दोनों महापुरुशों का जीवन किसान संघर्शों को समर्पित रहा है। दोनों के जीवन में बहुत कुछ एक जैसा है। कुदरत ने दोनों धरती पुत्रों को जैसे गांव-गरीब और किसान-मजदूर की आवाज बुलन्द करने के लिए ही बनाया था। उसी जीवन मिशन में दोनों ने अपना सर्वस्व होम कर दिया। दोनों ने आजादी के संघर्श से जिन जीवन-मूल्यों को ग्रहण किया उनके प्रति ईमानदार और प्रतिबद्ध जीवन जीने के साथ-साथ किसान राजनीति को मजबूत करने का काम किया। दोनों धरती-पुत्र बुलन्दशहर की पावन धरा पर किसान परिवार में जन्में। दोनों आजादी के लिए संघर्शरत देश्भक्त परिवारों में पले-बढ़े। दोनों का जीवन लगभग समान तरह के जीवन संघर्शों की उठा-पटक से गुजरता रहा। आजादी के संघर्श में संलग्न दोनों परिवार एक स्थान से दूसरे स्थान विस्थापित होते रहे। जीवन स्थितियों के चलते भी और आजादी के लिए खुला विद्रोही रवैया अपनाने के कारण भी। जीवन के मुख्य उददेश्यों के केन्द्र में गांव-गरीब और किसान-मजदूर ही बराबर बने रहे। दोनों महान नेताओं की महानता का बड़ा प्रमाण यही है कि जीवन भर खोज-खोजकर दोनों देशभक्त समर्पित युवा नेताओं की फौज खड़ी की। जिन्होनें राश्टृ-निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान निभायी। दोनों महान और दूर-दृश्टा नेताओं ने देश के लिए द्वितीय पंक्ति के नेताओं की कतार खड़ी की। जिन्होनें बहुत हद तक उनके मिशन को आगे बढाया। दोनों किसान नेता रहे जिनके जहन में यह बात साफ थी कि देश की तरक्की का रास्ता खेत-खलिहानों से ही निकलेगा। जब तक गांव-गरीब के बेटे पढ़ लिखकर नीति-निर्माताओं के साथ अपनी भागीदारी नहीं करेगें तक तक असली भारत पीछे ही रहेगा। इसलिए दोनों ने अपने जीवन में शिक्षा को समान महत्व दिया। ग्रामीणों को शिक्षा के जरिए समझ बढ़ाने और राजनीतिक रुप से परिपक्कव बनने के लिए प्रेरित किया।
देश में सामंती जमीदारी प्रथा इन दोनों किसान नेताओं के संघर्शों से ही समाप्त हो सकी। विजयसिंह पथिक जहां सामंतवाद, रियासतों और राजे-रजवाड़ों से सीधे टकराएं। ‘चिड़ियन ते बाज़ लडाउं.तब गोविन्दसिंह नाम कहांउ‘ की शैली में पथिक जी ने रियासतों को सर के बल खड़ा कर दिया। सत्याग्रह कि जिस शैली को ईजाद किया। वह देशभर में स्वतंतता संघर्श की मुख्य विधि बन गया। किसान समुदाय में राजाओं द्वारा किए जा रहे शोषण के खिलाफ राजनीति चेतना और मुक्ति की समझ पैदा कर बडें किसान आन्दोलन देशभर में खड़े किए। उस समय चूंकि राजस्थान सर्वाधिक रजवाड़ों का गढ़ था और वहां किसानों का शोषण चर्म पर था। विजयसिंह पथिक ने उसी गढ़ को तोड़ने का दुस्साहसिक निर्णय किया। बिजौलिया, बेगु, बरार और सिरोही के बड़े किसान संघर्शों को मेहनत कर आयोजित किया।
जिनके सुखद परिणाम जल्दी ही आने शुरु हो गए। ठीक उसी तरह अपना महान योगदान चौधरी चरणसिंह उत्तर-प्रदेश में निरन्तर संघर्शों के साथ कर रहे थे। सदियों से ज़मी हुई जमीदारी प्रथा का उन्मूलन उनके अथक प्रयासों से ही संभव हो सका। जब भी उन्हें शक्ति मिली उन्होनें बिना समय गंवाए उसका सदुपयोग किसानों को सशक्त करने में किया। प्रदेश में चकबंदी कानून, जमीदारी उन्मूलन अधिनियम और भूमि-सुधार प्रयास निरन्तर किए। जिसका परिणाम यह निकला कि आज उत्तर-प्रदेश का किसान देश के उन्नत कृशि क्षेत्रों में शुमार होता है। वह जमीदारों के शोशण और उत्पीड़न से मुक्ति पा सका। उत्तर-प्रदेश देश में किसान राजनीति का बड़ा प्रयोग-स्थल चौधरी चरण की पहचान से जुड़कर ही बन सका। दोनों महान किसान नेताओं का जीवन किसानों की दशा सुधारने और उनके जीवन में बदलाव लाने की अनगिनत घटनाओं से गुथा पड़ा है। क्रंातिकारी विजयसिंह पथिक जहां किसानों को राजे-रजवाड़े और रियासतों से मुक्ति दिलाने का व्यवहारिक कार्यक्रम किसानों के लिए लाए, आन्दोलन खड़े किए जिससे किसानों में चेतना का संचार वास्तविक ढ़ंग से करने में सफल रहे। वहीं चौधरी साहब ने अपनी उच्च शिक्षा और कानूनी समझ का व्यवहारिक उपयोग करते हुए किसानों को शोषण से निकालने की जो सैद्धांतिक समझ देश और समाज में विकसित की वह अतुलनीय योगदान है। जिस ढ़ंग से एक के बाद एक कानून चौधरी चरणसिंह किसानों के पक्ष में लाए उसी का परिणाम है, आज देश का किसान खुली हवा में सांस ले पा रहा है। उन्नति तथा प्रगति के नए-नए मानक गढ़ रहा है। चौधरी साहब की यह विरासत ही किसान राजनीति की असली थाती है।
पथिक जी इन्दौर में 1905 में क्रांतिकारी देशभक्त शचीन्द्र सान्याल के सम्पर्क में आये। उन्होनें पथिक जी को रासबिहारी बोस से मिलाया। क्रांतिकारियों के इस समूह में पथिक जी कई महत्वपूर्ण कार्रवाहियों का हिस्सा रहे। 1912 में जब अंग्रेजों ने दिल्ली को राजधानी बनाया तो क्रांतिकारियों ने उद्घाटन समारोह में वायसराय के जुलूस पर चांदनी चौक में बम फेंका। इस कर्यवाही में पथिक जी शामिल रहे। 1914 में रासबिहारी बोस और शचीन्द्र सान्याल ने सम्पूर्ण भारत में एक साथ सशस्त्र क्रांति के लिए ‘अभिनव भारत समिति‘ नाम का संगठन बनाया। पथिक जी को इस काम के लिए राजस्थान का जिम्मा सौंपा गया। अजमेर से कई प्रमुख समाचार-पत्रों का सम्पादन और प्रकाशन प्रारम्भ किया। बिजौलिया का प्रसिद्ध किसान आन्दोलन खड़ा किया। 1920 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की और सत्याग्रह के नए-नए प्रयोग किए। बाद में संघ की गतिविधियों का केन्द्र अजमेर बना। देशभक्त युवाओं को खोज-खोज कर आन्दोलन में शामिल किया। माणिक्यलाल वर्मा, रामनायारण चौधरी, हरिभाई किंकर, नैनूराम शर्मा और मदनसिंह करौला जैसे देशभक्त और आजाद भारत के बडे नेता पथिक जी के राजस्थान सेवा संघ की ही देन है। जिन्हानें भारतीय राजनीति को दिशा दी।
चौधरी चरणसिंह एक किसान नेता के रुप में ही इस देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने। वह एक स्पश्टवादी विचारधारा के ठेठ, बेबाक और अपनी रौबीली राजनीति के लिए जाने जाते है। उनकी राजनीति संघर्शों और विरोधाभासों के बीच बढ़ती और चढ़ती गई। सबसे पहले ब्रिटिश भारत में सन्् 1937 में उत्तर प्रदेश के छपरौली से विधानसभा का चुनाव जीता। वहीं से किसान हितों को सर्वोपरि रखकर गांव-गरीब को अपना जीवन-मिशन बना लिया। फिर तो निरन्तर साल 1946, 1952, 1962 व 1967 तक में विधानसभा में छपरौली का एक-छत्र राज कायम रहा। सर्वप्रथम पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने। जहां उन्होने राजस्व, चिकित्सा, सूचना, न्याय व लोक स्वास्थ्य सहित अन्य कई विभागों को प्रभावी ढ़ंग से संभाला। फिर सन्् 1952 में डॉ0 सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्रालय की बागडोर उनके हाथों में आयी। साल 1970 में चौधरी साहब उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
ठीक इसी तरह जैसे विजयसिंह पथिक ने देश को शानदार नेता दिए वैसे ही चौधरी चरणसिंह समझते थे कि ये देश कैसे बनेगा। उन्होनें भी राजनीतिक समझ रखने वाले युवाओं की ढ़ूंढ़-ढूंढ़ कर राजीतिक भर्तियों की। उन्हें सत्ता का महत्व समझाया, प्रेरित किया और सक्रिय राजनीति के लिए प्रशिक्षित। यह लम्बी फेहरिस्त है शरद-मुलायम उसमें जाने-माने नाम है। जिन्होनें आधुनिक भारत की राजनीति को ही बदलकर रख दिया। रामविलास पासवान को बिहार से बिजनौर लाकर चौधरी साहब ने खुद चुनाव लड़वाया। जो भविश्य का एक कददावर दलित नेता साबित हुआ। यह चौधरी चरणसिंह ही कर सकते थे न कि कोई भाई-भतीजावादी संकीर्ण नेता। इसी तरह जब संजय गांधी की मृत्यु के बाद अमेठी सीट पर पुन: चुनाव होना था तो पूरा विपक्ष राजीव गांधी के ख़िलाफ़ लड़ने के नाम पर सहमा हुआ था। तो फिर देश की राजनीति ने अपने चौधरी की तरफ देखा, चौधरी साहब अपने देखे-भाले साहसी नौजवान शरद यादव को जबलपुर से अमेठी लाए और चुनाव मैदान में उतारा। यह देन चौ0 चरणसिंह की इस देश की सियासत को है। उन्होनें अनगिनत ऐसे होनहार युवाओं को राजनीति में आगे बढ़ाया जो इस देश सियासत के तेवर बदलने में अदभुत साबित हुए।
(लेखक-डॉ. राकेश राणा)