा दुआओं की कसरत के साथ मानवता और समाजिक सहयोग का ढ़ांचा मजबूत करने का प्रयास करने वाला है। रोजा शरीर, मन और रूह की साफ़-सफाई पर बहुत अहमियत देता है। इस्लाम में इबादत पाकीज़गी से करने की हिदायत है। पाकीजगी साफ-सफाई धार्मिकस्थलों, घरों से लेकर शरीर और रूह की भी होनी चाहिए। कुरान शरीफ में पाक-साफ रहने की हिदायत है-“बेशक खुदा तौबा करने वालों को और पाक-साफ रहने वालों को पसंद करता है।“ “कुरआन सूरा-2 बकरा, आयत 222“ हज़रत मोहम्मद साहब कहते हैं कि “ईमान वाला कभी नापाक नहीं रहता“ “ हदीस:बुखारी-285 मुस्लिम 371“ उनका मानना है कि स्वच्छता साफ-सफाई आधा ईमान है। इसलिए रमज़ान के मौके पर लोग अपने घरों की साफ-सफाई का विशेश ध्यान रखते है, साथ ही रमज़ान शारीरिक और मानसिक बैर, गिला-शिकवा को दूर करने का भी बेहतरीन मौका होता है। 
रमज़ान का महीना सेवा, शांति, सहयोग का संदेश देता है। समाज के कल्याण हेतु प्रयास एवं राश्टृप्रेम की भावना का प्रसार करता है जो कि इस्लाम की प्राथमिकता है। हज़रत मोहम्मद साहब की शिक्शाओं में देशप्रेम सर्वोपरी है। इस रमज़ान करोड़ों हाथ खुदा की बारगाह में कोरोना से इस जंग में भारत की विजय कामना की दुआऐं मांगने में मशगूल हैं। अपने समाज, देश के कल्याण के लिए अल्लाह से दुआऐं मांगना, जकात देना, लोगों की मदद करना और खुदा का शुक्र अदा करना हर रोजेदार की इबादत का अहम हिस्सा है। आज दुनिया का हर शख्स परेशान है ऐसे में हमारी प्राथमिकता मानवता की मदद करने की होनी चाहिए। हमारे देश के डाक्टर, पुलिस, स्वयंसेवी, मीडिया और अंगिनत लोग कोरोना की जंग में अग्रिम पंक्ति के योद्धा बने हुए हैं, खुदा देश के इन रियल हीरों की हिफाजत करे। रमज़ान के इस पाक महीने में लाखों लोगों की दुआओं और बरकत से भारत इस महामारी से निज़ात का रास्ता जरूर निकालेगा। रमज़ान लोगों मे दया, प्रेम, मानवता की साख को मजबूती प्रदान करता है। लोगों की शारीरिक, मानसिक और रूहानी ताकत देने के साथ सेवाभाव से जीवन जीने की रिवायत सिखाता है। 
(लेखकडा. नाज. परवीन)

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