देश की राजधानी दिल्ली में किन-किन कोरोना प्रभावितों का इलाज होगा, इस बात को लेकर दिल्ली सरकार और एलजी में तनातनी मची हुई है। दिल्ली में कोरोना मरीज़ों की संख्या जिस तेज़ी से बढ़ी है उससे लेकर दिल्ली सरकार के हाथ पाँव फूल गए हैं लिहाज़ा उसने सिर्फ़ दिल्ली के निवासियों के लिए ही दिल्ली अस्पताल में इलाज का फ़रमान जारी कर दिया। उधर एलजी जो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि हैं, ने यह फ़रमान उलट दिया है। वो चाहते हैं कि सभी का इलाज होना चाहिए।
दोनों के बीच की इस तनातनी का सीधा सा मतलब है कि दिल्ली में अस्पतालो की इतनी क्षमता नहीं है कि वह सभी का इलाज कर सके। मात्र एक कोरोना ने राज्यों को सीमाओं में बाँधकर रख दिया है। दिल्ली क्या लगभग सभी राज्य अपने नागरिकों को लेकर क्षेत्रवाद की ज़ंजीरों में जकड़ गए हैं। एक राज्य के नागरिक दूसरे राज्य के नागरिकों को लेकर ऐसे आशंकित और डरे हुए हैं जैसे वह भारतीय नागरिक न होकर दुश्मन मुल्क का रहवासी हो।
दिल्ली में मरीज़ों को लेकर मची घमासान यह समझने के लिए काफ़ी है कि देश की राजधानी आज़ादी के 73 साल बाद भी ढाँचागत व्यवस्थाओं के मामले में पंगु है। दिल्ली की कुल आबादी एक करोड़ नब्बे लाख के आसपास है, फिर भी दिल्ली की अवाम मूलभूत सुविधाओं को मोहताज है। आज भी वहाँ पानी, बिजली, स्वस्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए लम्बी क़तार देखी जा सकती है।
दिल्ली का प्रागैतिहासिक, मध्यकालीन और अंग्रेज़ी इतिहास अगर भुला भी दिया तो आज़ाद हिंदुस्तान के रहनुमाओं ने आख़िर दिल्ली के लिए क्या क्या है, इस पर विचार आवश्यक है। आज़ादी के बाद से देशभर से चुनकर आए सांसदों ने, दिल्ली सरकार के विधायकों ने, तत्कालीन और निवर्तमान आला अफ़सरों ने आख़िर दिल्ली की छाती पर होरा भूँजा है। दिल्ली जो पूरी दुनिया के लिए ‘आयकॉनिक’ बन सकता था, उसके लिए इन्होंने क्या किया। दिल्ली में देश के कोने-कोने से आए ढेरों नेता, अफ़सर और उद्योगपतियों ने अपना आशियाना बनाया, नाम और पैसा कमाया पर किसी ने भी दिल्ली दुनिया को ‘आयकॉनिक’ शहर बनाने की ज़िद ठानी। स्व. संजय गांधी ने ज़रूर दिल्ली को सुनियोजित और विकसित शहर बनाने का गम्भीर प्रयास किया था। उन्हीं की बदौलत नई दिल्ली विकसित हुई।
यूँ तो देश को बुलंदी पर ले जाने के नारे बहुतों ने दिए। कभी कहा गया दिल्ली को टॉप क्लास शहर बनाया जाएगा। कभी कहा गया कि मुंबई को संघाई (चीन) जैसा पुनर्विकसित किया जाएगा, किसी ने कहा बनारस को क्योटो और गुजरात में विश्व स्तरीय नया शहर बसाया जाएगा, पर अब तक ज़मीनी हक़ीक़त सपाट की सपाट है।
दुबई और अस्थाना का उल्लेख करना यहाँ लाज़िमी है। 1960 के पहले दुबई रेगिस्तान में बसने वाले एक गाँव मात्र था लेकिन आज दुबई दुनिया के टॉप शहरों में गिना जा जाता है। पूर्ण विकसित और सर्वसुविधयुक्त दुबई आज दुनिया के बड़े व्यापारिक और पर्यटन केंद्र के तौर पर पहचाना जाता है। इसी तरह कजाकिस्तान ने नब्बे के दशक में अपनी नई राजधानी अस्थाना में बनाई। मात्र बीस सालों में यह शहर मिनी दुबई की तरह खड़ा कर दिया गया। सुविधाओं और व्यवस्थाओं की बात करना बेमानी होगा, यहाँ की सबसे बड़ी ख़ासियत है हर बड़े देश की निर्माण कला वाली बिल्डिंग दिख जाएगी।
कहने का आशय यह कि 73 साल बाद भी दिल्ली पंगु और मोहताज बनी हुई है। विकसित शहर के तमगे से वंचित है। देश के सियासतदानों ने इतने लम्बे अंतराल में भी दिल्ली को बीजिंग, बर्लिन, दुबई, अस्थाना आदि जैसा नहीं बना सके। अब जब देश की राजधानी के ये हालात हैं तो देश की स्थितियाँ ख़ुद ब ख़ुद समझी जा सकती है।
(लेखक-जहीर अंसारी)
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