YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

(चिंतन-मनन) प्रोध का जवाब प्रोध नहीं

(चिंतन-मनन) प्रोध का जवाब प्रोध नहीं

एक बार एक ब्राह्मण ने महात्मा बुद्ध को अपने घर आकर, भोजन करने का निमंत्रण दिया। जब बुद्ध वहां पहुंचे तो उन्होंने पाया कि ब्राह्मण ने उन्हें किसी अन्य मकसद से वहां बुलाया था। ब्राह्मण उनकी निंदा करने लगा और उन्हें अपशब्द कहने लगा। बुद्ध ब्राह्मण के वचनों के वार चुपचाप सहते रहे। अंत में बुद्ध ने कहा,'हे ब्राह्मण जी, क्या आपके घर में मेहमान आते रहते हैं?' 'हां, आते हैं।' ब्राह्मण ने उत्तर दिया।  
बुद्ध ने पूछा,'जब मेहमान आते हैं तो आप उनके लिए क्या भोजन बनाते हैं?' ब्राह्मण ने उत्तर दिया,'हम एक बड़े भोज की तैयारी करते हैं।' बुद्ध ने पूछा, 'अगर वे नहीं आते तो आप क्या करते हैं?' ब्राह्मण बोला, 'हम भोज स्वयं खा लेते हैं।' बुद्ध बोले,'अच्छा, तुमने मुझे भोजन पर बुलाया पर तुमने मेरा स्वागत कठोर वचनों और आलोचना से किया। लगता है कि जो भोज तुम मुझे परोसने वाले थे, वह इसी का है। मैं तुम्हारे द्वारा परोसे भोजन को नहीं खाना चाहता। कृपया इसे वापस ले लो और स्वयं खाओ।'  
बुद्ध ने महसूस किया कि जो भोज उन्हें दिया गया था, वह खाद्य पदार्थों का नहीं, बल्कि गालियों का था। उन्होंने वापस मुड़कर ब्राह्मण का तिरस्कार करने और उसे अपशब्द कहने के बजाय उसके प्रोध को स्वीकार नहीं किया। बल्कि वे उस स्थान से चले गए। इस प्रकार, प्रोध उसी के साथ रहा जो उसे प्रकट कर रहा था। महात्मा बुद्ध के शिष्य यह देख रहे थे। बुद्ध ने उन्हें सलाह दी, 'कभी उस रूप में बदला न लो जिस रूप में सलूक आपके साथ हुआ हो। घृणा कभी घृणा से खत्म नहीं होती।'  
कई बार हमारा सामना ऐसे लोगों से होता है जो हमें बुरा-भला कहते हैं। उनके स्तर पर उतरने की जगह हमें उनके उपहारों को स्वीकार नहीं करना चाहिए। तब उनका प्रोध उनके साथ ही रहेगा। जब हम घटना स्थल से हट जाएंगे तो वे अपने आपको, अपने प्रोध के साथ अकेला पाएंगे। वे चकित होंगे कि उनके प्रोध के बावजूद हम प्रेममय बने रहे। वे हमें आदर देने के लिए हमारे पास आ सकते हैं।  
जैसे दिन गुजरे और हमारा सामना ऐसे लोगों से हो जो हमारे प्रति प्रोध और आलोचना से भरे हों तो हम उनके वचनों को शांति से सुनें। हमें यह देखना चाहिए कि उनके वचनों में क्या कोई सच्चाई है। अगर ऐसा है तो हम उनके वचनों से कुछ सीखें और अपने आपको सुधारें। अगर उनके वचनों में कुछ भी सत्य नहीं है, तब हम उनके प्रोध के उपहार को स्वीकार न करें। हम उनके स्तर पर न उतर आएं। हम उनके प्रतिकूल वातावरण में शांति डालें। हमें प्रोध के उपहार को उनके पास छोड़ देना चाहिए और अपने शांत, खुशहाल रास्ते पर चल देना चाहिए।  
 

Related Posts