एक कॉलेज का प्राचार्य बहुत अनुशासन प्रिय और उसूलों पर चलने वाला था. उसके कॉलेज में यदि कोई कक्षा में कोई टीचर पढ़ाने नहीं आता तो वो क्लास ले लेते थे। उनको सब विषयों का उत्कृष्ट ज्ञान था. पर कुछ व्यवहारिक ज्ञान की कमी थी। एक बार वो अंधों की कक्षा में पढ़ाने गए और उनको प्राकृतिक सुंदरता के दृश्य दिखाए और छात्रों से पुछा कैसे लगे दृश्य ?छात्र चुप और प्रसन्न। इसके बाद किसी दिन वे बहरों की कक्षा में गए और उन्होंने संगीत का अध्ययन कराया और इससे प्राचार्य खुश और छात्र प्रसन्न। इसी प्रकार एक बार गूंगों की कक्षा में जाकर पढ़ाया और उनसे कविता कहानी के सम्बन्ध में समझाया किसी ने भी कोई प्रश्न किये और न उत्तर दिए गए, प्राचार्य अपने ज्ञान, अध्ययन के तरीके से प्रसन्न। इस कॉलेज में प्राचार्य द्वारा एक तरफा पढाई कराई और कोई प्रतिवाद नहीं, यही हैं सफलता का चरम बिंदु।
टेलीविज़न जिसे पहले बुद्धू बॉक्स कहते थे, अब यह ज्ञान, समाचार, और नयी नयी खोजों का समाचार देता हैं जिसे हम ज्ञान का पिटारा भी कहते हैं। इसमें सबसे अच्छी बात यह हैं की जो इसके द्वारा परोसा जाता हैं उसे सबको मज़बूरी में देखना, सुनना,समझना पड़ता हैं। इसमें कोई भी किस्म का भावों /विचारों का आदान प्रदान नहीं होता, जो दिया जा रहा हैं उसे स्वीकारों या बंद कर दो।
प्रजातंत्र के चार स्तम्भ में एक स्तम्भ में प्रधान सेवक प्रमुख हैं, इस कारण कार्यपालिका, न्यायपालिका विधायिका के मौन या इशारों में कार्य करने को बाध्य हैं इसीलिए वर्तमान में दो स्तम्भ विधायिका के अधीन हैं और वे मौन या मूक दर्शक हैं, जितनी सीमा निर्धारित कर दी गयी हैं उसका पालन दृष्टिहीन और बधिर के रूप में कार्य करती हैं, विधायिका प्राचार्य का काम कर रही हैं, जिसको बोलने का अधिकार रहा या हैं वह हैं पत्रकारिता उसे मूक बना दिया हैं जिस कारण प्राचार्य मूक पत्रकारों से भी बात करने में हिचकताते हैं। अरे भाई जो उनके भक्त, उनके पिच्छलग्गू हो उनसे भी या ही इशारों में बात करे पर हमारे देश के मुखिया टेलीविज़न के उपासक हैं, वे एक तरफा बात करते हैं उनको दो तरफा बात करने में क्या संकोच होता हैं या सामना से डरते हैं।
विश्व के सब राष्ट्र प्रमुख और विशेषकर अमेरिका के प्रमुख प्रायः पत्रकारों से बात करते हैं, और उनके प्रश्नों के जबाव देते हैं पर हमारे प्रमुख वर्षों में भी पत्रकार वार्ता नहीं करते हैं। वे मात्र टेलीविज़न /रेडियो के द्वारा एक तरफा बात करते हैं और उनसे कोई प्रश्न उत्तर नहीं कर सकता, उनका जबाव उनके अधीनस्थ देते हैं और कभी कभी मजेदार बात यह भी होती है की रक्षा मंत्रालय का जबाव वित्त मंत्री देते हैं, वित्त का जबाव संचार मंत्री, संचार का जबाव रेल मंत्री।
इस मामले में प्रधान सेवक बहुत चतुर हैं, उनको झूठ बोलना हैं और भी सफ़ेद और उसका जबाव अधीनस्थ देते हैं।
हमारे प्रधान मंत्री क्यों नहीं पत्रकार वार्ता करते। महीने में नहीं तो २ माह में, जबाव सवाल से कई भ्रांतियां दूर होती हैं। कम से कम अपने समर्थक पत्रकारों से ही बात कर ले। यह टेलीविज़न संस्कृति हमारे देश के लिए उपयुक्त नहीं हैं। सजीव वार्ता होनी चाहिए ना की दूरदर्शन या रेडियो पर। मन की बात से उपजी समस्या का निदान कौन करेगा। या तो प्रधान मंत्री का अध्ययन समुचित नहीं हैं या वे अपना विरोध या सम्मान सहन करने में सक्षम नहीं हैं। एक तरफा बात करना कोई बड़ी बात नहीं हैं। क्यों नहीं खुलकर सामने आकर जबाव दे.अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनना सरल हैं, कुछ पढ़े लिखे पत्रकारों से बात करने में झेप क्यों ?इसका मतलब जो आपकी हाँ में हाँ मिलाने वाले अधीनस्थ हो उन पर पद या पार्टी का भय दिखाकर अपने पक्ष में कर लेते हैं।
पत्रकारों से संवाद स्थापित करना जरुरी हैं अन्यथा कुछ विशेष टी वी वालों पर भरोसा करके सत्ता चलाना ठीक नहीं हैं, निंदक नियरे राखिये जिससे आपको अपनी यथास्थिति मालूम पड़ेगी अन्यथा भविष्य में सच्चाई से दूर होने परभविष्य अंधकारमय होगा। कुछ लोग जो ज्यादा जानते हैं, इंसान को कम पहचानते हैं।
अलं तेनामृतेन यत्रास्ति विषसंसर्गः,
विष मिश्रित अमृत से क्या लाभ ?कोई लाभ नहीं। अर्थात जिस प्रकार विष -मिश्रित अमृत घातक होता हैं, उसी प्रकार दुष्ट -सेवा से प्राप्त हुआ ज्ञान भी घातक होता हैं।
अंध इव वरं परप्रेनेयों राजा न ज्ञानलवदुवीरदग्धाः।
जो राजा अंधे सरीखा मुर्ख होने पर भी सदा मंत्री और अमात्य आदि दूसरों का आश्रय (सहारा ) लेकर कर्तव्यमार्ग (संधि -विग्रह आदि में प्रवत्ति करने वाला होता हैं उसका होना अच्छा हैं किन्तु जो ज्ञान के लेशमात्र से अपने को महाविद्वान मानने वाला अभिमानी दुराग्रही हैं, उसका होना अच्छा नहीं हैं। अभिप्राय यह हैं कि अभिमानी राजा से राज्य की क्षति होने के सिवाय कोई लाभ नहीं।
वर्तमान धरातल पर आये और शालीनलता से पत्रकारों का मुकाबला करे। विरोधियों के भावों को इज़्ज़त से। भावनाओं का आदर करे। हमें मालूम हैं आपको किसी प्रकार का डर नहीं हैं पर चुनाव में क्यों भयभीत रहते हैं, इसका मतलब कहीं न कहीं आपको अहसास हैं की हमारी नीतियां सही नहीं हैं। असत्यता अधिक दिन नहीं ठहरती हैं।
घर में तो बिल्ली भी शेर होती हैं,
शेरों में शेर बनकर दिखाओ
कब तक शेर पर किसी का
मुखोटा या मास्क लगाओगे।
सोचो समझो गुणों
और अपनाओं सच को
(लेखक-डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )
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टेलीविज़न मैन---सबसे सुखी प्रधान सेवक!