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एक था सुशांत,क्यो होती है जिंदगी को खत्म करने की जंग!    

एक था सुशांत,क्यो होती है जिंदगी को खत्म करने की जंग!    

बिहार के पटना में जन्में सुशांत राजपूत का फिल्मी करियर काफी अच्छा चल रहा था। अपने करियर में उन्होंने एमएस धोनी जैसी हिट फ़िल्म दी थी। फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले सुशांत थिएटर और टेलीविजन धारावाहिको में  लोकप्रिय चेहरा बन चुके थे।अवसाद के कारण उनके द्वारा आत्महत्या से सभी अचंभित है।
जाने माने चिंतक यशपाल सिंह के शब्दों में,' उन्होंने चांद पर फ्लैट खऱीद लिया। टीवी पर आए तो छा गए, बड़े पर्दे पर महज सात साल में वो हासिल किया, जो लोग दशकों तक नहीं कर पाते। क्या नहीं था सुशांत सिंह राजपूत के पास। मायानगरी में एकाकीपन का कोई साथी नहीं, लाक डाउन के चलते अटकती फिल्मों की रिलीज, रिश्तों की आधी अधूरी बनावट से उपजा दर्द और उसके बाद छह माह से अवसाद के काले साये। अंजाम जो हुआ, वह बेहद दर्दनाक। अपने किरदारों में जिंदगी की सीख देने वाला एक उदीयमान सितारा अपने हाथों जिदंगी की लकीरें मिटा बैठा। '
यूं तो इस खुशनुमा जिंदगी में भी स्वयं को स्वयं के द्वारा बोये कांटो की चुभन न सह पाने पर स्वयं ही स्वयं की जिंदगी का खात्मा करने की घटनाएं आम होती जा रही है।कोई ऐसा कदम भूख से बेहाल होकर उठाये,कर्ज़ से उत्पीड़ित अपनी जिंदगी से हार मान ले, तो सहजता लगती है।परंतु जब कोई धनदौलत से परिपूर्ण, यश कीर्ति से लबरेज व्यक्ति ऐसा कदम उठाये तो सवाल उठने स्वाभाविक है कि ऐसा कम से कम उनके द्वारा क्यो किया गया?
गुरुदत्त, दिव्या भारती से लेकर  सुशांत सिंह राजपूत जैसी फ़िल्मी हस्तियों को आखिर जिंदगी से प्यारी मौत क्यों लगी? फ़िल्म अभिनेता गुरुदत्त सन 1964 में अपने घर मे मृत पाए गए थे। कभी वह भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के दिग्गज माने जाते थे ।  बेहतरीन फ़िल्म निर्देशक के साथ ही बेहतरीन अभिनेता भी थे।अक्तूबर 1964 में मुंबई के अपने अपार्टमेंट में गुरुदत्त मृत पाए गए थे। वही मनमोहन देसाई सफल फ़िल्मकारों में  गिने जाते थे। उन्होंने  अमर अकबर एंथनी, कूली और मर्द जैसी फिल्में बनाई थी।  मार्च 1994 में गोरेगांव स्थित उनके घर पर उनकी मौत हो गई।  अभिनेत्री दिव्या भारती  ने पाँचवें फ़्लोर स्थित अपने अपार्टमेंट से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। 5 अप्रैल 1993 को इस घटना के समय दिव्या भारती सिर्फ़ 19 साल की थीं।अभिनेत्री सिल्स स्मिता जिनका असली नाम विजयलक्ष्मी था। वह सितंबर 1996 में अपने चेन्नई स्थित फ़्लैट में मृत पाई गईं।
रीम कपाड़िया जो डिपंल कपाड़िया की सबसे छोटी बहन थीं,ने कुछ हिन्दी फ़िल्मों में काम किया था।वह सन 2000 में लंदन में  मृत पाईं गईं। उनके बारे में माना गया कि उन्होंने आत्महत्या की थी। नफ़ीसा जोसेफ़ एमटीवी की मशहूर वीजे थीं, साथ ही उन्होंने मॉडलिंग भी की थी। 1997 में उन्होंने फ़ेमिना मिस इंडिया यूनिवर्स का ख़िताब जीता था और मिस यूनिवर्स की एक फ़ाइनलिस्ट भी थीं।सन  2004 में वर्सोवा स्थित अपने फ़्लैट में उन्हें मृत पाया गया था।
इसी तरह कुलजीत रंधावा ने फ़िल्म बाई चांस की शूटिंग ख़त्म की थी और स्टार वन के सीरियल स्पेशल स्क्वाड में भी उन्हें लीड रोल मिला हुआ था।उन्होंने अपने सुसाइड नोट में  लिखा था कि जीवन का दबाव वे नहीं झेल पा रही ।वही बॉलीवुड में जिया ख़ान की एंट्री काफ़ी ज़ोरदार हुई थी।  शुरुआत में अमिताभ बच्चन और आमिर ख़ान जैसे कलाकारों के साथ काम किया ।सन 2013 में उनका शव उनके घर में मिला था। 
प्रत्युषा बनर्जी जो भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री के लिए बडा नाम थी,  ने भी आत्महत्या कर ली थी। सन 2016 में उनका शव उनके फ़्लैट से मिला था।माना गया था कि वे काफ़ी दिनों से डिप्रेशन में चल रही थीं ।टीवी सीरियल बालिका वधु से वे काफ़ी चर्चा में रही। वे रियालिटी शो बिग बॉस का भी हिस्सा रही ।27 दिसंबर, सन 2019 को  एक्टर कुशल पंजाबी ने मुंबई के पाली हिल स्थित अपने घर में आत्महत्या कर ली थी। टेलीविजन धारावाहिक सीआईडी, लव मैरिज, देखो मगर प्यार से,  फ़ियर फ़ैक्टर, कभी हां कभी ना जैसे लोकप्रिय टीवी कार्यक्रमों में वह  दिखाई दिए।  उन्होंने रिएलिटी टीवी डांस शो 'झलक दिखला जा' के सातवें सीज़न में भी हिस्सा लिया था।
क्यों उन्होंने भरी जवानी में अपने कैरियर को उड़ान देने के बजाए,जीवन की असफलताओ को सफलता में बदलने के लिए धैर्य को धारण करने के बजाए जिंदगी से हार मानना ही बेहतर समझा?दरअसल यह एक ऐसा अवसाद है जो मनुष्य को सुनहरी जिंदगी से मौत के ख़ौफ़नाक अंधेरे की तरफ ले जाता है।जिसका कारण
जरूरत से ज्यादा पाने की चाह ,जीवन मे अधीरता अर्थात धैर्य की कमी , हार स्वीकार न करने की बेतुकी जिद्द ,प्यार में असफलता को ही जीवन की अंतिम असफलता का वहम जैसे अनेक कारण अच्छे खासे इंसान की जिंदगी में अंधेरा कर देते है।काश!ऐसे लोग "अध्यात्म" की तरफ ज़रा भी देख लेते, आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए श्रीमद्भागवत गीता जैसे ग्रन्थों से जीवन जीने की कला सीख लेते।
अपनी सोच को धन दौलत भोग विलास से हटाकर थोड़ा सा अध्यात्म की ओर मोड़ लें तो  संतोष और धैर्य स्वतः प्राप्त हो जाएंगे। धन के लालच में प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या ,द्वेष ,जैसे विकार  आध्यात्मिक ज्ञान से स्वतः समाप्त हो जाते है। अहंकार का कचरा भी खुद ब खुद खत्म हो जाता है।वास्तविकता यह है कि जब हम ,'वह मुझसे कम योग्य है, फिर भी उसे मुझसे ज्यादा मिल गया।' इसी प्रकार ,'पीठ पीछे वह मुझे बुरा भला कहता है।सब मतलब के यार हैं कोई मेरा सच्चा दोस्त कोई नहीं।वह मेरा दुश्मन है, मुझे उसे मजा चखाना है।'जैसे नकारात्मक विचार ही हमे अवसाद की ओर धकेल देते है।
अगर ये विचार मन में नहीं आते तो आप सकारात्मक सोच के धनी हैं। अच्छा यही होगा कि ये विचार मन में आते ही उन्हें अपने से दूर कर दें अर्थात मन से परे हटा दे।वस्तुतः जिंदगी का उद्देश्य है  खुश रहना। स्वयं के बजाए सामने वाले के गुणों की प्रशंसा करना।फिर जो शांति व सुख आपको मिलेगा, वह ही सुखद जिंदगी का आधार है।
(लेखक-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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