कोविड-19 के खौफ और डर ने नि:संदेह परिवार, समाज और राश्टृ की समस्याओं में इजाफा किया है। समस्या महामारी से है और चिंता महामारी से जन्मी बेकारी से है। दोनों ही समस्याओं से निकलना वर्तमान परिस्थितियों में दूभर हो रहा है। कोरोना के खौफ ने सामाजिक दूरी को विकसित करने के साथ ही सामाजिक समझ को भी बढावा दिया है। प्रेम, सहयोग और मानवता की कई मिशाले समाज में उभर कर आयी हैं। हालांकि पिछले कुछ हफतों से लगातार भारत के कामगारों की हादसों में हो रही मौतों ने हर आंख को नम किया है। इन हादसों ने कई गुमनाम मसीहों को समाज की अग्रिम पंक्ति के रक्शक के तौर पर ला खडा किया है। जिसने मानवता के गठजोड को और मजबूत किया है। भलां एक भारतीय के पांव के छालों को दूसरा भारतीय कैसे बर्दाश्त करेगा? फिर भले ही वह दूर-दराज विदेशी सरजमीं पर क्यों न बैठा हो? अपनों के दर्द से आंख छलकती ही है। इस दर्द, भय और मानवता की सच्ची सीख के साथ कई मानवता के सेवक निकल पडे अपने घरों से लोगों की हिफाजत और सलामती की कामना के लिए। लोगों की भूख और प्यास की तडप को कम करने, उन्हें उनके घरों तक सही सलामत पहुंचाने का जज्बा लिए, अपनी जीवन की परवाह किए बिना।
भारत का कोहिनूर सोनू सूद जिसे हम हीरा नहीं हीरों कहते थे, देश के आखिरी मजदूर को भी उसके घर पहुंचाएगा, इस संकल्प से कटिबद्ध सडकों पर निकल पडे अपनी दोस्त नीति गोयल और सहयोगियों के साथ, भारत के कामगारों की मदद करने के लिए। उनका अमेरिका से साथ निभाया, विकास खन्ना भारतीय मिशेलिन स्टार शेफ, और कई गुमनाम मित्रों ने जिन्होंने भारत के कामगारों को अपने घरों तक सकुशल पहुंचाने का न केवल बीडा उठाया, बल्कि उनके खाने-पीने से लेकर स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखा।
कोरोना का कहर भारत में कई तरह से बरपा है, हालांकि कोरोना से मरने वालों का रेट वैश्विक स्तर पर तुलना करने में काफी कम है। स्वास्थ्य मंत्रालय की माने तो वर्तमान में भारत के रेटिंग 48.19 प्रतिशत है। लेकिन भारत में भूख से मौत का डर गरीब कामगारों को तपती घूप में नंगे पांव मीलों का सफर तय करने पर मजबूर कर रहा है। जो उनकी मौत का कारण भी बन रहा है। भारत एक विशाल देश है। यहां कोरोना का खतरा कई प्रकार के संकटों में बदल रहा है। ऐसे में देश के कोने-कोने से दर्द पर मरहम लगाने वाली खबरे मानवता की इबारत लिख रहीं हैं। मदद के हजारों हाथ आगे बढे हैं, इनमें से ज्यादातर रहनुमाओं की खुद की माली हालात अच्छे नहीं, लेकिन मानवता का राजधर्म निभाने के लिए अपने घरों से निकल पडे हैं। कुछ ने राहगीरों को खाना-पानी पहुंचाया, पांव में चप्पल-जूते और कपडों से दवा तक का बन्दोबस किया, तो कुछ ने घर-घर राशन पहुचाया, हांलाकि आर्थिकी और महामारी की मार इस कद्र है कि भूख ने टृनों में ही लगभग 80 लोगों का जीवन लील लिया। मौत का यह सिलसिला अलग-अलग चोला ओढे बादस्तूर जारी है। भूख की तडप को कम करने के लिए बेगुसराय के ग्रामीणों ने अपने दम पर वहां से गुजरने वाली टृनों में खाना-पानी का बन्दोबस शुरू किया, जिसकी तारीफ देश के कई मुख्यमंत्रियों ने भी की है। कमाल का जज्बा है, हम भारतीयों का किसी ने गुल्लक फोडी, किसी ने जमीन बेच लोगों के लिए राशन इक्टठा किया। इस नि:स्वार्थ सेवाभाव को देश का हर नागरिक सलाम करता हैं। यकीनन इतिहास इन फरिश्तों में ज्यादातर का नाम दर्ज न कर पाये, लेकिन इतिहास इन गुमनाम फरिश्तों को याद रखेगा अपने अतीत के जख्मीं पन्नों में मरहम के रूप में ।
फिल्मी दुनिया का विलन पूरी दुनिया के दिलों को जीत चुका है। उसका प्रण है कि ‘जब तक मैं एक-एक मजदूर को घर नहीं भेज देता चैन से नहीं बैठूंगा........। अपनी प्रोफेसर मां और पिता के मानव सेवा संस्कारों में पला-बडा सोनू सूद अपने परिवार सहित दिन के चौबीसों घण्टे कामगारों की तकलीफ दूर करने में लगा है। उनकी जज्बे के फलस्वरूप देश की अनगिनत माताओं ने अपने बच्चों को सोनू सूद की तरह बनने की दुआऐं मांगी हैं। किसी मां ने अपने बच्चे का नाम सोनू सूद रखा है, तो किसी ने टवीटर से सोनू की बलाऐं उतारी है। ऐसी कितनी माताओं के हाथ इन मानवता के सेवकों की सलामती के लिए उठे हैं, जिनको टवीट करने का अत्याधुनिक तरीका तो नहीं आता, लेकिन दुआओं का पुराना सलीका, रातों को जागकर कुदरत से करना अच्छी तरह आता है। सोनू सूद और उनकी टीम पिछले कई हफतों से लोगों की सेवा कर रही है। हजारों कामगारों को अपने घर भेज चुकी है और हजारों को भेजने की तैयारी में जुटी है। प्रतिदिन लगभग 40-45 हजार लोगों का खाने का इन्तेजाम कर रही है।
सोनू सूद का कहना है, कि ‘जिन मजदूरों को हमने सड़कों पर छोड़ दिया, ये वे लोग हैं, जिन्होंने हमारे घर बनाए, हमारे ऑफिस बनाए, जहां हम शूटिंग करते हैं, हमारी रोड़े बनायी, जिनमें आज ये खुद पैदल चलने पर मजबूर हैं......। सोनू की मानव चिंता उन्हें मानवता का सेवक तो बनाती है, साथ ही उनकी कामगारों के प्रति संवेदनशीलता उन लाखों कामगारों के लिए उनके द्वारा बोले गए एक-एक शब्द कामगारों को संबल भी देते हैं। सोनू ने पहली बार लगभग 302 लोगों को बस से घर पहुंचाया और देखते ही देखते यह सिलसिला हजारों में तबदील हो गया। उनके द्वारा जिस तरह से मजदूरों की समस्याओं को व्यवस्थित निवारण दिया वह उनके सोशल मैनेजमेंट की बौद्धिक समझ को उजागर करती है। साथ ही हमारे समाज और सरकार को एक बेहतरीन सीख भी देती नज़र आती है। समस्या कितनी भी बडी हो यदि उसका प्रबन्धन अच्छे से किया जाए तो वह हल हो सकती है।
किसान मजदूरों को हवाई यात्रा से अपने घर भेजने वाले साधारण किसान पप्पन सिंह गहलोत, मजदूर मित्र संस्था के संयोजक अमर टंडन और उनकी पूरी टीम, भारत के हर गली-मोहल्लों के अलग-अलग हिस्सों से निकले वो हजारों गुमनाम लोग जो अपने नाम के लिए नहीं, बल्कि मानवता की सेवा के लिए, लोगों की मदद में जुटे हैं। जिनके बैंक अकाउंट में बहुत थोडे से पैसे हैं, लेकिन दिल का अकाउंट लोगों की सेवाभाव से भरपूर है। गरीब-कामगार, जरूरत मंदों की मदद में लगे हुए हैं। हमारे प्यारे भारत के इन फरिश्तों की तस्वीर शायद कभी सामने न आ पाये, लेकिन आने वाली पीढ़ियां इस मोहब्बत और सेवा के जज्बे से हर उस खौफ से लडने में डटी रहेंगी, जो मानवता के लिए खतरा बनेगा।
आज का वर्तमान कल के भविश्य का मार्ग दर्शक बनेगा। हालांकि समस्या यहीं नहीं समाप्त होती। इन कामगारों का घर का सफर जीविका के जददो-जहद के लिए आगे भी जारी रहेगा। शायद वर्तमान से भी ज्यादा बडी जददो-जहद के साथ। समाज और सरकारों को इन कामगारों के लिए पुन:विस्थापन की समस्याओं को जल्द ही हल करना होगा। ऐसे कई रास्ते खोजने होंगे जो इन कामगारों को अपना जीवन जीने में मदद करें। देश के इन कामगारों में लाखों लोगों के लिए मनरेगा एक वरदान साबित हो रहा है। कामगारों में बडी संख्या युवा कामगारों की है, जिनकी उर्जा का इस विपदा की घडी में स्वास्थ्य और सामाजिक सहयोग के कामों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है। हमारे युवाओं में गज़ब की इच्छा शक्ति हैं, यदि उनका सही उपयोग किया गया तो हम उनके माध्यम से अपने गांवों को इस बीमारी से सुरक्शित रख सकते हैं, और इन युवाओं के रोजगार का इन्तेजाम भी कर सकते हैं। समाज और सरकार के बेहतरीन बन्दोबस से इस समस्या से बाहर आने में मदद मिलेगी। तभी भारत के इन फरिश्तों का सेवाभाव सफल होगा।
(लेखिका-डा. नाज़परवीन)
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मजदूरों को सहारा देते गुमनाम फरिश्ते