अब इसे मोदी सरकार कि दरियादिली समझा जाए या कमजोरी कि अव हमारा एक भी पडोसी देश हमारा मित्र नही रहा चीन व पाकिस्तान तो हमारे दुश्मन थे ही अब नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान जैसे ’पिद्वी‘ देश भी अपने बडे आकाओं की गोद में जाकर बैठ गए और भारत मुक दर्शक बना हुआ है। चीन तो भारत के साथ सीमा विवाद को जन्म देकर हमारी हजारो किलोमीटर जमीन पर कब्जा बरसों से किए बैठा है। अब चीन का प्रश्रय पाकर नेपाल ने भी खेल शुरू कर दिया और हमार चार वर्ग कि.मी. जमीन पर अपना न सिर्फ कब्जा बता दिया, बल्कि नेपाल की संसद से संविधान संशोधन विधेयक भी पारित करवा दिया और हमारे सीमावर्ती क्षैत्र कालापानी लिपुत्रेक लिंिपयापुरा पर अपना कब्जा बता दिया । चूंकि नेपाल सरकार द्वारा वहां की संसद में प्रस्तुत इस विधेयक को विपक्ष का भी पूरा समर्थन मिल गया है, इसलिए वह एक दो दिन में ही पारित तो हो ही जाएगा और फिर संवैधानिक रूप से हमारा चार सौ कि.मी. वर्ग क्षैत्र नेपाल के कब्जे में हो जाएगा जिसमे हमारे देश की सीमा के कुछ गॉव भी शामिल है।
कुल मिलाकर आज परिदृश्य यह है कि एक और अपनी संसद में बाकायदा प्रस्ताव पारित करवा कर नेपाल हमारे इतने बडे भूभाग पर अपने कब्जे का दावा कर रहा है। तो दूसरी ओर उसका आका चीन ने लद्वाख ही नही चीना सीमा से सटे हमारे सैकडो कि.मी0 सीमा क्षेत्र पर सैना और टैंक खडे कर दिये है। आज स्थिति यह है कि एल0ए0सी0 पर दोनो देशो की फौज खडी है और समझौता वार्ताए असफल हो रही है, हाल ही में दोनो देशो के कमांडिग अफसर स्तर की चर्चा में समस्या पर कोई हल नही निकल पाया है।
दूसरी ओर कोरोना को जन्म देने के नाम पर चीन को जी भरकर कौसने वाले अमेरिकी राष्टपति डोनाल्ड टंप दोनो देशो के बीच मध्यस्थता करने का प्रस्ताव लेकर खडे है। जबकि दोनो देश उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा चुके है। चीन की सोच है कि कल तक कोरोना के नाम पर कोसने वाले टंप कभी भी चीन के पक्ष में फैसला नही कर सकते, तो दूसरी ओर भारत भी अपने अंदरूनी मामलो में बाहरी समर्थन या सहयोंग लेने की नीति ही नही है। इसलिए टंप दूसरी बार भारत से खिन्न है, क्योंकि इससे पहले वे पाकिस्तान भारत के बीच मध्यस्ता की पेशकश कर चुके है। और भारत उसे ठुकरा चुका है। अव फिर उन्होने अपनी पेशकश की जिसे भारत-चीन दोनो ही देशो ने ठुकरा दिया।
जहॉ तक डोनल्ड टंप का सवाल है वे येन-केन-प्रकरेण अर्न्तराष्ट्रीय युद्वो में अपने आपको डालकर इसी साल के अंत मे होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव मोदीजी (भारत) की मदद से फिर जीतना चाहते है, जबकि वास्तविकता यह है कि अमेरिका का आम वोटर चार साल पहले 2016 में उन्हे चुनकर आज भी पछता रहा है। क्योकि तुनक मिजाज टंप अभी भी एक व्यापारी की तरह अमेरिका को चला रहे है। एक मंजे हुए राजनेता की तरह नही, अमेरिका में टंप की पहचान अब ’झूठो के सरदार‘ के रूप में बन गई है। क्योकि वे हर वर्ष एक हजार बडी झूठ बोलते है और आज भी उनकी छवि अमेरिका में वैसी ही है, उनकी झूठ का ताजा उदाहरण पिछले सप्ताह का ही है। जब उन्होने कहा था कि ’उनकी मोदी से बात हुइ है, मोदी जी चीन के घटनाक्रम को लेकर काफी उदास और खिन्न है‘ । जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना है कि पिछले अप्रैल माह के बाद से आज तक टंप-मोदीजी से कोई बात ही नही हुई है।
खैर, टंप को लेकर तो अमेरिका व वहॉ के वोटर जाने लेकिन हमारे यहॉ यह समझ में नही आ रहा कि चीन के सामने तो हमने हमारी सैना खडी कर दी, किन्तु हमारा बहुत पुराना मित्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल चीन के कहने पर हमारी पीठ में छूरा भौंक रहा है, उसका क्या ? वह तो गैर कानूनी रूप से अपनी संसद से प्रस्ताव भी पारित करवा ले गए, तो क्या हम तब भी मौन दर्शक बने रहेगे या कुछ कदम भी उठाएगे ? भारत सरकारव प्रधानमंत्रीजी के इसी प्रश्न के उत्तर की प्रतिक्षा पूरा देश कर रहा है।
(लेखक- ओमप्रकाश मेहता)
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