लॉकडाउन के चार चरण पूरे होने के बाद सोमवार से देश को खोलने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। तीन चरण में देश को अनलॉक किया जाएगा। लेकिन अब हमारी जिम्मेदारी कुछ ज्यादा बढ़ गई है। अगर हम इस मौके पर सरकार की बात मानेंगे और कोरोना के संक्रमण को थामने में योगदान देंगे तो आने वाले कुछ वक्त में आजादी के साथ जी सकेंगे। यदि सरकार की गाइडलाइन को हवा में उड़ाया तो फिर नए सिरे से पाबंदी के लिए तैयार रहना पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च की रात 12 बजे से लॉकडाउन का ऐलान किया था। चार चरण की बंदी के बावजूद कोरोना संक्रमण को रोकने संबंधी चुनौतियां बनी हुई हैं। बल्कि बढ़ी ही हैं। हर रोज संक्रमितों की संख्या कुछ बढ़ी हुई दर्ज हो रही है। हालांकि स्वस्थ होने वालों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है, पर संक्रमण की गति को रोक पाना कठिन जान पड़ता है। चूंकि इससे पार पाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से सरकारों पर है, इसलिए जहां संक्रमण रुक नहीं पा रहा, वे स्वाभाविक ही लॉकडाउन को हटाने के पक्ष में नहीं थीं।
अब भी 13 शहरों और 30 नगरपालिका क्षेत्रों में स्थिति गंभीर बनी हुई है। इसी के मद्देनजर लॉकडाउन खोलने के पहले चरण की शुरुआत हो चुकी है। लॉकडाउन के पहले चरण की समाप्ति के बाद से ही दबाव बनने शुरू हो गए थे कि कड़ी शर्तों के साथ कल-कारखानों और व्यावसायिक गतिविधियों को खोलने की इजाजत मिलनी चाहिए, नहीं तो अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। इसलिए तीसरे चरण में कुछ गतिविधियों को खोल दिया गया। चौथे चरण में ज्यादातर कारोबार, मोहल्लों की छोटी-मोटी दुकानें तक खुलनी शुरू हो गई। सड़कों पर आवाजाही तेज हो गई। कुछ ट्रेन और घरेलू उड़ानें भी शुरू कर दी गईं। जो श्रमिक अपने घर लौटना चाहते थे, उन्हें जाने का प्रबंध किया गया। पर जैसे-जैसे ये गतिविधियां बढ़ीं, वैसे-वैसे चुनौतियां भी बढ़ती नजर आई। यह ठीक है कि आर्थिक गतिविधियों को लंबे समय तक रोक कर नहीं रखा जा सकता। उन्हें खोलने की मांग स्वाभाविक थी।
तमाम विशेषज्ञ जिस तरह दुनिया के कई दूसरे देशों का उदाहरण देते हुए कहते रहे हैं कि बगैर लॉकडाउन लागू किए भी कोरोना संक्रमण को रोकने के प्रयास किए जा सकते हैं, उसके भारत जैसे देश में कितना सफल हो सकने की उम्मीद की जा सकती है। जिन देशों ने बंदी का रास्ता नहीं अपनाया या बहुत कम समय के लिए लागू किया वहां की आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं से भारत की तुलना नहीं की जा सकती। फिर इसमें जनजागरूकता भी एक बड़ा पहलू है। इस चुनौतीपूर्ण समय में सरकारों की जिम्मेदारियां पहले से कुछ बढ़ गई हैं। एक तरफ संक्रमितों की पहचान, जांच और समुचित चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने का दबाव है, तो दूसरी तरफ नियम-कायदों का पालन कराने का। अभी तक जांच और इलाज आदि को लेकर शिकायतें दूर नहीं हो पाई हैं। बढ़ते मामलों के मद्देनजर इन सुविधाओं में बढ़ोतरी का भी भारी दबाव है।
(लेखक-सिद्धार्थ शंकर)
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