YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

चीन ने गंवाया सुपर पावर बनने का मौका 

चीन ने गंवाया सुपर पावर बनने का मौका 

इस वक्त दुनिया के अधिकांश देश चीन से नाराज है, कुछ देश  गुस्से में उबल रहे है। इस संकट की घड़ी में चीन का व्यवहार असंवेदनशील, मौकापरस्त, हठधर्मिता वाला है। कोरोना के फैलने के बाद उसकी गतिविधियाँ संदिग्ध है। जब अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया जैसे देशों ने उससे कोरोना की संदिग्ध जन्मस्थली वुहान लेब की जाँच करने की माँग की तो चीन ने साफ मना कर दिया। इस नकारात्मक उत्तर से सबको लगा कि चीन ने कोरोना को जानबूझकर फैलाया है। चीन के असहयोगी रवैये से अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने भी उसे सबक सिखाने की ठान ली।
आपने किसी स्टेज वन वाले कैंसर के मरीज को देखा होगा,  वह पूर्ण स्वस्थ दिखाई देता है, पर उसे नही पता होता कि वह मृत्यु की ओर तेजी से बढ़ रहा है। इस समय चीन की स्थिति स्टेज वन के मरीज जैसी हो गई है। वह रोज खोखला होता जा रहा है। पिछले तीन महीनो में उसको भारी आर्थिक नुकसान हुआ। मार्च के प्रथम सप्ताह में उसका फोरेक्स रिजर्व 3399 बिलियनअमेरिकन डॉलर था, जो अप्रैल के अंत तक 3091 बिलियन डॉलर रह गया है। उसके बाद चीन नेआंकड़े देने ही बन्द कर दिए है। अनुमान है, उसका फोरेक्स रिजर्व 15 बिलियन प्रति सप्ताह की दर से कम हो रहा है। दूसरे पिछले महीने यू एस सीनेट ने अमेरिकन स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टिड चीन की लगभग 800 कम्पनियों को डीलिस्टड करने का बिल पास किया है। इन्हें डीलिस्ट करने की प्रक्रिया में बहुत सारी कानूनी  विवाद की शुरुआत हो चुकी है। इसी प्रकार भारत और कई यूरोपीय देशों ने भी अपने स्टॉक एक्सचेंजों में चीन के निवेशको को रोकने के लिए नियम सख्त कर दिए है।  कुछ दिन पहले अमेरिका ने हांगकांग के साथ विशिष्ट व्यापार वाला दर्जा समाप्त कर दिया है। अकेले हांगकांग से ही चीन को सालाना चार सौ से अधिक बिलियन अमेरिकन डॉलर की कमाई होती थी।  कोरोना संकट के बाद कई वित्तीय एजेंसी चीन की आर्थिक हानि का अनुमान लगा रही है। सबके आंकड़े अलग-अलग है। यदि सबका औसत निकाला जाए तो चीन को अब तक 1600 बिलियन अमेरिकन डॉलर का नुकसान हो चुका है। ऊपर से निर्यात मूलक अर्थव्यवस्था होने पर ऑर्डर न होने से चीन की बहुत सारी फैक्ट्रियाँ बन्द पड़ी है। रिसकर आती खबरों के अनुसार चीन के 8 करोड़ मजदूर बेरोजगार हो चुके है। कोढ़ में खुजली यह कि चीन से हजारों कम्पनियाँ शिफ्ट होकर अपने या दूसरे देशों में जाने तैयारी कर रही है। कोरोना के बाद चीन की BRI योजना भी खटाई में पड़ती दिख रही है। यह सब चीन के लिए एक बुरे सपने जैसा है।
मुझे लगता है यह देश शापित है। जब भी यह अपने स्वर्णकाल तक पहुँचने को होता है, इस समय ऐसी गलती कर बैठता है कि इसका पतन शुरू हो जाता है। सन 1400 में चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा जहाजी बेड़ा था जिसे 'ट्रेजर फ्लीट' कहा जाता था। ट्रेजर फ्लीट में 3500 जहाज थे। उनमें कुछ जहाज यूरोप में बने जहाजो से पाँच गुना बड़े थे। उन जहाजो की विशालता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उनमें कुछ की लम्बाई 120 मीटर होती थी। (वास्कोडिगामा के जहाज की लंबाई 19 मीटर थी) एक जहाज में 1500 यात्री चलते थे। जब चीन का जहाजी बेड़ा अफ्रीका में व्यापार के लिए निकलता था तो तीन सौ से अधिक जहाज एक साथ जाते थे। 
विशालता चीनीयों को सदैव प्रिय रही है, इतनी प्रिय है कि चीनी इसके बोझ में स्वयं दब जाते है। चीन की दीवार भी इसका उदाहरण है। इतने सारे जहाजो का खर्च और रखरखाव उनसे किए व्यापार की कमाई से कम पड़ रहा था। यह घाटा धीरे-धीरे बढ़ता गया। परेशान होकर  सन 1525 में उस समय के मिंग वंश के राजा ने पूरे बेड़े को आग लगाकर नष्ट कर दिया। यदि उस समय चीन अपनी नौ सेना का प्रयोग किसी दूसरे रूप में करता, तो हो सकता है, उस समय विश्व का सबसे शक्तिशाली देश बन जाता।
अपनी बेवकूफी भरी हरकतों से कोरोना को पूरी दुनिया में फैलने देकर चीन ने एक बार फिर वही गलती कर दी है। चीन ने सुपर पावर बनने का मौका गवाँ दिया। विश्व समुदाय में उसकी छवि ध्वस्त हो गयी है। विदेशों में उसके नागरिकों को पीटा जा रहा है। दो, तीन देशो को छोड़ दे, तो आज चीन अकेला खड़ा है।  आश्चर्य यह कि इतनी बुरी स्थिति में भी वह पड़ोसियों से झगड़ रहा है।  भारत, जापान, वियतनाम इसके उदाहरण है। लद्दाख, सिक्किम पर भारतीय सेना से टकराव पैदा करके, वह भारत को धमकाना चाहता है। चीन की मंशा है, भारत का झुकाव अमेरिका की तरफ ना हो। जबकि अमेरिका भारत के लिए फूल मालाएँ लिए खड़ा है। चीन उलटे भारत में अस्थिरता फैलाना चाहता है। चीन छोड़ने वाली कम्पनियाँ भारत न आ पाए। वह हमसे युद्ध नही चाहता, यदि चाहता तो उसके पास डोकलाम विवाद अच्छा मौका था। तब उसका व्यापार ठीक चल रहा था, और भारत भी आज की अपेक्षा कम शक्तिशाली था। 
चीन को आभास चुका है कि उसके स्वर्णकाल का उत्सव खत्म होचुका है। अब उसके सामने ढलान ही ढलान है। अमेरिका और यूरोपीय देश उसके पीछे पड़े हैं। इन देशों का व्यवहार भेड़ियों के झुंड की तरह होता है जो शिकार को थकाकर मारते है।  इनके हमलें तो शुरू हो चुके है। चीन के मर्मस्थलों की टोह लेना अभी बाकी है। यदि चीन इनके सामने नही झुका तो कुछ सालों तक ही अपने को बचा पाएगा, यूरोपीय देश मिलकर चीन का शिकार करके ही दम लेंगे। सोवियत संघ के विघटन के समय सबने इन देशों का व्यवहार सारी दुनिया ने देखा है। यूरोपीय देश अफ्रीकी देशों की तरह नही है, जहाँ राजनीतिज्ञों को रिश्वत देकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है। चीन के विरोध में खड़े देश अपनी जनता के प्रति जवाबदेह है। देर-सवेर इस कम्युनिस्ट देश से हिसाब और वसूली करके ही मानेंगे।
(लेखक-अनिल खंडूजा)

Related Posts