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सियासत में सोमरस की बहार 

सियासत में सोमरस की बहार 

कोरोना वायरस  का कहर मानव जाति पर पहाड़ बनकर टूटा हैं। कोरोना के तांडव से विश्व का कोई देश अछूता नहीं छूटा हैं। विश्वभर में लाखों की संख्या में लोग कोरोना के काल का ग्रास बन चुके हैं, कोरोना का कहर कब थमेगा,अनिश्चित है। कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण स्कूल कॉलेज, धार्मिक स्थल,यातायात,कारखाने, बाजार, व्यवसाय पूरी तरह से ठप्प हैं। कोरोना के आगे कई बलशाली देश धराशाही हो  गए हैं। हमारी सरकारों की टूटती रीढ़ को सोमरस का सहारा है। मझधार में अटकी सरकार की नैया को सोमरस ही किनारे लगाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संपूर्ण देश में डेढ़ माह पहले तालाबंदी कर 2 गज की शारीरिक दूरी और साफ -सफाई पर  जोर देते हुए आमजनता से सहयोग की अपील की थी। जनता  का भी भरपूर साथ मिलने का ही नतीजा है कि भारत में कोरोना का कहर तेजी से नहीं फैल पाया। तालाबंदी के तीसरे चरण में केंद्र सरकार द्वारा  राज्य सरकारों को कोरोना से निपटने के  लिए फैसला लेने की छूट दी तो अवसरवादी कुछ राज्य सरकारों ने कोरोना से निपटने के लिए आर्थिक दशा का रोना रोकर  शराब विक्रय की छूट देकर खस्ताहाली की पोल खोल दी। लगभग 40 दिन बाद जैसे ही शराब की दुकानें खुलने का फैसला कुछ राज्यों ने लिया तो सुरापान के शौकीनों ने जान जोखिम में डाल कड़- कड़ाती धूप में तीन- तीन किलोमीटर लंबी कतार लगाकर  सरकार की दीनता, दरिद्रता, दूर करने के भरसक प्रयास किये और सरकारी खजाने को सोमरस का पान कर  हरा-भरा कर दिया। पहले ही दिन रिकॉर्ड शराब बिकीं। शराब और सियासत की जंग में सियासत को शिकस्त खानी पड़ीl तालाबंदी के कारण शराब के शौकीनों ने शराब सेवन किये बिना 40 दिन बीता दिए लेकिन सरकारों का शराब बेचे बिना 1 दिन भी चल पाना दूभर हो गया और ठेके खुलते ही हर व्यक्ति ने कई-कई बोतल शराब खरीदी  2 गज की शरीरिक दूरी हवा हो गई। प्रश्न यह है कि क्या  राज्य सरकारें इन्हीं होनहार,पालनहार,शौकीनों के भरोसे कोरोना की जंग जीतेगी ? 
 अब बात करते है मध्यप्रदेश सरकार की आलम यह है कि प्रदेश के कई जिले तो पूरी तरह से तालाबंदी है ओर कुछ जिलों में किराना, दूध, सब्जी,ओर अन्य दैनिक उपयोगी वस्तुओं के लिए अमूमन 1दिन छोड़कर या दिन में लगभग 6 घण्टे कि छुट दी जा रही है। जिले के कलेक्टरों को समय सारणी बनाकर कोरोना से जंग लड़ने के  लिए  फ्री हैंड किया गया है, लेकिन सरकार का दौहरा चरित्र तब सामने आ गया जब  शराब की दुकानों का संचालन करने के लिए राज्य सरकार ने प्रतिदिन 12 घण्टे की समय सारणी निर्धारित की और जिलेभर  के कलेक्टरों को समय सारणी में किसी भी तरह का बदलाव ना करने का तुगलकी फरमान जारी कर दिया। दिल्ली में तो शराब विक्रय पर कोरोना से जंग के लिए बकायदा  फीस वसूली जा रही  है तो किसी राज्य में यह फैसला सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है। शराब की  दुकानों पर 2 गज  की शारीरिक दूरी की धज्जियाँ उड़ रही है। ऐसे में कोरोना ने घर-घर दस्तक दे दी तो स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाएगा। सरकारी भूख के लिए शराब विक्रय की छूट देना डॉक्टर,स्वास्थ्य कर्मी, सफाईकर्मी, पुलिस, प्रशासन, मीडिया आदि जो रात-दिन अपनी सेवाएँ दे रहे हैं के गाल पर तमाचा हैं। सरकार को खजाना भरने ओर कोरोना से लड़ने के लिए एक विकल्प यह भी हो सकता था कि हमारे देश के लोग जो करोडों की संख्या में विदेशों में रहते हैं  से अपील कर आर्थिक सहायता लेनी चाहिए थी,  विशेषज्ञों से परामर्श लेकर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए मॉडल बनना चाहिए था, कई और भी रास्ते हो सकता थे, लेकिन शराब की दुकानें खोल देने का यह निर्णय बचकाना औऱ कोरोना को आमंत्रण देना हैं।  सरकारी भूख से ग्रस्त राज्यों को गुजरात, बिहार,मिजोरम, नागालैंड राज्यो की शराबबंदी से सीख लेना चाहिए की वे कैसे शराब बेचे बिना अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे है।
यह कहना अतिश्योक्ति नही होगा कि कोरोना की इस जंग में आम जनता अपना सब कुछ गंवाकर जीत गई लेकिन सरकारी भूख हार गई।     
(लेखक-दीपक अग्रवाल)

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