भाई श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी के अब तक के छ: वर्षीय प्रधानमंत्रीत्व काल में ’सिक्सर‘ तो कई लगे, किन्तु कुछ ’सिक्सर‘ अपरोक्ष रूप में आत्मघाती भी सिद्व हुए, मोदी जी के पिछले पॉच वर्षीय शासनकाल की सबसे चर्चित उपलब्धि तो नोटबंदी रही, जिसके तहत अचानक आठ दिसम्बर 2016 की अर्द्वरात्रि से भारतीय कागजी मुद्वा के चलन बंद कर दिये गए थे, वे भी हजार व पॉच सौ के इस आकास्मिक घोषणा ने सिर्फ पूरा भारत सन्न रह गया था, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में सुनामी आ गई थी। देश व इसके निवासियों को इस आकास्म्कि फैसले को हजम करने में कई महीने लगे। इसके बाद जब गत वर्ष 23 मई से नरेन्द्र मोदी सरकार की नई पारी शुरू हुई तो छठे साल में मोदीजी ने कई ’सिक्सर‘ लगाए जिनमें जम्मू कश्मीर से धारा-370 की बिदाई, तीन तलाक का खात्मा, नागरिक संहिता कानून संशोधन तथा अब पाक अधीकृत कश्मीर पर कब्जे के प्रयास आदि है, इसी बीच चीन का अभिशाप कोरोना महामारी ने भारत में प्रवेश किया और मोदीजी ने ’नोटबंदी‘ की तरह ’घरबंदी‘ (लॉकडाउन) की घोषणा 28 मार्च को अचानक रात बारह बजे से लागू करने की घोषणा कर दी। वैसे नोटबंदी की ही तरह यह ’घरबंदी‘ भी देश के सामान्यजन के हित मे ही है, किन्तु अचानक रूप से मार्च माह के अंतिम दिनों में आधी रात को की गई इस घोषणा से देश हक्का-बक्का रह गया, पूरे देश में कर्यू जैसी सख्ती हो गई और देश के आम लोगो व कर्मचारी पेशावरों को बाजार-दुकाने बंद होने से रोजमर्रा की सामग्री जुटाने की चिंता हो गई। पहले चरण में यह तालाबंदी तीन सप्ताह के लिए की गई बाद में दो बार इसे बढाया गया और अब यह चौथे चरण में है और अभी भी यह तय नही है कि चौथे चरण की अवधि (31 मार्च) खत्म होने के बाद इस ’घरबंदी‘ से मुक्ति मिल ही जाएगी क्योंकि देश में कोरोना अपना दायरा बढाता ही जा रहा है।
आज देश में जहॉ रोज कमाकर खाने वाला वर्ग दाने-दाने को मोहताज है और महानगरो में मजदूरी करने वाले करीब दस करोड मजदूर अपने घरो को जाने के लिए सडक पर है, वहीं आज उच्च वर्ग को छोडकर मध्यम या निम्न अथवा निम्नतर कोई ऐसा वर्ग नही है जो परेशान न हो पिछले दो महीने से जो देश पूरी तरह अपने घरो में बंद हो, उस देश की दुर्गति की सहज कल्पना की जा सकती है, व्यापारी वर्ग जहॉ दो महीने से अपने कारोबार दूकानें आदि बंद होने से परेशान है, तो केन्द्र व राज्य सरकार का कर्मचारी वेतन नही मिल पाने से परेशान है, सभी वर्ग के नागरिको के सामने अपना जीवनचक्र जारी रखने की समस्या पैदा हो गई है, पूरा देश हलाकान है।
केन्द्र सरकार की वित्तमंत्री ने लगातार पॉच दिन पत्रकारवार्ता आयोजित कर बीस लाख करोड के आर्थिक पैकेज की घोषणा की, किन्तु वह सरकार का यह आर्थिक सहायता का फैसला मूल समस्या से देश का ध्यान भटकाने के लिए था या सिर्फ हरे-सब्ज बाग दिखाने के लिए, यह आज तक देश को समझ में नही आया, क्योंकि इतने बड़े आर्थिक पैकेज का आर्थिक लाभ आज तक न किसी किसान या मजदूर को मिला और नही किसी राज्य या उसके छोटे-मझौले उद्योगो को ? देश की दुरावस्था वही है जो आर्थिक पैकेज की घोषणा के पहले थी?
हॉ पूरे विश्व में ये दावे अवश्य किए जा रहे है कि इतने लम्बे लॉकडाउन के कारण अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन या स्पेन जैसा महामारी का विस्तार भारत में नही हो पाया, यह दावा सही भी हो सकता है, किन्तु यदि देश और विपक्षी दलो को पहले से विश्वास मे लेकर फिर ’लाकडाउन‘ की घोषणा की जाती है तो देश व उसके निवासियों की इतनी दयनीय स्थिति नही होती, और यह सरकार व रिजर्व बैंक भी आर्थिक संकट से मुक्त हो जाते किन्तु ’अचानक‘ शब्द जो मोदी जी की कुंडली के साथ जुडा है, उसी ने इस देश को दुरावस्था के इस कगार पर लाकर खड़ा कर दिया।
अब सिर्फ सबसे बडा चिंतनीय सवाल यह है कि क्या चौथे के बाद पॉचवा लाकडाउन तो नही होगा ? यदि हुआ तो फिर कोई आश्चर्य नही कि पूरे देश को सडक पर खडे होने को मजबूर होना पडे ? किन्तु सवाल यह भी है कि जिस तरह से महामारी अभी भी अपने पैर पसारते जा रही है ऐसे मे यदि एकदम तालाबंदी या घर बंदी खत्म कर दी और लोगो का हुजूम सडको पर आ गया तो फिर देश के स्वास्थ्य का क्या होगा ? इसी चिंता में आज देश व सरकार है, सरकार को कोई मध्यम मार्ग खोजकर चरण दर चरण ’घरबंदी‘ खत्म करनी होगी ।
(लेखक- ओमप्रकाश मेहता )
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लॉकडाउन पर प्रश्नचिन्ह....? ”घर बंदी वरदान या अभिशाप.......?