हमारे शरीर में रोग के दो स्थान होते हैं एक शरीर और दूसरा मन।दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं, यदि शरीर रुग्ण हो तो उसका प्रभाव मन पर पड़ता हैं और मन से रुग्ण होता हैं तो उसका प्रभाव शरीर पर भी पड़ता।अतः हम समझ नहीं पाते की यह मानसिक रोगी हैं या शारीरिक रोगी हैं।कारण मन के रोगी को समझना और उसका नामकरण कभी कभी कठिन होता हैं, उसके लिए आजकल मनोचिकित्सक या स्नायुरोग चिकित्सक की भूमिका महत्वपूर्ण होती हैं पर आयुर्वेद में भी इसका इलाज़ हैं,
चक्रवद भृमतो गात्रं भूमौ पतति सर्वदा,
भ्र्मरोग इति ज्ञेयो रजःपित्तानिलात्मकः।
भृम रोग में रोगी का शरीर मुख्यतः सर घूमता हैं, वह चक्कर खाकर भूमि पर बार बार गिरता हैं।इस रोग में रजोगुण और वात और पित्त का प्राधान्य रहता हैं।
इस रोग में मानसिक दोष रज और शारीरिक दोष वात और पित्त दोष रहते हैं इस अवश्था में तमोगुण की अल्पता से चेतना का नाश नहीं होता अतः रोगी शरीर और मष्तिष्क में होने वाली चक्कर की क्रिया का अनुभव भलीभांति करता हैं।वात और पित्त के कारण मतिविभ्रमता होती हैं।
सीजोफ्रेनिया के मरीज अपने परिवार, दवाओं और डॉक्टर सभी पर शक करते हैं। इसलिए ऐसे मरीजों का इलाज कुछ दशक पहले बहुत मुश्किल हुआ करता था। साथ ही इस बीमारी की दवाओं के दुष्प्रभाव बहुत अधिक थे। लेकिन अब समय और इलाज़ पूरी तरह बदल चुका है। महीने में एक इंग्जेशन लगाकर भी रोगी सामान्य लोगों की तरह जीवन जी सकता है...
सीजोफ्रेनिया एक जीर्ण रोग हैं । लेकिन इस बीमारी के मरीज खुद को बीमार नहीं मानते हैं। इस कारण दवाई खाने से और डॉक्टर के पास जाने से बचता है। इस स्थिति में मरीज की हालत और अधिक गंभीर होती जाती है। मरीज एक सामान्य जीवन जी सके इसके लिए उसके परिवार को अतिरिक्त प्रयास करने की आवश्यकता होती है..
बीमारी में ही छिपा है इसका ट्रीटमेंट बैरियर
-सीजोफ्रेनिया शक की बीमारी है तो मरीज अपने परिवार पर भी शक करता है। मरीज को लगता है कि मेरा परिवार ही मुझे मारना चाहता है। इसलिए डॉक्टर के पास लेजाकर मुझे ज़हर दिलाना चाहते हैं या दवाइयों के जरिए मारना चाहते हैं। ऐसी स्थिति सीजोफ्रेनिया के ज्यादातर मरीजों में देखने को मिलती है।
इलाज से जुड़ी मुश्किलें
-साइकॉलजिस्ट और सायकाइट्रिस्ट की कमी के चलते समय रहते रोगी को उचित चिकित्सा नहीं मिल पाती है। इस कारण रोग अपनी गंभीर अवस्था में पहुंच जाता है, जिसे बाद में दवाओं के साथ भी प्रबंध करना मुश्किल होता है।
-सीजोफ्रेनिया के इलाज में एक दूसरी दिक्कत यह है कि लोगों के बीच इस बीमारी को लेकर जागरूकता बहुत कम है। इस जानकारी को बढ़ाने के लिए ही हर साल वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से 'मेंटल हेल्थ अवेयरनेस वीक' मनाया जाता है और हर साल 24 मई को 'वर्ल्ड सीजोफ्रेनिया डे' के रूप में मनाया जाता है।
ट्रीटमेंट का मॉर्डन तरीका
-आज के वक्त में इलाज पहले की तुलना में काफी बेहतर हो चुका है। मॉर्डन मेडिसिन लेने के बाद उस तरह की दिक्कत नहीं देखने को नहीं मिलती है, जिस तरह की दिक्कत पुराने वक्त में सामने आया करती थीं।
-मॉडर्न टाइम में सीजोफ्रेनिया के मरीज को यदि सही समय पर इलाज़ दिलाया जाए तो वह सामान्य जीवन जी सकता है।
-पहले इस बीमारी के इलाज के दौरान मरीजों को नींद बहुत अधिक आती थी। इलाज भी आसानी से उपलब्ध नहीं था। लेकिन अब इलाज भी उपलब्ध है और दवाइयां खाने के बाद मरीज को बहुत नींद भी नहीं आती है। इससे व्यक्ति की कार्यक्षमता बनी रहती है।
-जो मरीज इस बीमारी के प्रारंभिक स्तर पर होते हैं, उन्हें यदि समय से दवाई और इलाज़ दिलाया जाए तो वे सामान्य व्यक्ति की तरह अपना करियर और सामान्य जीवन इंजॉय कर सकते हैं
खत्म हो गया दवाओं का दुष्प्रभाव
-अस्सी या नब्वे के दशक में जिन दवाओं से सीजोफ्रेनिया के मरीजों का इलाज किया जाता था, उन दवाओं का दुष्प्रभाव काफी गंभीर रूप में देखने को मिलता था। इनमें, शरीर का कोई अंग टेढ़ा हो जाना, हर समय कंपकपी आना, हर समय मुंह से लार टपकते रहना या दौरे पड़ जाना शामिल थे।
लेकिन आधुनिक चिकित्सा में इस तरह के साइड दुष्प्रभाव ना के बराबर होते हैं। यदि सही तरीके से इलाज़ लिया जाए तो कोई दूसरा व्यक्ति यह पहचान नहीं कर पाएगा कि सामनेवाला इंसान सीजोफ्रेनिया जैसी बीमारी से जूझ रहा है।
-क्योंकि सीजोफ्रेनिया के मरीजों को परिवार, दवाई और डॉक्टर पर शक रहता है। इसलिए आधुनिक चिकित्सा में इस तरह की टैबलेट्स भी हैं, जिन्हें पानी और खाने में घोलकर दिया जा सकता है। अगर इसमें भी दिक्कत हो तो मरीज को इंजेक्शन दिया जा सकता है, जिसका असर करीब एक महीने तक रहता है।
आयुर्वेद में अश्वगंधा, ब्राह्मी, शतावरी, मुलैठी को समान मात्रा में मिलाकरचूर्ण बनाकर ३ग्राम सुबह शाम पानी या दूध से लेना चाहिए।
मेध्य या ब्रेन टॉनिक के रूप में मण्डूकपर्णी, शंखपुष्पी का उपयोग किया जाता हैं।
निद्राजनन के लिए सर्पगंधा लाभकारी होता हैं
इसके अलावा, अश्वगंधारिष्ट, शंखपुष्पी सीरप भी उपयोगी हैं
ऐसे मरीज़ों के साथ सद्व्यवहार के साथ उसके भृम को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
(लेखक- डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
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