मिले सफलता सबको
सभी यह दुआ कीजिए
सबको मिले सुख शान्ति
ऐसी चाहत कीजिए
तरक्की पर गैरो की जलना छोड
उन्हें शुभकामनाये दीजिए
कोई भूखा न रहे पडौस में
ऐसी जकात कीजिए
हर लम्हे पर रहे खुदा का नाम
ऐसा सजदा कीजिए
रमजान के बाद आई ईद
जरा स्वागत तो कीजिए
सभी को हो मुबारक
ईद की बधाई तो दीजिए।
देश दुनिया मे कोरोना महामारी के चलते ऐसा पहली बार हो रहा है कि ईद की नमाज के लिए न तो ईदगाह जा पाएंगे और न ही मस्जिदों में सभी को नमाज़ को मौका मिल पाएगा।इस बार एक दूसरे के घर जाकर भी ईद की मुबारकबाद नही दी जा सकेगी और न ही एक दूसरे के गले मिला जा सकेगा।अपितु दिल से जरूर सबके लिए ईद की मुबारकबाद दी जा सकती है।मोबाइल फोन के माध्यम से भी बधाई संदेश देकर ईद का उत्साह चार गुना किया जा सकता है।
ईद की नमाज़ के लिए मुफ़्तियों ने गाइड लाइन्स जारी कर कहा है कि ईद की नमाज़ सामूहिक रूप से न तो ईदगाह में होगी और न सामूहिक रूप से मस्जिदों में होगी,बल्कि जुमा की नमाज़ की तरह चार लोग मस्जिदों और घरों में ही अदा करेंगे। मदरसा अरबिया रहमानिया में मुफ़्तियों के ग्रुप की बैठक फ़तवा विभाग में हुई,जिसमें ईद की नमाज़ के सम्बंध में उन्होंने फतवा तलब किया,जिसपर मुफ़्ती सलीम अहमद,मुफ़्ती मौलाना तौक़ीर आलम और सदर मदर्रिस मौलाना मो.अरशद कासमी ने कहा कि दारुलउलूम देवबंद और दूसरे भारतीय मुस्लिम संस्थानों के फैसले की रोशनी में इंतेजामिया ने यही निर्णय लिया है कि ईदगाह में सामूहिक ईद की नमाज़ नहीं होगी,बल्कि मदरसा के चार लोग इमाम की क़यादत में नमाज़ अदा करेंगे और साथ ही मस्जिदों में व अपने-अपने घरों में निर्धारित सरकारी तादाद के अनुसार ईद की नमाज़ अदा कर सकेंगे,साथ ही जो लोग ईद की नमाज़ अदा कर पाने में असमर्थ हैं वे घर पर चार रकात नमाज़ चाशत अदा करें।
रमजान की शुरूआत भी चांद से होती है और रमजान पूरे होने पर ईद का जब चांद निकलता है तो सबके चेहरे पर खुशी छा जाती है। दरअसल रमजान के सकुशल बीतने की खुशी में ही अल्लाह
को शुक्रिया अदा करने के लिए ही ईद उल फितर का त्यौहार मनाया जाता है। वही अल्लाह के नेक बन्दो की खिदमत का भी मुबारक मौका है ईद। सब्र ,प्रेम और भाईचारे के साथ साथ अल्लाह की खिदमत का एक खास महिना है रमजान। हर मुस्लमान रमजान का बेसब्री से इन्तजार करता है। क्योंकि रमजान में अल्लाह को याद करने के साथ ही पांचो वक्त की नमाज रोजेदार को अल्लाह की इबादत का मौका भी मिलता है। सब्र के इम्तिहान में पास होने की खुशी का नाम ही ईद है।
इस्लाम में रोजे का सार है कि व्यक्ति अपना जीवन अल्लाह की इच्छा और उसके आदेशों को मानते हुए गुजार दे। रोज़ा के लिए जो अरबी शब्द बोला जाता है, उसे ‘सॉम’ कहते है,इसका शाब्दिक अर्थ है ‘संयम करना।‘ सॉम शब्द इस महीने की सच्ची भावना को दर्शाता है। जिसमें सूर्योदय से सूर्यास्त होने तक रोज़ा रखना होता है।ईस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने को रमज़ान का महीना कहा जाता है। इस महीने में तीस दिनों तक रोज़ा रखना प्रत्येक मुस्लिम के लिए अनिवार्य है। रोज़े का एक अर्थ व्यक्ति के मन को अध्यात्म से जोड़ना भी है।जिससे उसके अंदर कृतज्ञता और स्नेह का ऐसा भाव उत्पन्न हो। जिससे व्यक्ति पूरे वर्ष अल्लाह की राह पर चल पाए। सबसे पहले हज़रत मुहम्मद साहब ने रोज़ा रखा था,वे अपना रोज़ा खजूर और पानी से खोलते थे।यही परम्परा अभी भी चली आ रही है। रमज़ान में कुरआन पढ़ने का अधिक प्रयास किया जाता है। हदीस की किताब अल-बुख़ारी के अनुसार इस्लाम के पैगंबर तरावीह की नमाज़ अकेले घर पर पढ़ते थे, मस्जिद में नहीं। कुदरत का करिश्मा देखिए इस बार कोरोना के कारण सब घर पर ही तरावीह व अन्य सभी नमाज़ अदा करते रहे है।एक माह तक रोजा रख चुके लोग नये नये कपडे पहनकर ईद की नमाज अदा करने के लिए ईदगाह जाते है। ईदगाह में नमाज के बाद एक दूसरे के गले मिलकर ईद की मुबारकबाद दी जाती है।लेकिन इस बार कोरोना के चलते बिना गले मिले ही दिल से एक दूसरे को दुआएं देंगे ,ऐसा तय भी किया गया है। मुस्लिम धर्म मे ईद उल फितर की शुरूआत जगं ए बदर के बाद सन 624 ईसवी के पैगम्बर मौहम्मद साहब द्वारा ही रमजान बीतने पर की गई थी। रमजान महिने में हर मुस्लमान जंहा ज्यादा से ज्यादा समय अल्लाह की रहमत में गुजारता है। वही वह स्वयं को सुधारने व खुदा के बन्दो के चेहरो पर रौनक लाने के लिए उनके हर गम में शरीक होता है। जो खुदा के बन्दे पैसो से मोहताज है, भूखे है ,लाचार है उनकी हर हाल में मदद कर उन्हे बराबरी पर लाने की कौशिश का नाम ही वास्तव में ईद है। ईद हमे आपसी भाईचारे से रहना सिखाती है।ईद पर नए कपड़े जरूरी नही बल्कि साफ कपडे पहनकर कपडो पर इतर की खुशबू के साथ कुछ खाकर ईदगाह की नमाज़ पढ़नी चाहिए। ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात की रस्म निभानी चाहिए। यह रस्म गरीब और मोहताज पडौसी के चेहरे पर खुशी की रौनक लाती है। ईद पर अल्लाह को याद करने के साथ साथ अपने अन्दर की बुराईयों को दूर कर दुसरो की खुशी के लिए काम करे। महीने भर रोजा रखने से पेट ठीक हो जाता है और शरीर फिट हो जाता है। वही पांचो वक्त की नमाज पढने से उसकी धार्मिक सोच भी सकारात्मक हो जाती
है। ईद की नमाज अदा करते समय तकबीर पढे,अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर लाईलाह इल्लाह अल्लाह हु अकबर बडा है अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नही । सारी तारीफे अल्लाह के लिए है। ईद की नमाज अदा करने के बाद एक दूसरे को ईद की बधाई देने व लेने में जो खुशी मिलती है उसको जरूर प्राप्त करना चाहिए।लेकिन सामाजिक दूरी बनाकर रखते हुए ही यह काम करे। ईद की बधाई में सिर्फ मुस्लमान ही नही हिन्दू,सिख और ईसाइ भी शरीक होते है। यह वह त्योहार है जो हमे इंसानियत की सीख देता है। जो दूसरो की भलाई का जज्बा देता है और मुल्क की तरक्की व हिफाजत का जुनून देता है। ईद की खुशी रोजेदारो को तभी से मिलनी शुरू हो जाती है। जब रमजान में रोजेदार मुस्लमानो के साथ साथ दूसरे धर्मो से जुडे लोग भी रोजा इफतार की रस्म में शरीक होकर आपसी भाईचारे व एकता का पैगाम देते है। रोजा इफतार कार्यक्रमो का सिलसिला रमजान में पहले लगातार चलता था।परन्तु इस बार कोरोना के कारण सबने रोज़ा इफ्तार घर पर ही किया। फोन पर ही सही ईद की मुबारकबाद जरूर दे इससे भाईचारे में इजाफे की शुरूआत होती है। तभी ईद की खुशी दोगुनी हो सकती है।
मुफ़ीतियाने इकराम ने मुसलमानों से ये भी अपील की है कि वे ईद की मुबारकबाद के लिए अपने मिलने वालों और दोस्तों के घरों पर न जाकर मोबाइल पर ही ईद की मुबारकबाद पेश करें।मुफ़्ती सलीम अहमद ने सभी मुसलमानों से अपील की कि अपने मुल्क हिंदुस्तान से कोरोना महामारी से निजात,देश के विकास और आपसी सौहार्द के लिए रमज़ान के आखरी अशरे में विशेष दुआ करें।तो आइए मनाये ईद और दे संदेश कुछ इस तरह,
इंसानियत का पैगाम है ईद
भाईचारे का एक सबूत है ईद
रमजान के सब्र का पैमाना है ईद
बेहद की खुशियों का खजाना है ईद
इंसानी रिश्तों को जोड़ती है ईद
नफरत की दीवारो को तोड़ती है ईद
चांद ए दीदार पर आती है ईद
रमजान के बाद की खुशबू है ईद
रोजो की बरकत का नाम है ईद
खुशियों को बांटने का अवसर है ईद
नफरते भुलाने का बहाना है ईद।
(लेखक- डॉ. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट / ईएमएस)