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कोरोना वायरस का खौफ बसों में सफर करने वाले 80 प्रतिसत  से ज्यादा यात्री घटे

कोरोना वायरस का खौफ बसों में सफर करने वाले 80 प्रतिसत  से ज्यादा यात्री घटे

नई दिल्ली । कोरोना के डर से लोग सार्वजनिक वाहनों में सफर करने से कतरा रहे हैं। बस से लेकर पैरा ट्रांजिट वाहनों में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या घट गई है। भले ही लॉकडाउन में रियायत मिलने के बाद गतिविधियां बढ़ी हों। लेकिन, सार्वजनिक वाहन से ज्यादा लोग निजी वाहनों में सफर करना सुरक्षित मान रहे हैं। डीटीसी और क्लस्टर बस में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या 16 फीसदी के आसपास सिमट गई है। वहीं, पैरा ट्रांजिट वाहनों में 34 फीसदी के करीब लोग ही सफर कर रहे हैं। दिल्ली में मेट्रो सेवा पहले से बंद पड़ी है। इसके बावजूद सार्वजनिक वाहनों में सफर करने वाले लोगों की संख्या काफी कम नजर आ रही है। डीटीसी और क्लस्टर बस में रोजाना सात लाख 30 हजार से अधिक यात्री सफर कर रहे हैं। लॉकडाउन से पहले डीटीसी और क्लस्टर की बसों में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या 45 लाख के लगभग थी। इस वक्त 5700 से अधिक की संख्या में बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं। दिल्ली में क्लस्टर की औसतन 2700 बसें रोजाना चल रही हैं, जिसमें टिकट से सफर करने वाले यात्रियों की औसत संख्या चार लाख है। पहले की तुलना में लगभग 11 लाख यात्री घट गए हैं। इससे रोजाना 65 लाख रुपये का राजस्व कम हो गया है। वहीं, डीटीसी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 1 जून को बस में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या तीन लाख 30 हजार के करीब थी, जिसमें एक लाख 17 हजार से अधिक महिलाओं ने सफर किया। इससे करीब 95 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ है जिसमें स्पेशल हायर बस से मिला राजस्व 49 लाख रुपये था। डीटीसी की तीन हजार से अधिक बसें सड़कों पर हैं। इसमें एक हजार के आसपास बसें विशेष अनुबंध के तौर पर चल रही हैं।लॉकडाउन से पहले डीटीसी बस में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या रोजाना 30 लाख के ईद-गिर्द रहती थी, जिसमें पास धारक यात्री भी शामिल हैं। टिकट से औसतन ढाई करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता था। डीटीसी के एक अधिकारी की मानें तो धीरे-धीरे यात्रियों की संख्या बढ़ रही है। बता दें कि परिवहन विभाग की मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार बसों के अंदर अभी सिर्फ 20 यात्रियों के सफर की इजाजत है। इस कारण भी बसों में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या कम है। पैरा ट्रांजिट वाहन यानि ऑटो, टैक्सी, ग्रामीण सेवा, फटफट सेवा, ईको फ्रेंडली सेवा, आरटीवी बस के अलावा दूसरे वाहनों में 34 फीसदी लोग ही सफर कर रहे हैं। कैपिटल ड्राइवर्स वेलफेयर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष चंदू चौरसिया ने बताया कि कोरोना के डर से कम सवारी ही चालकों को मिल रही हैं। इन वाहनों में औसतन 35 लाख से अधिक यात्री सफर करते हैं। लेकिन, अब इनकी संख्या 12 लाख के आसपास आकर सिमट गई है। करीब 66 फीसदी यात्री घट गए है। जब सड़क पर सवारी नहीं है तो वाहन चालक भी अपनी गाड़ी ज्यादा नहीं चला रहे हैं। हालांकि, ई-रिक्शा जरूर सड़कों पर ज्यादा है क्योंकि उनके परिचालन की लागत ज्यादा नहीं आती है दिल्ली ऑटो रिक्शा संघ के महामंत्री राजेंद्र सोनी ने कहा कि सवारी बैठाने की छूट मिलने के बाद भी सड़कों पर खाली ऑटो दौड़ रहे हैं। इस वक्त दिल्ली में सिर्फ 30 फीसदी के आसपास ऑटो चल रहे हैं। दिल्ली में ऑटो कम चलने का एक कारण यह भी है कि काफी चालक दिल्ली से पलायन कर चुके हैं। ज्यादातर सवारियां रेलवे स्टेशन के लिए मिलती हैं। दिल्ली की स्थानीय सवारी सड़कों पर नहीं है। लोग अपने वाहनों में सफर करना ज्यादा सुरक्षित मान रहे दिल्ली टैक्सी टूरिस्ट ट्रांसपोर्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय सम्राट ने बताया कि 20 फीसदी से कम टैक्सी सड़कों पर है। उसमें एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन जाने वाले यात्री ज्यादा सफर कर रहे हैं। दिल्ली में दफ्तर से लेकर बाजार खुल गए है। लेकिन, गंतव्य स्थल तक जाने के लिए टैक्सी चालकों को सवारी नहीं मिल रही है। लोग निजी वाहनों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
 

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