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दर-दर भटक रहे हैं सर्दी खांसी और बुखार के मरीज  

दर-दर भटक रहे हैं सर्दी खांसी और बुखार के मरीज  

डॉक्टर नहीं कर रहे मरीजों का इलाज
फीवर क्लीनिक में रेफर करके जिम्मेदारी से बच रहे हैं डॉक्टर
केंद्र एवं राज्य सरकारों में जो नई गाइडलाइन 15 मई 2020 को जारी की है। उसके बाद से साधारण सर्दी खांसी बुखार और गंभीर बीमारियों के मरीजों का उपचार, निजी क्षेत्र के डॉक्टरों और अस्पतालों को करने से रोक दिया गया है। निजी क्लीनिक अस्पताल और विशेषज्ञ डॉक्टर मरीज के आने पर उसे सरकारी अस्पतालों में बने फीवर क्लीनिक में जाकर जांच कराने को कहते हैं। वहां जांच हो जाने के बाद ही मरीज के उपचार करने के लिए तैयार होते हैं। जिसके कारण गंभीर रोग से ग्रसित मरीज और साधारण सर्दी, बुखार, जुकाम से पीड़ित मरीजों को भी इलाज नहीं मिल पा रहा है। मरीजों को पहले फीवर क्लीनिक जाना होता है, वहां पर उसका अनिवार्य रूप से सेंपल लिया जाता है। डॉक्टर मरीज की बात सुनकर उसे सर्दी खांसी या बुखार की दवाई देकर विदा कर देते हैं। कोरोना की जांच रिपोर्ट आ जाने के बाद ही मरीज का इलाज शुरू हो पाता है। जिसके कारण कई गंभीर रोग से पीड़ित मरीजों की असमय मौत को जाने तथा मरीजों को 2 से 3 दिन तक लगातार तकलीफ झेलना पड़ती है। जबकि उन मरीजों में कोरोना का कोई संक्रमण नहीं होता है, जांच रिपोर्ट भी नेगेटिव आती है, किंतु सरकारी नियम और फीवर क्लीनिक की बाध्यता के चलते एमडी, एमएस, एमबीबीएस, होम्योपैथी चिकित्सक, आयुर्वेदिक चिकित्सक और विषय के विशेषज्ञ डॉक्टर और मरीजों को हाथ भी नहीं लगा रहे हैं। मरीजों से पिछले कुछ दिनों से कोरोना संक्रमण को लेकर जो अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। उससे मरीज भयाक्रांत होकर असमय ही मृत्यु का शिकार हो रहा है। कोरोना संक्रमण के भय और डॉक्टरों के इस व्यवहार से मरीज के परिजन भी भयाक्रांत होकर मरीज से दूरी बना लेते हैं। जिसके कारण मरीजों का जीवन बड़ा दुभर हो गया है।
शपथ का पालन करने से बचे डॉक्टर
चिकित्सकों को डिग्री देते समय शपथ दिलाई जाती है कि वह 24 घंटे मरीज का उपचार करेंगे, उन्हें सेवा भावना की शपथ दिलाई जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई फैसलों में स्पष्ट किया है कि डॉक्टर का सबसे पहला कर्तव्य मरीज का इलाज करना है, उसके बाद जरूरी आवश्यक कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करें। कानूनी औपचारिकता के नाम पर मरीज के इलाज को रोका नहीं जा सकता है। पुलिस केस के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है। कोरोना संक्रमण के इस दौर में सरकार और जिला प्रशासन के तुगलकी फरमान उन्हें जिम्मेदारी से बचाते है। अब डॉक्टर भी कोरोना संक्रमण की गाइडलाइन को आधार बनाकर मरीजों का उपचार नहीं कर रहे हैं।
फीवर क्लिनिक बनाम कोरोना क्लीनिक
सरकार ने जो नई गाइडलाइन जारी की है, उसमें सभी सरकारी अस्पतालों में फीवर क्लिनिक बनाए गए हैं। जिन मरीजों में बुखार सर्दी और खांसी के सामान्य लक्षण है। ऐसे मरीजों का इलाज करने से डॉक्टरों पर रोक लगाई गई है। डॉक्टरों से कहा गया है कि इस तरह के मरीजों को पहले फीवर क्लीनिक भेजें जहां पर उनका सैंपल लिया जाएगा। फीवर क्लीनिक में मरीज का सेंपल लेकर उसे बुखार सर्दी खांसी की सामान्य दवा देकर उसका नाम पता मोबाइल नंबर लिखकर वापस भेज दिया जाता है। जब कोरोना की रिपोर्ट आ जाएगी उसके बाद ही उस मरीज का इलाज सरकारी या निजी क्षेत्र के अस्पताल या डॉक्टर कर रहे है।
सरकार के इस तुगलकी फरमान से गंभीर रोग से ग्रसित कई मरीजों की कोरोना का संक्रमण नहीं होते हुए भी असमय मृत्यु हो गई है। वही सर्दी खांसी से पीड़ित मरीज रिपोर्ट आने तक तकलीफ झेलने के लिए विवश होते हैं। परिवारजन कोरोना संक्रमण को लेकर भयभीत हो जाते हैं जिसके कारण मरीज को वह भी उपेक्षित छोड़ देते हैं। शहर के सभी चुनिन्दा सरकारी अस्पतालों को फीवर क्लीनिक घोषित किया गया है। बिना यहां दिखाएं मरीजों का उपचार शुरू नहीं हो सकता है।
कई निजी डॉक्टरों और अस्पतालों के लाइसेंस रद्द
जिन निजी क्षेत्र के डॉक्टरों और अस्पतालों ने मरीज का इलाज फीवर क्लीनिक में पंजीयन कराएं बिना शुरू कर दिया था। उन डॉक्टरों और अस्पतालों का पंजीयन जिला प्रशासन द्वारा रद्द कर दिया गया। उसके बाद से डॉक्टरों ने मरीजों को देखना ही बंद कर दिया। अब जो मरीज फीवर क्लीनिक से कोरोना की जांच रिपोर्ट लेकर आता है। निजी क्षेत्र के डॉक्टर और अस्पताल उन्हीं का इलाज करते हैं। जिसके कारण रोजाना गंभीर रोगों से ग्रसित कई मरीजों की असमय मौत हो रही है। वही डॉक्टर भी अब अपनी पेशेवर जिम्मेदारी से बच रहे हैं।
फीवर क्लीनिक मेंमरीजों का मजाक
फीवर क्लीनिक में सरकारी डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई जाती है। निजी क्षेत्र के डॉक्टरों और अस्पतालों में कार्यरत विशेषज्ञों से कम योग्यता होने के बाद भी मरीजों के भाग्य विधाता सरकारी डॉक्टर और सरकारी अस्पताल बन गए हैं। फीवर क्लीनिक में केवल मरीजों के सैंपल जांच के लिए लेकर उन्हें वापस भेज दिया जाता है। फीवर क्लीनिक के डॉक्टर मरीज की जांच भी नहीं करते हैं सर्दी खांसी की गोली देकर मरीज को चलता कर देते हैं। अब उसका भाग्य है, यदि कोरोना की रिपोर्ट नेगेटिव आ जाती है तो यह रिपोर्ट लेकर वह सरकारी एवं निजी क्षेत्र में अपना इलाज करा पाता है। जब तक रिपोर्ट नहीं आती है, तब तक वह भगवान और फीवर क्लीनिक के भरोसे के झूले में झूलता रहता है। कोरोना संक्रमण के इस दौर में रोजाना सरकार, राज्य सरकार और जिला प्रशासन अपनी मनमर्जी से नियम बनाकर लागू करा देते हैं। इसमें मरीजों की तकलीफों को अनदेखा कर दिया जाता है। कोरोना संक्रमण से बचाव के उपचार करते हुए डॉक्टरों को प्राथमिक चिकित्सा सुविधा और मरीज की जान बच सके, इसके लिए तुरंत प्रयास करना होते हैं। सरकार खुद ही मरीजों को भगवान भरोसे छोड़कर अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास कर रही है। इससे आम लोगों में नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। फीवर क्लीनिक को अब लोग यमराज क्लीनिक की तरह देखने लगे हैं। सब हैरान और परेशान हैं। "समरथ को नहिं दोष गुसाईं। " तुलसीदास जी को याद करते हुए "होई वही जो राम रचि राखा" की चौपाई को सत्य मानने के अलावा, मरीज के पास और कोई अन्य विकल्प भी नहीं होता है।
 (लेखक-सनत कुमार जैन)
 

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