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डीज़ल और पेट्रोल के बीच ग़ज़ब की मुँहबाज़ी  

डीज़ल और पेट्रोल के बीच ग़ज़ब की मुँहबाज़ी  

क्या बात है बाबू, आज बड़े छैला बने घूम रहे हो, कोई लाटरी लग गई क्या ? ये सूट, ये बूट, ये कैप देखकर तो ऐसा लग रहा है जैसे लंदन से कोई गोरा आ गया हो। करिया-कलूटे के थोबड़े पर ये चमक, माजरा क्या है।
ऐ मिस्टर पेट्रोल, ‘माइंड योवर लेंग्वैज’। यू डोंट नो, हू एम आई। माई सेल्फ़ डीज़ल। मेरा नाम ‘डीज़ल’ है। वही डीज़ल जो हमेशा तेरे पीछे-पीछे चलता था।
अबे तू डीज़ल। काला सा। धुआँ करने वाला। दो कौड़ी के आइटम। ट्रकों, ट्रेक्टरों और पानी पंपों में भरे जाने वाला। आज बड़ा इतरा रहा है। जुआ-सट्टा वग़ैरह जीत गया क्या, या कहीं डकैती कर डाली, लम्बा माल हाथ लग गया क्या, जो टिपटाप बना घूम रहा है।
ओ मिस्टर पेट्रोल, ‘कंट्रोल यूअर टंग’। इस तरह की बकवास मुझे क़तई पसंद नहीं है। अब मैं दिल्ली जो कंट्री की कैपिटल है, उसका बादशाह हूँ। ईधनों में मेरी वैल्यू तुझसे ऊपर है। अब तू मेरे सामने बौना है बे, बौना। मैं तुझसे ऊपर आ गया। यानि मैं महँगा और तू मुझसे से सस्ता।
अबे हाँ, मुझे क्या बता रहा है तू, मुझे पता है कि तू कलूटा मुझसे चंद पैसे महँगा हो गया है। हो सकता है कई और राज्यों में तू मुझसे आगे निकल जाए, फिर भी मैं-मैं ही रहूँगा। माय नेम इज़ पेट्रोल। दुनिया के रईस मेरी पीठ पर ही सवार होकर उड़ते हैं। दुनिया की सैर करते हैं। अपना वक्त बचाते हैं। और तू, ट्रेन, फ़ैक्ट्री, इण्डस्ट्रीज, ट्रक-बस, टेम्पो-ट्रेक्टर और पंपों में इस्तेमाल होने वाले, धुआं उगल करके पर्यावरण बर्बाद करने वाले डीज़ल तेरी हैसियत मेरे सामने क्या है ?
ऐ मिस्टर पेट्रोल, अपनी बकवास बंद कर। बहुत पकर-पकर बोल रहा है। मैं इज्जत से पेश आ रहा हूँ और तू है जो बार-बार मुझे कलूटा कहकर मेरी इज्जत का मखौल उड़ा रहा है। सत्तर सालों से झेल रहा तुझे, तू मुझसे हमेशा आगे ही रहा, कभी उफ़्फ़ तक नहीं किया। भयभीत सा दस-पंद्रह कदम तेरे पीछे-पीछे चलता रहा। आज किसी की असीम कृपा से शिखर पर पहुँचने का मौक़ा मिला हैं तो तेरी क्यों जल-भुंज रही है।
अबे कलूटे डीज़ल। तेरी समझ क्यों नहीं आ रही। मुझे तो लिमिटेड लोग यूज करते हैं पर तू तो हर जगह घुसा रहता है। खेतों से लेकर इण्डस्ट्रीज तक। तेरे बिना सार्वजनिक परिवहन संभव ही नहीं है। तेरे हवा में उड़ने से नागरिकों की हवाइयाँ उड़ जाएँगी। निर्माण-उत्पादन, कृषि से लेकर दैनिक इस्तेमाल की चीजें महँगी हो जाएगी।
हो जाएँ, मेरे बाप का क्या। ये सब वो सोचें जिनकी वजह से मैं तेरे ऊपर पहुँचा हूँ, वो भी पूरे सेवेंटी ईयर बाद, यो नो। मैं कोई नेता थोड़ी हूँ, जो मुझे वोट और नोट की फ़िक्र हो। मैं जलूँगा तो आम जनता के काम आऊँगा और तू फूंकेगा तो पैसे वालों के काम बनेंगे।
ओये कलूटे, पब्लिक का कुछ तो ख्याल कर। तेरे महँगे होने से उनकी जेबों पर असर होगा। चीजें महँगी होगी। वैसे भी पब्लिक की बजी हुई पड़ी है।
सुन बे गोरे पेट्रोल, अपनी बकवास बंद कर। तेरा क्या जा रहा है बे। तू अपनी खपत और अपने दाम की सोच, मेरी फ़िक्र की छोड़। वैसे तेरी वैल्यू भी तो काफ़ी बढ़ गई है। कैपिटल छोड़ बाक़ी सूबों में तू अब भी मुझसे आगे है। जब उन्हें फ़िक्र नहीं है जो मुझे निरंतर ऊपर चढ़ाये जा रहे हैं तो तेरी बैंड क्यों बज रही है। जिन्हें पब्लिक को समय पूरा होने पर जवाब देना है वो सोचे कि हम दोनों के दाम बढ़ाने से उन्हें क्या नफ़ा-नुक़सान होगा।
यस मिस्टर कलूटे, सुन बे मिस्टर इसलिए लगा रहा हूँ कि तू रेट के मामले में मुझसे आगे निकल गया है, तेरी वजह से मुझे नीचा देखना पड़ रहा है। फिर भी मैं भरोसे से कहता हूँ कि तू और मैं कितना भी मज़बूत हो जाएँ, कितना भी उछलकर ऊपर चढ़ जाएँ, सियासतदानों की सेहत पर कोई फ़र्क़ नहीं आने वाला। हाँ पब्लिक ज़रूर कसमसाएगी मगर मच्छर काटे की तरह थोड़ा खुजाकर भूल जाएगी।
ये हुई न कोई बात गोरे, दे ताली। आओ गोरे-काले दोनों मिलकर जश्न मनाएँ। अतिवादी नीतियों से परे राष्ट्रवाद की जय बोलें।
जय हिन्द
( लेखक- ज़हीर अंसारी/)
 

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