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(परम्परा) रक्त सम्बंधो में क्यों नही होती शादी! 

(परम्परा) रक्त सम्बंधो में क्यों नही होती शादी! 

 एक अमेरिकी वैज्ञानिक का शोध निष्कर्ष है कि जेनेटिक बीमारी से बचने का  एक ही उपचार है और वह है "सेपरेशन ऑफ़ जींस".. अर्थात अपने रक्त सम्बन्धी रिश्तेदारो में विवाह नही करना चाहिए ।रक्त सम्बन्धी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट  नही हो पाता और जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और एल्बोनिज्म होने की संभावना बढ़ जाती है।
इसी कारण एक गोत्र के लोग आपस में शादी नही करते ताकि जींस सेपरेट रहे। इसी के चलते कुछ ऐसी परमपरायें भी है ,जिनका अपना वैज्ञानिक आधार है।इन्ही में से एक है कान छिदवाने की परम्परा।
दर्शनशास्त्री मानते हैं कि कान छिदवाने से सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि चिकित्सको का मानना है कि इससे आवाज अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।इसी प्रकार महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं। आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है।साथ ही शरीर मे आत्मा का निवास भी भृकुटि में ही है।तिलक लगाना यानि परमात्म याद में टिके रहना।भारतीय संस्कृति में जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छा माना जाता है। पाल्थी मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस स्तिथि में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते समय अगर मस्तिष्क शांत हो, तो पाचन क्रिया अच्छी हो जाती है। इस दशा में बैठते ही खुद-ब-खुद मस्तिष्क से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।
वही जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते  करते हैं।नमस्ते के लिए जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है तो एक्यूप्रेशर के कारण इसका सीधा प्रभाव हमारी आंखों, कानों और मस्तिष्क पर पड़ता है, इससे स्मरण शक्ति बढ़ते है और हम सामने वाले व्यक्त‍ि को  लंबे समय तक याद रख पाते है। वही हाथ मिलाने के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को कोरोना या स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।तभी तो वर्तमान में हाथ मिलाने के स्थान पर हाथ जोड़ने का प्रचलन फिर से शुरू हो गया है।इस तरह भोजन की शुरुआत नमकीन से और अंत मीठे से किया जाता है।क्योंकि शुरू में नमकीन खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन,एसिडिटी आदि व्याधियां नहीं होती।वही
दक्ष‍िण की तरफ  पैर करके सोने को वर्जित माना जाता है। जब हम उत्तर की ओर सिर करके और दक्षिण की ओर पैर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा मस्तिष्क की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या मस्तिष्क संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं ऐसा करने से रक्तचाप भी बढ़ जाता है।
सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।इससे पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।वही सिर पर चुटिया रखने मस्तिष्क शांत रहता है। सिर में जिस स्थान पर चुटिया रखी जाती है, उस स्थान पर मस्तिष्क की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे मस्तिष्क स्थ‍िर रहता है और मनुष्य को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता भी बढ़ जाती है।वही सप्ताह में एक दिन उपवास को स्वास्थ्य के लिए वरदान माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार उपवास करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, अर्थात उसमें से खराब तत्व बाहर निकल जाते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार उपवास करने से कैंसर का खतरा कम हो जाता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोगो में भी कमी आती है।
 जब भी आप किसी बड़े से मिलते है तो उनके चरण स्पर्श करते है। यही हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का सम्मान कर सके। पैर छूने से मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक पहुंचता है।जो दोनों के लिए ही लाभकारी है।
(लेखक/ -डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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