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आत्मनिर्भरता यानी सेल्फी  

आत्मनिर्भरता यानी सेल्फी  

लाक डाउन ने देश को आत्मनिर्भरता का  मोदी मन्त्र दिया है । सच है "स्वाबलंब की एक झलक पर न्यौछावर कुबेर का कोष " राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त की ये पंक्तियां सेल्फी फोटो कला के लिये प्रेरणा हैं  । ये और बात है कि कुछ दिल जले  कहते हैं कि सेल्फी आत्म मुग्धता को प्रतिबिंबित करती हैं  । ऐसे लोग यह भी कहते हैं कि सेल्फी मनुष्य के वर्तमान व्यस्त  एकाकीपन को दर्शाती है  । जिन्हें सेल्फी लेनी नही आती ऐसी प्रौढ़ पीढ़ी सेल्फी को आत्म प्रवंचना का प्रतीक बताकर अंगूर खट्टे हैं वाली कहानी को ही चरितार्थ करते दीखते हैं  ।  अपने एलबम को पलटता हूं तो नंगधुड़ंग नन्हें बचपन की उन श्वेत श्याम फोटो पर दृष्टि पड़ती हैं जिन्हें मेरी माँ या पिताजी ने आगफा कैमरे की सेल्युलर रील घुमा घुमा कर खींचा रहा होगा  । अपनी यादो में खिंचवाई गई पहली तस्वीर में मैं गोल मटोल सा हूं , और शहर के स्टूडियो के मालिक और प्रोफेशनल फोटोग्राफर कम शूट डायरेक्टर लड़के ने घर पर आकर , चादर का बैकग्राउंड बनवाकर सैट तैयार करवाया था , हमारी फेमली फोटोग्राफ के साथ ही मेरी कुछ सोलो फोटो भी खिंची थीं  । मुझे हिदायत दी थी कि मैं कैमरे के लैंस में देखूं , वहाँ से चिड़िया निकलने वाली है  । घर के कम्पाउंड में वह जगह चुनी गई थी जिससे सूरज की रोशनी मुझ पर पड़े  और पिताजी के इकलौते बेटे का  बढ़िया सा फोटो बन सके  । फोटो अच्छा ही है , क्योकि वह फ्रेम करवाया गया और बड़े सालों तक हमारे ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाता रहा  ।अब वह फोटो मेरी पत्नी और बच्चो के लिये आर्काईव महत्व का बन चुका है  ।  यादो के एलबम को और पलटें तो स्कूल , कालेज के वे ग्रुप फोटो मिलते हैं जिन्हें हार्ड दफ्ती पर माउंट करके नीचे नाम लिखे होते थे कि बायें से दायें कौन कहां खड़ा है  । मानीतर होने के नाते मैं मास्साब के बाजू में सामने की पंक्ति पर ही सेंटर फारवार्ड पोजीशन पर मौजूद जरूर हूं पर यदि नाम न लिखा हो तो शायद खुद को भी आज पहचानना कठिन हो  । वैसे सच तो यह है कि मरते दम तक हम खुद को कहाँ पहचान पाते हैं , प्याज के छिलको या कहें गिरगिटान की तरह हर मौके पर अलग रंग रूप के साथ हम खुद को बदलते रहते हैं  । आफिस के खुर्राट अधिकारी भी बीबी और बास के सामने दुम दबाते नजर आते हैं  । शादी में जयमाला की रस्मो के सूत्रधार फोटोग्राफर ही होते हैं वे चाहें तो गले में पड़ी हुई माला उतरवा कर फिर से डलवा दें  । शादी का हार गले में क्या पड़ता है , पत्नी जीवन भर शीशे में उतारकर फोटू खींचती रहती है ये और बात है कि वे फोटू दिखती नही जीवन शैली में ढ़ल जाती हैं  ।   कालेज के दिन वे दिन होते हैं जब आसमान भी लिमिट नही होता  । अपने कालेज के दिनो में हम स्टडी ट्रिप पर दक्षिण भारत गये थे  । ऊटी के बाटनिकल गार्डेन के सामने खिंचवाई गई उस फोटो का जिक्र जरूरी लगता है जिसे निगेटिव प्लेट पर काले कपड़े से ढ़ांक कर बड़े से ट्रिपाईड पर लगे  कैमरे के सामने लगे ढ़क्ककन को हटाकर खींचा गया था , और फिर केमिकल ट्रे में धोकर कोई घंटे भर में तैयार कर हमें सुलभ करवा दिया गया था  । कालेज के दिनो में हम फोटो ग्राफी क्लब के मेंम्बर रहे हैं  । डार्क रूम में लाल लाइट के जीरो वाट बल्ब की रोशनी में हमने सिल्वर नाइत्रेट के सोल्यूशन में सधे हाथो से सैल्युलर फिल्में धोई और याशिका कैमरे में डाली हैं  । आज भी वे निगेटिव हमारे पास सुरक्षित हैं , पर शायद ही उनसे अब फोटो बनवाने की दूकाने हों  ।  डिजिटल टेक्नीक की क्रांति नई सदी में आई  । पिछली सदी के अंत में तस्करी से आये जापानी आटोमेटिक टाइमर कैमरे को सामने सैट करके रख कर मिनिट भर के निश्चित समय के भीतर कैमरे के सम्मुख पोज बनाकर सेल्फी हमने खींची है , पर तब उस फोटो को सेल्फी कहने का प्रचलन नहीं था  । सेल्फी शब्द की उत्पत्ति मोबाइल में कैमरो के कारण हुई  । यूं तो मोबाईल बाते करने के लिये होता है पर इंटनेट , रिकार्डिग सुविधा , और बढ़िया कैमरे के चलते अब हर हाथ में मोबाईल , कम्प्यूटर से कहीं बढ़कर बन चुके हैं  । जब हाथ में मोबाईल हो , फोटोग्राफिक सिचुएशन हो , सिचुएसन न भी हो तो खुद अपना चेहरा किसे बुरा दिखता है  ।  ग्रुप फोटो में भी लोग अपना ही चेहरा ज्यादा देखते हैं  । हर्रा लगे न फिटकरी रंग चोखा आये की शैली में सेल्फी खींचो और डाल दो इंस्टाग्राम या फेसबुक पर लाईक ही लाईक बटोर लो  । अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ साधन हैं सेल्फी  । मेरे फेसबुक डाटा बताते हैं कि मेरी नजर में मेरे अच्छे से अच्छे व्यंग को भी उतने लाइक नही मिलते जितने मेरी खराब से खराब प्रोफाइल पिक को लोड करते ही मिल जाते हैं  । शायद पढ़ने का समय नही
लगाना पड़ता , नजर मारो और लाइक करो इसलिये  । शायद इस भावना से भी कि सामने वाला  भी लाइक रेसीप्रोकेट करेगा  । यूं लड़कियो को यह प्रकृति प्रदत्त सुविधा है कि वे किसी को लाइक करें न करें उनकी फोटो हर कोई लाइक करता है  ।  सेल्फी से ही रायल जमाने के तैल चित्र बनवाने के मजे लेने हो तो अब आपको घंटो एक ही पोज पर चित्रकार के सामने स्थिर मुद्रा में बैठने की कतई जरूरत नहीं है  । प्रिज्मा जैसे साफ्टवेयर मोबाईल पर उपलब्ध हैं , सेल्फी लोड करिये और अपना राजसी तैल चित्र बना लीजीये वह भी अलग अलग स्टाइल में मिनटो में  ।  जब सस्ती सरल सुलभ सेल्फी टेक्नीक हर हाथ में हो तो उसके व्यवसायिक उपयोग केसे न हों  । कुछ इनोवेटिव एम बी ए पढ़े प्रोडक्ट मेनेजर्स ने उनके उत्पाद के साथ  सेल्फी लोड करने  पर पुरस्कार योजनायें भी बना डालीं  ।  कोई कचरे के साथ सेल्फी से हिट है तो कोई देश के विकास में योगदान दे रहा है योगासन की सेल्फी से,   तो अपनी ढ़ेर सी शुभकामनायें सभी सेल्फ़ीबाजो को  । सैल्फी युग में सब कुछ हो , भगवान से यही दुआ है कि हम सैल्फिश होने से बचें और खतरनाक सेल्फी लेते हुये  किसी पहाड़ की चोटी ,  बहुमंजिला इमारत , चलती ट्रेन , या बाइक पर स्टंट की सेल्फीलेते किसी की जान न जावें ।
(लेखक -विवेक रंजन श्रीवास्तव)
 

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