दर्पण ने नग़मे रचे, महक उठा है रूप !
वन-उपवन को मिल रही, सचमुच मोहक धूप !!
इठलाता यौवन फिरे, काया है भरपूर !
लगता नदिया में ' शरद', आया जैसे पूर !!
उजियारा दिखने लगा,चकाचौंध है आंख !
मन-पंछी उड़ने लगा, नीलगगन बिन पांख !!
अधरों पर लाली खिली, गाल हो गये लाल !
नयन नशीले देखकर, आने वाला काल !!
अंगड़ाई,आवेश है, मस्ती है,उन्माद !
उजड़ेगा या अब 'शरद', हो कोईआबाद !!
बासंती परिवेश है, बासंती है भाव !
वह ही खुश प्रिय का नहीं, जिसको आज अभाव !!
मन बौराया,तन हुआ, मादकता- पर्याय !
अंतरमन रचने लगा, गीतों का अध्याय !!
नगरी है ये नेह की, दिल मिलते बेचैन !
प्यासे हैं,सबके अधर, नयन बहुत बेचैन !!
रूप,गंध,रस,प्रीत है, पलता है अनुराग !
सबके उर गाने लगे, मिलन- प्रणय के राग !!
16जून/ईएमएस
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रूप के दोहे