आज मौसम बहुत अच्छा था ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जैसे आसपास कहीं बारिश हुई हो, रमानाथ जी मौसम का आनंद लेते हुए सवेरे की सैर करके घर वापस आ रहे थे । जैसे ही गुनगुनाते हुए घर में कदम रखा कि श्रीमती जी की चिर परिचित तेज आवाज ने इस बात का आभास दिला दिया कि घर का मौसम अच्छा नही। है अतः चुपचाप बेचारे अपनी चाय की तलब को मन में ही दबाकर अखबार लेकर खिड़की के पास अपनी आराम कुर्सी में बैठकर अखबार पढ़ने लगे । एक तो उनकी ज्यादा चाय पीने की आदत से सरला जी वैसे ही नाराज रहती थी फिर उनके इस रूप के आगे सुबह से यह तीसरी चाय मांगने की उनकी हिम्मत ना पड़ी। उन्हें अखबार में आंखें गड़ाए देख कर सरला देवी के गुस्से का पारा और भी बढ़ गया । मैं जब से बड़बड़ा रही हूं और आपको कोई मतलब ही नहींं। घर में क्या हो रहा है क्या नहीं हो रहा कोई फिक्र है आपको। रमानाथ जी ने मुस्कुराकर कहा -अरी भागवान किस बात पर इतनी गुस्सा हो रही हो आज किसकी शामत आई है। रमानाथ जी की इस मुस्कुराहट ने आग में घी का काम किया , सरला जी और जोर-जोर से चिल्लाते हुए बोली (ताकि किचन में काम करती उनकी बहू शालिनी को भी सुनाई दे) अरे.. हमारे भी बेटी है हमने तो उसे ऐसे आदर्श और संस्कार देकर पाला है कि मजाल जो कभी कोई उंगली उठा पाया हो उस पर ..और आज तक ससुराल से भी एक शिकायत नहीं आई, हमेशा सराहना ही सुनी है । लड़कियों में ऐसे लक्षण हमने तो कभी ना देखे सुने.. यह नया जमाना अपने मायके से ही सीख कर आई है जो मेरे घर में भी फैला रही है।
कहीं की कोई भी बात हो उसे बहू के मायके से जोड कर सरला जी बहू को ताना देने से कैसे चूक सकती थी आखिर वह सास थी। और फिर बहू के मायके के लोग आधुनिक विचारों के थे और सरला जी ठहरी शुद्ध पारंपरिक विचारधारा की पक्षधर , अतः वे लोग सरला जी को फूटी आंख नहीं सुहाते थे ।
उनकी इन सांकेतिक बातों से रमानाथ जी इतना तो समझ चुके थे कि उनकी पोती गरिमा को लेकर ही कोई बात हो रही है सरला जी का गरिमा के पीछे पडे़ रहना रमानाथ जी को बिल्कुल भी पसंद न था ।उन्हें अपनी पोती की काबिलियत पर बड़ा गुरुर था ।उन्होंने मुंह बनाते हुए कहा फिर तुम गरिमा के पीछे पड़ गई अब क्या किया उसने..
अरे.. आपने तो जैसे देखा ही नही कैसे लड़कों के जैसे कपड़े पहनती है सहेलियों के साथ बाहर जाकर सड़क किनारे मुंह फाड़ फाड़ कर गोलगप्पे खाती है, रिक्शे में बैठने को तो जैसे इन्हे भगवान ने रोका है जब चलेंगी तो स्कूटर ही चलाएंगी। भले घर की लड़कियों जैसे तो कोई लक्षण ही नहीं है। आज तो हद ही हो गई निशांत की बराबरी कर रही है जूडो कराटे सीखने चली है। घर का चूल्हा चौका संभालना सीख नहीं रही लड़कों की बराबरी करने चली है।
रसोई में काम कर रही शालिनी उनके व्यंग्य बाणों को सुन कर मन ही मन कुढ़ रही थी । परंतु कोई जवाब नहीं दे रही थी क्योंकि उसे पता था कि इस समय सरला जी उसकी किसी बात को नहीं समझेंगी जवाब देने से उनका पारा और बढ़ेगा ।
रमानाथ जी बोले अरे शांत हो जा भागवान अगर हमारी गरिमा जूडो कराटे सीख रही है तो इसमें बुराई क्या है बल्कि यह तो बहुत अच्छी बात है आज के जमाने में लड़कियाँ लड़कों से कम नहीं है । उन्हें भी अपनी सुरक्षा करना स्वयं आना चाहिए ।और निशांत से ज्यादा तो इसकी आवश्यकता गरिमा को ही है।
सरला जी का गुस्सा और बढ़ गया। तुनककर बोली कौन सा उसे फौज में लड़ने के लिए जाना है घर के अंदर रसोई बच्चे ही तो संभालने हैं ।अरे कोई अच्छे घर का लड़का भी नहीं मिलेगा इसके लक्षणों को देखकर।
उन्हें किसी भी तरह ना समझते देखकर रमानाथ जी चुपचाप अखबार पढ़ने लगे। तभी शालिनी दोनों के लिए चाय नाश्ता लेकर आ गई।थोड़ी देर बड़बड़ाने के बाद सरला जी स्वयं ही शांत हो गयी। शाम को जब गरिमा कोचिंग से वापस आई तो रमानाथ जी ने मुस्कुराते हुए गरिमा से कहा हमने सुना है हमारी बिटिया रानी कराटे सीख रही है ।
गरिमा ने दुलार से मुंह बनाते हुए कहा आपको कैसे पता दादा जी मैं तो आपको सरप्राइज देना चाहती थी ।
रमानाथ जी ने हंसकर कहा -अरे बेटा आज तुम्हारी दादी सामने वाली शर्माइन चाची से मिल कर आई हैं ना.. तुम्हें तो पता है वह एक चलता फिरता अखबार है। और जब से वहां से आई हैं तब से उनका कीर्तन चालू है ,अभी तो मंदिर गई हैं आते ही फिर भजन शुरू करेंगी ।तुम तैयार रहना कहीं आज ही .. तुम्हें अपनी कला का प्रदर्शन ना करना पड़ जाए। ...इस बात पर दोनों जोर से हंस पडे़।
गरिमा निशांत से 2 साल बड़ी थी इस साल वह बारहवीं में थी और निशांत दसवीं में ।ऐसा नहीं था कि सरला जी को पोती से प्रेम नहीं था, दोनों बच्चों में उनकी जान बसती थी पर उन्हें गरिमा का नए जमाने का पहनावा और स्वतंत्रता जरा भी ना सुहाता था वह अपनी बेटी की ही तरह अपनी पोती की परवरिश भी एक आदर्श घरेलू लड़की की तरह ही करना चाहती थी । लेकिन शालिनी ने अपनी बेटी की परवरिश आज के समय की आवश्यकताओं के अनुरूप की थी। उसने गरिमा को वे सारी स्वतंत्रताएं एवं सुविधाएं दी थी जो उसके व्यक्तित्व के समुचित विकास व उज्जवल भविष्य के लिए आवश्यक थी ।सरला जी जब भी अपनी बेटी मीना का उदाहरण देते हुए शालिनी की परवरिश पर प्रश्नचिन्ह लगाती शालिनी उनसे कहना चाहती - कि हां मां जी मैंने देखा है आपने अपनी बेटी को कैसी परवरिश दी है जब भी मीना दीदी ससुराल से आती है उनके चेहरे पर ओढ़ी हुई मुस्कुराहट के अंदर उदासी साफ नजर आती है, शुरुआत में तो कभी ऐसा होता था कि उनके शरीर पर कोई नीला निशान ना देखा हो.. हां इतने सालों बाद शरीर पर निशान पड़ने तो बंद हो गए है पर आत्मा में पड़ने वाले निशानों का क्या जो आज भी बरकरार है ,पर आपकी आदर्श परवरिश के चलते कभी उन्होंने इसके खिलाफ आवाज ना उठाई ,ना ही कभी आप लोगों से शिकायत की और जाते वक्त भी कितना फूट-फूटकर रोती थी पर आप लोगो ने ना कभी यह जानने की कोशिश की कि वह दिल से खुश है या नहीं और ना ही उन्हें इतनी हिम्मत दी कि वह गलत का विरोध कर सकें ,चुपचाप ससुराल वालों की ज्यादती बर्दाश्त करते हुए एक आदर्श बहू और संस्कारी बेटी के चोंगे में लिपटी हुई अपने जीवन की सारी खुशियां स्वाहा करती रही।
शाम को बेटे मोहन के आते ही सरला जी ने फिर से अपना राग अलापना शुरू कर दिया। गरिमा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा पापा.. स्कूल में गेम्स क्लास में कराटे सिखाए जाते थे जो बच्चे चाहे वह भाग ले सकते थे तो मैंने भी ज्वाइन कर लिया इसमें क्या बुराई है.. निशांत भी तो सीखता है।
मोहन ने गरिमा के सर पर हाथ रखते हुए कहा ..कोई बुराई नहीं बेटा यह तो बहुत अच्छी बात है।
मोहन के बहुत देर समझाने के बाद सरला जी शांत हुई। खैर यह बात तो आई गई हो गई पर असल तूफान तो तब खड़ा हुआ जब अगले महीने स्कूल के वार्षिक समारोह में गरिमा और निशांत के स्कूल में कराटे का कंपटीशन हुआ जिसमें संयोगवश गरिमा निशांत दोनों ही फाइनल तक पहुंचे और गरिमा ने निशांत को हरा दिया। पोती से हारे हुए पोते के लिए सरला जी के मन में बड़ा क्षोभ भरा हुआ था। कार्यक्रम से लौटते हुए रास्ते भर तो सरला जी किसी तरह अपनी नाराजगी को जब्त किए रही पर घर पहुंचते ही अपनी चिर परिचित तानाकशी के अंदाज में निशांत से बोली ..लड़की से हार कर खुश हो रहा है बेशर्म कहीं का...जब गरिमा ने अपना मैडल प्यार से उनके गले में पहनाया तो वे अनमने मन से बोली अरे लड़कियों को लड़कियों वाले काम ही शोभा देते हैं, अगर यही मैडल कढ़ाई बुनाई या खाना पकाने मे लाती तो कल को तेरी शादी में लड़के वालों के दिखाने में काम आता उनके ऊपर तेरा अच्छा प्रभाव पड़ता । इस बात पर निशांत को हंसी आ गई जिससे चिढ़ कर सरला जी निशांत की ओर देख कर बोली तूने तो मेरी नाक कटा दी ऊपर से हंस रहा है ..
निशांत ने हंसते हुए कहा अरे दादी दीदी से ही तो हारा हूं और उसमें लड़की और लड़के वाली क्या बात है वह मुझसे बड़ी भी तो है।
रमानाथ जी ने माहौल को हल्का करने के लिए बात बदलते हुए कहा अरे बहू हमारी बिटिया रानी मैडल लेकर आई है सबका मुंह तो मीठा कराओ। अभी लाई पापा जी कहकर शालिनी किचेन की ओर चल दी।
बात आई गई हो गई ।कुछ दिन बाद की घटना है मोहन ऑफिस के काम से बाहर गया हुआ था, और निशांत शालिनी के साथ मामा के घर गया हुआ था । मोहन को अक्सर ऑफिस के काम से कई कई दिनों के लिए बाहर जाना पड़ता था अतः ज्यादातर घर के बाहर की भी जिम्मेदारियां शालिनी ही निभाती थी। सुबह चाय पीने के बाद सरला जी उठी तो हाथ से चश्मा गिर पड़ा और टूट गया। उन्हें चश्मा के बगैर साफ नजर नहीं आता था। शालिनी की गैर हाजरी में गरिमा अपने दादा- दादी का पूरा ख्याल रखती दोपहर के खाने के बाद गरिमा सरला जी से बोली चलिए दादी आपका चश्मा बनवा देती हूं आप भी साथ चलिए तो एक बार नंबर और टेस्ट करा लेंगे ।सरला जी को यूं तो गरिमा का स्कूटी चलाना कुछ खास पसंद ना था पर रमानाथ जी के साथ इस उमर में स्कूटी में बैठने से वो डरती थी कहीं बुढ़ापे में हाथ पैर न तुड़वा बैठे इसलिए गरिमा के साथ जाना उनकी मजबूरी हो गई ।सरला जी की आंखे टेस्ट कराकर नया चश्मा बनवाने के बाद गरिमा ने रास्ते में एटीएम से पैसे निकाले फिर सोचा आज शाम तक निशांत और मां भी आने वाले हैं तो दूध शायद कम पड़ जाए तो पास की दुकान से एक पैकेट दूध खरीदा । तभी पास खड़े कुछ आवारा लड़के गरिमा के इर्द-गिर्द खड़े हो गए। जब गरिमा एटीएम से पैसे निकाल कर निकली थी तभी से वे लड़के उसके पीछे लग गए थे। तभी एक लड़के ने गरिमा को धक्का मारा। सरला जी ने डाँटा तो वो सरला जी के साथ भी बदतमीजी से पेश आने लगा। इसी बीच एक लड़के ने गरिमा का पर्स खींचने की कोशिश की गरिमा ने आव देखा ना ताव और उन लड़कों पर टूट पड़ी ।गली के वे छिछोरे लड़के कराटे चैंपियन गरिमा के सामने भला कहांँ टिकते कुछ ही देर में वे सब वहां से रफूचक्कर हो गये । इस सब के बीच उनके आसपास कुछ लोग इकट्ठा हो गए और गरिमा की प्रशंसा करते हुए सरला जी से बोले माता जी आपकी बच्ची तो बहुत बहादुर है ।अच्छा सबक सिखाया इसने उन गुंडों को। उसके बाद गरिमा सरला जी को लेकर घर वापस आ गयी।आज उन्हें पहली बार गरिमा की 'लड़कों जैसी हरकत' पर गर्व हो रहा था। सरला जी को अपनी गलती का एहसास हो चुका था यह समझ चुकी थी कि आज के युग में बेटियाँ घर के अंदर कैद नहीं रह सकती हैं उनमें भी क्षमता और हुनर है कि वह भी लड़कों के समान बल्कि कई क्षेत्रों में उनसे बढ़कर सफलता और नाम कमा सकती है। और इसके लिए लड़कियों को अपनी सुरक्षा स्वयं करनी आनी जरूरी है। अब उन्हें किसी पर निर्भर नहीं रहना है ।घर आकर उन्होंने रमानाथ जी को सारी बात बताई तथा अपनी पुरानी रूढ़िवादी सोच के लिए क्षमा मांगी ।और गरिमा की प्रशंसा करते हुए उसे गले से लगाकर कहा मुझे मेरी पोती पर गर्व है। शाम तक निशांत और शालिनी भी वापस आ गए सरला जी ने उन्हें सारा किस्सा बताया और शालिनी से माफी मांगते हुए बोली.. बहू मैंने तुम्हारी परवरिश पर हमेशा उंगली उठाई है पर आज मैं स्वीकार करती हूं कि तुमने मुझसे ज्यादा अच्छी परवरिश दी है हमारी गुड़िया को । मैंने तो अपनी बेटी को सिर्फ जिम्मेदारियां निभाना सिखाया कभी उसके सपनों को नहीं समझ पाई पर तुमने अपनी बेटी को दूसरों के प्रति जिम्मेदारियां निभाने के साथ अपने प्रति जिम्मेदारियां निभाना भी सिखाया है। अपनी सासू मां का यह हृदय परिवर्तन देखकर शालिनी की आंखों में खुशी के आंसू आ गये। सरला जी ने बताया शालिनी की गैर हाजरी में गरिमा ने घर की सभी जिम्मेदारियां बखूबी निभायी। उसने अपनी मां की तरह दादा दादी का ख्याल रखा। तभी सामने से शर्माइन काकी बड़ी व्यग्रता से आती हुई दिखी। अपनी गोल गोल आंखों को मटकाते हुए बोली ..अरे.. सरला बहन सुना है आज तुम्हारी पोती सड़क पर गुंडों के साथ लड़ाई करती रही है.. एक तो पहले से ही कोई कमी ना रख छोड़ी थी बस इतनी ही कसर रह गई थी ... लड़कियों को ऐसे गुंडों से लड़ाई करना क्या शोभा देता है उन्हें तो कोई लाज शर्म है नहीं इसे भी.... सरला जी से अब रहा न गया बोली हाँ भाई हमारी गरिमा तो ऐसी ही है वह दुपट्टे में मुंह छुपा कर रो कर तो नहीं भागी उसने गलत बर्ताव को बर्दाश्त नहीं किया उसका विरोध किया और अपने सम्मान की रक्षा की। यह सुनकर शर्माइन काकी अपना सा मुंह लेकर जाने लगी । रमानाथ जी ने चुटकी लेते हुए कहा .. क्या हुआ भाभी जी बड़ी जल्दी चल दीं चाय तो पीकर जाइए। भाभी जी ने बुरा समूह बनाकर कहां भाई साहब अभी घर में बहुत काम है फिर कभी पियूंगी मैं तो बस सरला देवी का हाल-चाल पूँँछने आई थी। घर में हल्का माहौल देकर रमानाथ जी ने कहा भाई अब तो चाय पीने की इच्छा हो रही है एक एक कप चाय हो जाए। गरिमा तुरंत चाय बनाने के लिए चल दी और जाते-जाते शालिनी को कह गई कि मां आप भी हाथ मुंह धो लीजिए तब तक मैं सबके लिए चाय बना कर लाती हूँँ। निशांत भी उसके पीछे आते हुए बोला चलो दीदी मैं तुम्हारी मदद करता हूं ।तभी मोहन भी वापस आ गया और गरिमा की तरफ अपने हाथ की थैली बढ़ाते हुए कहा आज बाहर मौसम बहुत अच्छा था तो पापा जी के फेवरेट हलवाई के समोसे लेता आया हूं इन्हें भी प्लेट में लगा कर ले आओ ।रमानाथ जी ने रहस्यमई मुस्कान के साथ कहा हाँ बेटा आज बाहर ही नहीं अंदर भी मौसम बहुत अच्छा है । उनके इस कटाक्ष पर सरला जी ने उनकी ओर देखकर आंखें तरेरी ..उनकी बात में छुपे रहस्य को समझकर हुए सभी ठहाके लगाकर हँसने लगे।
(लेखक-सोनिया सिंह)
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