क्या विपक्ष का काम केवल सरकार की आलोचना करना ही होता है। क्या विपक्ष की राष्ट्रीय समस्या से लड़ने में कोई भूमिका नहीं होती? हम सत्ता में नहीं हैं तो हम कुछ नहीं करेंगे, यह सरकार का ही कर्तव्य है, हमारा कुछ भी नहीं? अंतरराष्ट्रीय समस्या बन चुकी कोरोना वायरस के कारण हमारे देश में राष्ट्रीय आपदा की स्थिति बनी है। लेकिन हमारे देश में विपक्ष खासकर कांग्रेस को यह समस्या राष्ट्रीय समस्या नहीं लगती। ऐसा लगता है कि भारत में इसी भाव को लेकर राजनीति की जा रही है। कोरोना संक्रमण काल में हमारे देश के विपक्षी राजनीतिक दल एक बार फिर से भारत की छवि को बिगाड़ने का कृत्य करते दिखाई दे रहे हैं। वास्तव यह राजनीति करने का समय नहीं, बल्कि समाधान की दिशा में सोचने का समय है।
पूरा विश्व जहां चीनी वायरस से लड़ाई लड़ रहा है, यहां तक कि कई देशों का विपक्ष भी सरकार के साथ कदम मिलाकर खड़ा है, वहीं भारत में चीनी वायरस के कारण लगे लॉकडाउन को लेकर कांग्रेस ने योजनाबद्ध रूप से राजनीति करना प्रारंभ कर दिया है। चीनी वायरस के कारण देश में जो हालात पैदा हुए हैं, उसके कारण यह कहा जा सकता है कि यह निश्चित रूप से राष्ट्रीय आपदा है। राष्ट्रीय आपदा का तात्पर्य कांग्रेस भी जानती होगी और विपक्ष के अन्य राजनीतिक दल भी। राष्ट्रीय आपदा में केवल सरकार ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह एक सैनिक की भांति खड़ा होकर इस जंग को लड़ने के लिए अपने आपको तैयार करे। अब सवाल यह आता है कि कांग्रेस और उसके नेता इस राष्ट्रीय आपदा के समय कौन सी भूमिका में हैं, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
कांग्रेस के राजनेता राहुल गांधी पूर्व में भी ऐसे बयान दिए हैं, जिसके कारण वह हंसी का पात्र बन चुके हैं, इस बार भी लॉकडाउन को लेकर ऐसा ही बयान दिया है। राहुल गांधी ने लॉकडाउन के बारे में कहा है कि यह पूरी तरह से फैल हो गया है। इस बयान को सुनकर यह भी लगता है कि राहुल गांधी को इस चीनी वायरस की गंभीरता का अनुमान नहीं है। केवल विरोध करने की राजनीति करना किसी भी प्रकार से ठीक नहीं है। अनेक राजनीतिक विश्लेषकों ने इस सत्यता को बेहिचक स्वीकार किया है कि अगर देश में लॉकडाउन नहीं होता तो आज देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या कहीं ज्यादा होती। लेकिन हमारे देश की कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी यह सच क्यों नहीं देख पा रहे। हालांकि यह सत्य है कि किसी घातक बीमारी को रोकने में कुछ कमियां भी रह जाती हैं, लेकिन जो अच्छे कार्य किए गए हैं उनकी खुलकर प्रशंसा की जानी चाहिए। हमारे देश की राजनीति में ऐसा दिखाई नहीं देता। अच्छा होता कि राहुल गांधी सरकार को कोई सुझाव देते कि हम सरकार के साथ हैं और कोरोना को रोकने के लिए हम भी प्रयास करेंगे। लेकिन राहुल गांधी ऐसा इसलिए भी कहने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि कांग्रेस शासित राज्यों की स्थिति इस संक्रमण कारण दुर्गति के पथ पर लगातार आगे बढ़ रही हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार में शामिल है और सरकार इस संक्रमण को रोकने में पूरी तरह से असफल हो चुकी है। अच्छा यह होता कि राहुल गांधी महाराष्ट्र की सरकार के लिए भी कुछ कहते। लेकिन राहुल गांधी ने महाराष्ट्र को लेकर एक अजीब सा बयान दिया है। वे यह कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का प्रयास कर रहे हैं कि महाराष्ट्र में उनकी पार्टी निर्णय लेने की क्षमता में नहीं है। यहां पर राहुल गांधी ने अप्रत्यक्ष रूप से शिवसेना पर ठीकरा फोड़ने का प्रयास किया है। लेकिन सवाल यह भी है कि आज महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार का संचालन कर रही है तो इसमें दोष किसका है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपने आसपास घटित हो रहे गैर जिम्मेदाराना कार्य के प्रति निष्क्रिय होकर तमाशा देखता है, उसका परिणाम पूरा समाज भोगता है। आज महाराष्ट्र के हालात कमोवेश ऐसे ही हैं।
जहां तक केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन लगाने की बात है तो इसमें यह कहना समुचित लगता है कि यह लॉकडाउन केंद्र सरकार ने अपनी मर्जी से नहीं लगाया। यह पूरी तरह से राज्य सरकारों के अनुरोध पर ही लगाया है, इसलिए राहुल गांधी का केंद्र पर निशाना साधना पूरी तरह से गलत है। इसके लिए राज्यों की सरकारों के बारे में राहुल गांधी को बोलना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस इस मामले में बेबुनियाद राजनीति ही कर रही है, इसके अलावा कुछ नहीं। हम यह भली भांति जानते हैं कि कोरोना संक्रमण भयावह में स्थिति में कैसे पहुंचा। निश्चित रूप से इस समस्या को विस्तारित करने में तब्लीगी जमात का भी हाथ है। लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने इस पर एक शब्द भी नहीं बोला। जो सत्य है, उसे स्वीकार करने में हिचक नहीं होना चाहिए। यहां पर किसी संप्रदाय विशेष का विरोध नहीं, लेकिन जो नियमों की अनदेखी करे उसके विरोध में कार्यवाही होना ही चाहिए।
देश की एक और बड़ी समस्या श्रमिकों की है। इसके बारे में भी राहुल गांधी ने बयान दिया है। यहां भी ऐसा लगता है कि राहुल गांधी नकारात्मक राजनीति ही कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि मजदूरों की कोई समस्या थी ही नहीं, इस समस्या को इसलिए भी पैदा किया गया है कि सरकार को घेरा जा सके। श्रमिकों में बढ़ी बेचैनी के लिए केंद्र ने बसों की व्यवस्था की, रेलगाड़ी भी चलाई, लेकिन राज्य सरकारें उनके लिए भोजन का इंतजाम भी नहीं कर सकीं। जो मजदूर जिन राज्यों से आ रहे हैं उन राज्य सरकारों की जिम्मेदारी केंद्र से कहीं ज्यादा है। यहां एक सवाल यह भी है कि मजदूरों की समस्या दिल्ली और महाराष्ट्र में ज्यादा दिखाई दी। जो पूरी तरह से एक प्रायोजित जैसा ही लगता है। इन दोनों स्थानों पर एक भ्रमित करने वाले संदेश के माध्यम से मजदूरों को एकत्रित किया गया। उसके बाद इस खबर अंतरराष्ट्रीय समस्या बनाकर प्रस्तुत किया गया। बाद में पता चला कि दिल्ली में अफवाह फैलाने के लिए आम आदमी पार्टी का एक विधायक मुख्य भूमिका में था। इसी प्रकार महाराष्ट्र के मुम्बई में श्रमिकों की भीड़ जमाने के लिए विनय दुबे का नाम सामने आता है, जिसके महाराष्ट्र की सरकार में शामिल कुछ बड़े राजनेताओं से नजदीकी संबंध हैं। इससे यही कहा जा सकता है कि ऐसे घटनाक्रमों के चलते ही मजदूरों में असुरक्षा का भाव पैदा हुआ और उन्होंने अपने गृह राज्य की ओर प्रस्थान किया। यहां की राज्य सरकारें चाहतीं तो इस समस्या को रोका जा सकता था, लेकिन ऐसा हो न सका।
राहुल गांधी यह भी जरूर जानते होंगे कि किसी भी योजना को मूर्त रूप देने के लिए राज्य सरकारों की बड़ी भूमिका होती है, और राज्य सरकारों ने भी उचित कदम उठाए हैं। चिकित्सक दल ने भी अपना कर्तव्य बखूबी निभाया है। हम यह भी जानते है जिन पीपीई किट के लिए हम दूसरे देशों पर निर्भर रहते थे, आज हमारे देश में ही तैयार हो रही हैं। यह सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है। कहने का तात्पर्य यह है कि विपक्ष को हर बात राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए, जो कार्य प्रशंसा योग्य हैं, उनकी खुलकर प्रशंसा भी की जानी चाहिए।
विपक्ष के राजनेताओं को चाहिए कि वह इस राष्ट्रीय आपदा में सरकार और जनता का हौसला बढ़ाने की भूमिका में आए। यही राष्ट्रीय धर्म है और यही हमारा प्राथमिक कर्तव्य है।
(लेखक-सुरेश हिंदुस्थानी)
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