भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ को पक्षियों का राजा माना गया है लेकिन वे अपने स्वामी की सेवा में इतना व्यस्त रहते थे कि उन्हें पक्षियों का हालचाल जानने का समय ही नहीं मिल पाता था। एक दिन पक्षियों ने अपनी सभा बुलाई और इस बात पर विचार-विमर्श किया कि ऐसे राजा का क्या लाभ, जो कभी हमें देखने तक नहीं आता।
सभी ने काफी सोच-विचार कर उल्लू को राजा घोषित कर दिया। उल्लू के राजतिलक की तैयारी होने लगी, तभी एक कोने में बैठे कौवे ने चिल्लाते हुए कहा कि यह फैसला हमें मंजूर नहीं है। राजा गरुड़ को भले ही हमारे पास आने का समय न मिलता हो, लेकिन जब भी मौका मिलेगा वह अवश्य आएंगे। मगर उल्लू को राजा बनाने का क्या लाभ, जिसे दिन में दिखाई ही नहीं पड़ता।
वह हमारी परेशानियों को कैसे हल करेगा। वह दूसरों की बातें सुनकर फैसला करेगा जिसका परिणाम यह होगा कि चाटुकारों का बोलबाला हो जाएगा। किसी ने तर्प दिया कि उल्लू रात में देख सकते हैं इसलिए वह रात में हमारी समस्या सुलझा देंगे। कौवे ने कहा- ऐसा राजा मुझे मंजूर नहीं जो रात में आकर हमारी नींद हराम करे। फिर हम पक्षी रात में ठीक से देख नहीं पाते। हम पहचानेंगे कैसे कि उल्लू ही आया है।
इस बात का लाभ उठाकर कोई राक्षस उसकी जगह आ सकता है और हमें मारकर खा सकता है। पक्षियों ने मान लिया कि राजा ऐसा होना चाहिए, जिसे प्रजा के दुख-दर्द दिखाई तो पड़ें। अंत में गरुड़ को ही राजा बनाए रखने का फैसला किया गया।
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(चिंतन-मनन) कौन बने राजा