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(चिंतन-मनन) इच्छाएं जीवात्मा को मोह से बांधे रखती हैं 

(चिंतन-मनन) इच्छाएं जीवात्मा को मोह से बांधे रखती हैं 

इंद्रियां, मन और बुद्धि काम-वासना के निवास-स्थान कहे जाते हैं। इनके द्वारा ज्ञान को ढककर काम-वासना जीवात्मा को मोहित करती है। कामरूपी दुश्मन का नाश करने के लिए यह पता होना ज़रूरी है कि यह रहता कहां है। इसलिए कृष्ण कह रहे हैं कि काम-वासना किसी एक जगह नहीं रहती, बल्कि यह तो हमारे तीनों शरीरों- स्थूल, सूक्ष्म और कारण में निवास करती है। इसकी पकड़ बड़ी मज़बूत होती है, इसलिए इसका नाश करना बड़ा मुश्किल है। मिसाल के तौर पर जब काम-वासना इन्द्रियों में जगती है, तब इन्द्रियां बेकाबू हो जाती हैं। जब यह मन में जगती है तो दूसरे काम करते हुए भी मन में काम-वासना के बारे में ही ख्याल चलते रहते हैं। ऐसे वक्ति में दिमाग में केवल काम ही भरी रहती है और बुद्धि दूसरा निर्णय नहीं ले पाती। इसलिए हमारी चेतना की मुख्य जगहों इन्द्रियों, मन और बुद्धि में जैसे ही काम अपना बसेरा डालता है, वहां से ज्ञान गायब हो जाता है। यही वजह है कि बड़े-बड़े ज्ञानियों में भी जब काम उपजता है तो वह उनके ज्ञान को ढक लेता है। काम का मतलब यहां केवल काम-वासना से ही नहीं, बल्कि हमारी अन्य कामनाओं से भी है। कामनाएं या इच्छाएं जीवन भर इंसान का पीछा नहीं छोड़तीं और इस वजह से जीवात्मा का संसार को लेकर मोह बना रहता है। 
 

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