महाभारत के समय धृतराष्ट्र को संजय पूरा हाल सुनाने वाला था और उससे राजा धृतराष्ट्र जब गतिविधियां समझ रहे थे। पर हमारे देश के अलावा पूरे विश्व में संचार माध्यम, टी वी, प्रिंट मीडिया, ,मोबाइल आदि आदि हमारे राजाओं के पास उपलब्ध हैं और दिन रात उनमे रचे पचे हैं और वे नेत्र, कर्ण सहित हैं, मूक बधिर भी नहीं हैं उसके बाद भी देश के कर्णधारों तक कैसे उनकी करुण पुकार नहीं पहुँच पा रही हैं ऐसा लगता हैं की उनकी बुद्धि को काठ मार गया हो।
१८ दिन महाभारत चला और उसके बाद उस काल में विधवाओं की संख्या अनगिनित थी उसके बाद भी उनका लालन पालन हुआ होगा या किया गया होगा। अवश्य पर वर्तमान में महीनों से प्रवासी मजदूरों के पलायन की अकथनीय कहानियां सभी माध्यमों से प्रचारित की जा रही हैं और हमारे कर्णधार अंधे के साथ मूक बधिर हो गए। चुनाव के समय एक दिन में हेलीकाफ्टर से हज़ारो मील की यात्रा करके दसो रैलियां कर लेते थे, विपक्ष को कोसने के लिए गला नहीं सूखता था, गर्मी नहीं लगती थी और भूख प्यासे भागते थे जैसे कोई भिखारी अपना पेट भरने यहाँ वहां भागता फिरता हैं वैसे वोटों के लिए। पर आज महलों के अंदर बैठे कर्णधारों को मजदूरों के पलायन के समाचार देखने,सुनने और पढ़ने से न भूख लग रही हैं, गर्मी जरूर लग रही हैं और उनकी तपन से झुलस रहे हैं और गूंगे होकर बोल नहीं पा रहे और जैसे नेत्रहीन हो गए हो कुछ नहीं दिखाई दे रहा हो और उनकी भूख के कारण समानुभूति में स्वयं भूखे हैं। उपवास या अनशन कर रहे हो।
धन्य हैं वह राजा जो दूरदर्शिता को नज़रअंदाज़ कर खुद दृष्टिविहीन हो गए। जो दिन रात देश और विश्व के मंच पर दहाड़ते थे आज उनकी आवाज़ नहीं सुनाई दे रही हैं। क्या राजा इतना दुखी हो गया हैं दुखियों के दर्द से। झूठी लालसा देना घोर पाप हैं। हर जगह झूठ का सहारा लेने वाला क्या स्वयं आइना के सामने खड़ा हो पाता होगा।
राजा गुप्तचरी के द्वारा देश विदेश के हाल चाल जान लेता हैं पर अपने देश में हो रहे पलायन से बेफिक्र हैं, क्या उनके पास ऐसे दारुण दृश्यों के समाचार नहीं पहुंचते होंगे उसके बाद उपायहीन होना क्या दर्शाता हैं। ये लक्षण हृदयहीन राजा के होते हैं, वह मन में ही दुःख व्यक्त कर भी ले तो कौन जानेगा?
जो राजा असत्य बोलता हैं उसका क्या दुष्परिणाम होते हैं, ---
असत्यवादिनो विनश्यन्ति सर्वे गुणाः
असत्य बोलने वाले के समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं। इसकी पुष्टि रैभ्य ने भी हैं। इस समय बहुत अधिक धन की वर्षा की गयी और स्वाभाविक हैं उनका पालन समयानुसार और नियमानुसार होंगे, कारण होली में आग लगती हैं तो सावन में आग बुझाई जाती हैं,
किम तया गवा या न क्षरति क्षीरं न गर्भिणी वा।
उस गाय से क्या लाभ?जो न दूध देती हैं और न गर्भवती होती हैं?उसी प्रकार उस मानव के उपकार का क्या लाभ?जो न कि वर्तमान में प्रत्गुपकारकरता हैं और न भविष्य में।
करोड़ों प्रवासी मजदूरों के पलायन की करोड़ों आप बीतियाँ हैं जिनके वर्णन लिखने में स्याही सुख जाएंगी। कैसे गर्भवती स्त्रियां सैकड़ों मील इतनी गर्मी तपन में पैदल चल रही हैं स्वयं के साथ गर्भस्थ शिशु को ऐसी विषम परिस्थिति में ढोना भूखे लांघे, कंठ सुख रहे और पानी नहीं कोई साधन नहीं, अबोले बच्चे, बूढ़े, नवजवान, महिलाएं अपना कुछ गृहस्थी का सामान लेकर दिन रात सुनी सडकों पर रेल की पटरियों पर पशुओं से भी बुरी हालत में जा रहे हैं, उनकी इस विपत्ति में भी शोषण हो रहा, कितनो की मौत हो गयी और कितने दुर्घटना ग्रस्त हुए और शासन की झूठी दिलसाओं से बहक कर उनको यात्रा में पैसे वसूले जा रहे हैं।
एक तरफ खर्च में इतनी बारीकी और दूसरी तरफ ट्रम्प के दौरे पर करोड़ों रुपये खर्च किये गए कारण उससे प्रतिष्ठा मिली और इन बेचारे मजदूरों से क्या मिलता?क्या वर्तमान में जिस कुर्सी पर बैठे हैं उसमे क्या इन मजदूरों का योगदान नहीं हैं। भविष्य इन जख्मों को न भूले तो समझ में आएगा पद का महत्व या तिरस्कार।
गरीबों और सामान्यों के लिए सब नियम और स्वयं और मंत्री, संत्री, सचिवों और पदसम्पन्न के लिए अलग।
वर्तमान में जिस तरह का तिरस्कार और अमानवीयता दिखाई जा रही हैं उसका भविष्य बहुत ही भयावह होगा। बेचारे वक्त के मारे भाग रहे हैं अपनी जान बचाते पर यह मत भूले ये सामान्य मजदुर नहीं हैं ये कुशल, अनुभवी कारीगर हैं जिन्होंने वर्षों खून पसीना बहाकर देश की सम्पन्नता में नेताओ से अधिक योगदान दिया हैं, इसका प्रभाव जब देश सामान्य होगा तब कल कारखानों पर विपरीत प्रभाव बिना नहीं रहेगा।
आज उनका हाथकाटा गया हैं और पेट की आंतें सुख गयी हैं इतना दारुण दृश्य देखने से दिल दुखी होता हैं और जिसके ऊपर बीत रही हैं उनसे कौन पूछ रहा हैं।
ये पृष्ठ देश के इतिहास में कालिमा के दिन के रूप में माना जाएगा।
कर्णधार अपने मुंह मियां मिठ्ठू बन ले पर साँच को आंच नहीं हैं। ये जिन्दा प्रमाण हैं। इनका कोई इतिहास दर्ज़ नहीं होगा पर कहानी तो कही जाएगी।
लेखक - डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
आर्टिकल
हे धृतराष्ट्रों- अच्छा हुआ दृष्टि विहीन नहीं हो! प्रवासी मजदूरों का पलायन