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अंधेरे में प्रकाश की किरण  'साइलेंस की शक्ति,कोरोना से मुक्ति' 

अंधेरे में प्रकाश की किरण  'साइलेंस की शक्ति,कोरोना से मुक्ति' 

समस्या आती ही है जाने के लिए।दुःख के बाद ही तो सुख आता है।ऐसे ही कोरोना आया है तो जाएगा भी।बस!आवश्यकता है हमे विपरीत हालात में अचल और अडोल रहने की।
हमे समस्या से डरना नही है, बल्कि उसका सामना करना है।तभी हम कोरोना को हरा पाएंगे। इसलिये डर के स्थान पर अपने शक्ति स्वरूप को धारण करना है। 
कोरोना के भय को दूर करने के लिये मनोज श्रीवास्तव और डॉ शिप्रा मिश्रा की पुस्तक साइलेन्स की शक्ति और कोरोना से मुक्ति ,एक व्यावहारी समाधान प्रस्तुत करती है।
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण लॉक डाउन की अवधि में लिखी गई पुस्तक में बताया गया है किस प्रकार उपजी परिस्थितियों ने एक नकारात्मक वातावरण का आधार तैयार कर दिया। जिसके लिये एक आम आदमी एकदम तैयार नही था। 
परिस्थितियों का दबाब और स्थितियों के तनाव ने लोगो को जीवन मे अनिद्रा ,अनियंत्रित व्यवहार और अवसाद जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
पुस्तक में थॉट प्रोसेस को डिटेल में स्पष्ट करते हुए नेगटिव थॉट को पॉजिटिव थॉट में बदलने के सार्थक उपायो पर चर्चा की गई है।
लेखक का कहना है कि समय बदलने का इंतजार न करके अपने -अपने कार्य मे सकारात्मक रूप से लग जाये। क्योकि जब समय बदलेगा तब समस्या भी बदलेगी। समस्याओं का अंत नही है ,समस्याये जीवन का अभिन्न हिस्सा है। हर परिस्थिति में स्व स्थिति मजबूत करके चीजो का सामना करने को तैयार रहे।
पुस्तक सन्देश देती है कि कोरोना काल मे अपनी भूमिका को समझे। हमारी जिम्मेदारी स्वयं के प्रति है, अपने परिवार के प्रति है और समाज के प्रति है। अतः स्वयं परेशान हो और न ही दूसरों को परेशान करे।
   कोरोना संक्रमण से उपजी परिस्थितियों एवं लाक डाउन के कारण आईसोलेशन की जिंदगी जी रहे, नागरिकों में बढ़ती अवसाद की प्रवृति को समझने और इससे छुटकारा  पाने में पुस्तक से मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि पुस्तक में बताए मनोविज्ञानिक और आध्यात्मिक उपायो को अत्यंत सहज ढंग से प्रस्तुत किया गया है। 
लेखक मनोज श्रीवास्तव जो कि उत्तराखंड सूचना विभाग में सहायक निदेशक है, ने बताया कि इस पुस्तक को डॉ शिप्रा मिश्रा के साथ संयुक्त रूप से लिखा गया।
पुस्तक पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि कोविड समस्या नही बल्कि अवसर है। हमें अब कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा अपने जीवन की दैनिक दिनचर्या मे बदलाव करना होगा। कोरोना की वैश्विक महामारी आने के बाद लोगों में एक प्रकार से जीवन के प्रति भय और नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा हुआ है। जिसके चलते लोग मानसिक तौर पर परेशान हैं और नींद एवं तनाव जैसी स्थिति का सामना कर रहे है, जिसके कारण लोगों की जीवन शैली पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
मौजूदा परिस्थिति में लोगों का जीवन ऐसे प्रभावित हुआ है कि लोग जल्द ही अपना आपा खो देते हैं। लेकिन हमें इस सच्चाई को भी स्वीकार करना होेगा कि अब हमें कोरोना के साथ ही जीना है।
    अब हमें कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा। लोगों को अपनी जिंदगी बचाने के लिए अपनी जीवनशैली को बदलना ही होगा। इसके साथ ही अपने भविष्य की चुनौतियों से लड़ने के लिए सभी को तैयार रहना होगा। 
    हमें करोनो वाइरस को समस्या के रूप में न देखकर एक अवसर के रूप में देखना होगा। करोनो वाइरस ने मानवीय सभ्यता को यह संदेश दिया है कि व न तो प्रकृति से खिलवाड़ करे और ने ही अपने शरीर से खिलवाड़ करें। इस रूप में हमें अपने सम्पूर्ण लाइफ स्टाइल को बदलना होगा। प्रकृति के संरक्षण पर विशेष ध्यान देते हुए शारीरिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि के उपायों पर ध्यान देना होगा। सोशल डिस्टेंसिग, सार्वजनिक स्थलों पर मास्क का प्रयोग हमारी जीवन शैली में आ  चुका है। 
    इसके अतिरिक्त मानवीय संवेदना के विकास का भी मुद्दा करोना वाइरस के आगमन ने उठाया है। हमें मजदूरों की समस्या का ज्ञान करोना वाइरस महामारी ने दे दिया है। अतः सामान्य परिस्थियों में भी मजदूरों, श्रमिकों के प्रति सवेंदनशील व्यवहार करना बहुत जरूरी है। लॉक डाउन की अवस्था में उद्योगों और फैक्ट्रियों में कार्य प्रारम्भ करने की अनुमति दे दी गई है। परन्तु श्रमिकों एवं मजदूरों की अनुउपलब्धता के कारण सुचारू रूप से फैक्ट्रियां नहीं चल पा रही है। इस स्थिति में मजदूरों और श्रमिकों की महत्ता को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है। 
    मरीजों के प्रति उपेक्षा और अमानवीय व्यवहार की घटनाऐं भी सामने आ रही है जिसे किसी भी दृष्टि से उचित नही ठहराया जा सकता है। मरीजों के प्रति सहानुभूति की जरूरत नहीं हैं, बल्कि मरीजों को सहयोग, संरक्षण और उत्साह वर्धन की अधिक आवश्यकता है।लेखक की इससे पूर्व भी कई पुस्तकें राजयोग पर आ चुकी है।जो आध्यात्म के जरिए जीवन शैली में बदलाव का आधार सिद्ध हो रही है।ब्रह्माकुमारीज विचारों से प्रभावित मनोज श्रीवास्तव की यह पुस्तक कोविड से उपजी निराशा का मिथक तोड़ने में सफल होगी।जिसे एक सकारात्मक प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
(प्रस्तुति:डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )
 

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