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अपने आपसे प्यार करें  “सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है”

अपने आपसे प्यार करें  “सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है”

आज शहरयार की इस शायरी को हर किसी को समझना जरूरी है। सुशांत सिंह जैसे नामी अभिनेता का आत्महत्या करना पूरे देश में एक चिंता का विषय बना हुआ है। लोग जिन भौतिक चीजों के लिए अधेड़ उम्र तक पहुँच जाते हैं वह सब बल्कि उससे भी कहीं ज्यादा यानि नाम, शोहरत, बैंक बेलेंस, घर, गाड़ी और एक सेलिब्रिटी का रुतबा यह सब भी रोक नहीं पाया सुशांत को आत्महत्या करने से। इससे भी बड़ा कुछ तो होगा जिसकी कमी ने सुशांत को 6 महीने से अवसाद में घेर रखा था। 
एक सर्वे के मुताबिक हर साल लगभग 8 लाख लोग मानसिक बीमारी से तंग आकर आत्महत्या कर लेते हैं।  आपको जानकार हैरानी होगी कि हर 9 में से 1 व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार है। अगर पूरे विश्व की बात की जाए तो पहले नंबर पर रूस और दूसरे नम्बर पर भारत ऐसा देश है जहाँ लोग सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं।  क्या जिंदगी की कोई भी परेशानी जिंदगी से बड़ी हो सकती है ?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर कोई व्यक्ति इस स्थिति तक कैसे पहुँच जाता है कि वह अपने जीवन का अंत करने का निश्चय कर लेता है। उसे अपने जीवन को खत्म करने के अलावा कोई और रास्ता क्यों नहीं सूझता ? क्यों वह अपने आपको सँभालने की कोशिश नहीं करता ? क्यों वह किसी से यह शेयर नहीं करता कि वह ऐसा कदम उठाने वाला है, ताकि कोई तो उसे रोक ले ? क्यों उसके मन में मरने का डर नहीं आता ? क्यों वह यह नहीं सोचता कि उसके जाने से उसके अपनों का क्या होगा ?
बहुत से ऐसे प्रश्न हैं  जो वह जाने के बाद छोड़ देता है और उनका जवाब किसी के पास नहीं होता क्यूंकि किसी ने उन सवालों को शायद कभी जानने की कोशिश ही नहीं की होगी, अगर की होती तो जाने वाला नहीं जाता।
आजकल हम जिस भागदौड़ का हिस्सा बने हुए हैं उसमे  हम पेट भरने के लिए नहीं बल्कि एक चकाचैंध भरी लाइफ जीने के लिए दौड़ रहे हैं। इस चकाचैंध की दुनिया में इतना दिखावा और बनावटीपना है कि आपको अपनी आँखों से सच्चाई के अलावा सभी कुछ साफ नजर आता है। 
घर, मकान, गाड़ी, सोना, बैंक बेलेंस, ब्रांडेड कपड़े, घड़ी और न जाने क्या-क्या पाने के बाद भी यह दौड़ एक पल के लिए थमती नहीं है बल्कि पहले से ज्यादा इसकी गति तेज हो जाती है। क्यूंकि अब एक और बड़ा घर, पहले से बड़ी गाड़ी और सब कुछ पहले से ज्यादा और अच्छे को पाने की चाहत कभी खत्म नहीं होती। जिस तरह बड़ा और अच्छा का कोई अंत नहीं है वैसे ही इस रेस का फाइनल रिबन कहीं नहीं बंधा यानि यह दौड़ कभी खत्म नहीं होती। हर कोई इसमें दौड़ रहा है। हम भौतिक सुख पाने के लिए मानसिक सुख और चैन खो चुके हैं। 
आपके पास बहुत पैसा है जिससे आप दुनिया का हर सुख खरीद सकते हैं लेकिन पैसे के पीछे भागते-भागते आप जीना भूल चुके हैं, आप बिस्तर भले ही महंगे से महंगा खरीद लें लेकिन चैन की नींद किसी भी कीमत पर खरीदी नहीं जा सकती। आपके गले में भले ही सोने की मोटी-मोटी चेन हों लेकिन आपको आंतरिक सुख-चैन  नहीं दे सकती। आप घूमने फिरने पर लाखों खर्च कर लें लेकिन आपके चेहरे पर बिना वजह हंसी नहीं फूट सकती। आखिर क्या हो गया है हमें ? क्यों हम रोबॉट बनते जा रहे हैं ? हर जगह तुलना, तारीफ, प्रोमोशन इन सभी चीजों से घिरते जा रहे हैं ? क्यों हम अपने लिए जीना भूल चुके हैं ? क्यों हम दूसरों के लिए जी रहे हैं ?
खुल कर जिएं
एक शब्द जो आपने कई बार सुना होगा ‘भाड़ में जाने दो’। जी बिलकुल भाड़ में जाने दीजिये सभी को। अपने लिए जिएं। अगर आपको पता है कि आप कोई अच्छा काम कर रहे हैं तो आप खुश होइए, अपने लिए अच्छे कपडे़ पहनिए, अपने लिए तैयार होइए, घर में कोई मेहमान न भी आये तब भी घर को सजा कर रखिये, अपने लिए भी अच्छे-अच्छे पकवान बनाइये, घूमने जायें तो हर पल को एन्जॉय करिये, आपके चेहरे पर खुशी केवल फोटो खिंचवाने तक ही सिमट कर न रहे बल्कि आप हर पल  मुस्कुराते रहिये, ऑफिस में अपने हिसाब से काम करिये कोई जरुरत नहीं है किसी तरह के दबाव में काम करने की। याद रखिये अगर आपके अंदर काबलियत है तो उसके दम पर काम करिये। आपकी नौकरी किसी के रहमो-कर्म पर नहीं बल्कि आपकी काबलियत पर टिकी है इसलिए कभी अपना आत्मसम्मान मारकर काम मत करिये।
अपना मी टाइम जरूर निकालें
आप एक महिला हो या पुरुष आपका अपना मी  टाइम जरूर होना चाहिए। एक ऐसा टाइम जो केवल आपका अपना हो। जहां कोई रोक-टोक, कोई ताँक-झाँक और किसी तरह की कोई जिम्मेदारी न हो। हम सभी एक-दूसरे के लिए सब कुछ करते हैं लेकिन एक ऐसा समय भी हो जब हम बस अपने लिए कुछ समय निकाल कर अपने हिसाब से जिएं। यह बात खासकर पति-पत्नी के रिश्ते में ज्यादा जरुरी है जहाँ एक-दूसरे की लाइफ में जरुरत से ज्यादा दखल होता है वहां रिश्ते में घुटन होना शुरू हो जाती है इसलिए पति-पत्नी का मतलब एक-दूसरे की नौकरी करना नहीं है। आपको एक-दूसरे को समझना होगा और एक-दूसरे को उनकी फ्रीडम और टाइम देना ही होगा ऐसा करना आपके रिश्ते को और भी अच्छा बनाएगा। रिश्ते में प्यार होना चाहिए डर नहीं। जो आपका है वह हर हाल में आपका ही है और जो नहीं है वह कुछ भी करने पर आपका नहीं है इसलिए अपनी लाइफ भी जिएं और सामने वाले को भी जीने दें। बिना एक-दूसरे को जज किये एक-दूसरे के दोस्त बनें।  अपने पार्टनर की खुशी की वजह बनें, आत्महत्या की नहीं।
ऑफिस में भी स्ट्रेस फ्री रहें
हर ऑफिस में राजनीति होती है। एक तरफ काम करने वाले लोग तो दूसरी तरफ चापलूसी करने वाले। आप बस अपने काम पर ध्यान दीजिये। अगर आपका काम, काम करके चल रहा है तो सामने वाले का काम उसे चापलूसी करके चलाने दीजिये। जिसको जो आता है उसे वही करके खुश होने दीजिये। आप नौकरी करते हैं लेकिन कभी अपने स्वाभिमान को नीचे मत गिरने दीजिये। नौकरी चली जाएगी इस डर को अपने दिमाग से निकाल कर फ्री दिमाग से काम करिये।
अपनी जरूरतों को सीमित करिये
हर व्यक्ति की अपनी जरूरतें होती हैं ऐसे में बहुत जरुरी हो जाता है कि आप अपनी आमदनी के हिसाब से अपनी जरूरतों को सीमित करें और जो है जैसा है उसमें सुकून को तलाश करें। 
सब्र करना सीखें
चीजों के लिए इन्तजार करना सीखें और यही चीज अपने बच्चो को भी सिखाएं। जो चीज सब्र करने पर मिलती है वह न केवल आपको ज्यादा खुशी देती है बल्कि वह चीज आपके लिए बेशकीमती बन जाती है जिसकी आप कद्र करते हैं लेकिन उम्मीद से पहले मिलने पर आप सब्र करना भूल जाते हैं। वह चीज आपके लिए बस हासिल करने तक ही कीमती रहती है, उसके बाद आप उसे कोई महत्व नहीं देते और किसी दूसरी चीज को हासिल करने में लग जाते हैं।
(लेखक-प्रीती पांडेय)
 

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