हर युग में चिकित्सा का महत्व रहा हैं कारण जन्म से लेकर मृत्यु तक चिकित्सा के बिना कोई रह नहीं सकता।चिकित्सा में एक पाद /स्तम्भ चिकित्सक होता हैं और चिकित्सा मात्र चिकित्सक से पूर्ण नहीं होती हैं।चिकित्सा में चिकित्सक महत्वपूर्ण कड़ी होती हैं, उसी के निर्देशन में ही चिकित्सा की जाती हैं।सबसे पहले चिकित्सा क्षेत्र में नंबरों के आधार पर प्रवेश की जगह उसकी पात्रता/रूचि के अनुसार प्रवेश दिया जाता था.पर अब सिर्फ अंकों के आधार पर प्रवेश दिया जाता हैं, जिस कारण चिकित्सा जैसा क्षेत्र आज अवनति पर जा रहा हैं।वैज्ञानिक खोजों ने जीवन सुखद बनाया पर गुणवत्ता गिर गयी।
राजन्यविप्रवरवैश्यकुलेषु कशीचद्विमाननिंद्यचरितः कुशलो विनीतः !
प्रतिगुरुंसमुपसृत्य यथानुपृच्चछेत सोअयम भवेद मलसंयमशास्त्रभागी !!
भावार्थ जिसका क्षत्रिय, ब्राह्मण व वैश्य इस प्रकार के उत्तम वर्णों में से किसी एक वर्ण में जन्म हुआ हो, बुद्धिमान हो, आचरण शुद्ध हो, कुशल व नम्र हो, वही इस पवित्र शास्त्र को पठन करने का अधिकारी हैं, प्रातः काल वह गुरु की सेवा में उपस्थित होकर विषय का उपदेश देने के लिए प्रार्थना करे।
इस प्रकार की मनोदशा वाले ही इस विद्या का अध्ययन करे पर वर्तमान में आर्थिक लक्ष्य के लिए ही पूरा चिकित्सा तंत्र जुटा हुआ हैं।
चिकित्सा के चार स्तम्भ होते हैं जिन पर चिकित्सा आधार्रित होती हैं
भिषग दृध्यान्युपस्थिता रोगी पादचतुष्टयम !
गुणवत करणम ज्ञेयं विकारव्युपाशांतये !!
चिकित्सा के चारपाद ---१ गुणवान चिकित्सक २ गुणवान मेडिसिन्स ३ गुणवान सेवक जो रोगी की सेवा करे ४ गुणवान रोगी।ये चिकित्सा के चार पाद सम्पूर्ण रोगों की शांति के कारण होते हैं।इनको समझना जरुरी हैं.
वैद्य या चिकित्सक या भिषग या डॉक्टर के गुण ---
श्रुते पर्यवदात्त्वम बहुशो दृष्टकर्मता !
दाक्ष्यं शौचमिति ज्ञेयं वैद्ये गुनचतुष्टयम !!
१ शास्त्रों का अच्छी प्रकार ज्ञान रखना २ अनेक बार रोगी, औषधि-निर्माण तथा औषध प्रयोग का प्रत्यक्ष -द्रष्टा होना ३ दक्ष होना अर्थात समय के अनुसार युक्ति की कल्पना करने में परमचतुर होना ४ पवित्रता रखना यानि शुचिता यह आतंरिक और बाह्य होती हैं।
उत्तम औषधि के गुण ---
बहुता तत्र योग्यत्वमनेकविधकल्पना !
सम्पच्चेति चतुष्कोयं द्रव्याणां गुण उच्यते !!
१ औषधियों का अधिक रूप में प्राप्त होना २ औषधियों का व्यधिनाश में समर्थ होना ३ एक ही औषधि में अनेक विध कल्पना की योग्यता होना जैसे पेनिसिलिन इंजेक्शन, सिरप, टेबलेट, ऑइंटमेंट, आदि रूप में प्राप्त होना।४ औषधियों पर अपने रस,वीर्य विपकादि गुणों से युक्त होना।यानि प्रतिष्ठित कंपनी से गुणवत्ता युक्त होना।
उत्तम परिचारक या उपचारक के गुण --
उपचारज्ञता दाक्ष्यमनुरागश्च भर्तरि !
शौचं चेती चतुष्कोयं गुणः परिचरे जने!!
१ सेवा कार्य का पूर्ण ज्ञान २ चतुरता ३ अपने मालिक यानि रोगी के प्रति प्रेम और ४ पवित्रता यानि शुचिता
उत्तम रोगी के गुण -----
स्मृतिनिर्देशकारित्वंभीरुत्वमाथापि च !
ज्ञापकत्वम च रोगनामातुररस्य गुणाः स्मृताः !!
१ स्मरण शक्ति २ वैद्य या डॉक्टर की आज्ञाओं के पालन की प्रवृत्ति ३ निर्भयता/ जिजीविषा ४ रोग और उसके उपद्रवों को अच्छी प्रकार से बता सकने वाला हो।
इस प्रकार अब आत्मचिंतन की जरुरत हैं की हमारा चिकित्सा विज्ञानं कितना स्तरीय हैं।चार स्तम्भ के चार चार गुणों के कारण जिस प्रकार सोलह कलाओं से पूर्ण चन्द्रमा पूर्ण माना जाता हैं इसी प्रकार इन १६ गुणों से युक्त चिकित्सा पूर्ण मानी जाती हैं।
वर्तमान में चिकित्सा का अध्ययन का स्तर जैसा होना चाहिए वैसा हैं क्या ?मात्र डिग्री लेना लक्ष्य हैं।उसके बाद अयोग्यता के आधार पर समाज में स्वीकृति नहीं मिलती।डिग्री लेने के बाद बुनियादी ज्ञान का अभाव , प्रैक्टिकल ज्ञान से शून्य।इंजेक्शन, ड्रिप लगाने,नाड़ी,बी पी न देख पाना में अनुभव हीन।ऐसा नहीं हैं की काबुल में घोड़े ही घोड़े होते हैं वहां भी गधे होते हैं।वैसे ही मेडिकल कॉलेज में पढ़े लिखे गधे होते हैं।दूसरा बिना जाँच के कोई भी चिकित्सा नहीं कर पाते, जबकि आज भी लाखों गावों में कोई सुविधा न होने के बाद भी वहां पर अनुभव के आधार पर चिकित्सा की जाते हैं।दूसरा शुचिता का अभाव हैं।मात्र धनलाभ की प्रवत्ति ने चिकित्सा क्षेत्र का बहुत अवमूल्यन किया हैं।इस पर विचार करना योग्य हैं।
आयुर्वेद औषधियों के लिए उपलब्ध घटक द्रव्य का न मिलना और गुणवत्ता युक्त न होने से प्रभावकारी नहीं हो पाती और एलॉपथी में तो गुणवत्ता के अलावा कमीशन बाज़ी के कारण हजारों गुना दवा निर्माता लाभ कमा रहे हैं या दूसरे शब्दों में शोषण कर रहे हैं।इसमें निर्माता, व्यापारी डॉक्टर का बहुत बड़ा सुसंगठित गिरोह काम कर रहा हैं।नर्सिंग होम और प्राइवेट हॉस्पिटल तो आजकल बहुत अधिक निवेश के कारण मरीज़ के खून के अलावा मज्जा तक निकाल लेते हैं इसीलिए आजकल चिकित्सकों को यमराज का बड़ा भाई कहते हैं।कारण यमराज मात्र प्राण लेते हैं पर डॉक्टर प्राण के साथ धन /पैसा /सोना /जमीन तक मरीज़ से रखवा लेते हैं /आई।सी सी यू संस्कृति ने तो लूट का बहुत बड़ा अड्डा बना लिया हैं।और वेंट्रिलेटर के नाम पर मरे से भी अंधाधुंध रकम ऐंठते हैं।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान में जो कोरोना वायरस रोग ने हज़ारो प्राइवेट नर्सिंग होम्स के दिन बदल दिए।इन दिनों दिल्ली मुंबई आदि शहरों में कोरोना से पीड़ित मरीज़ों को भरती कराने लाखों रुपये चाहिए, इलाज़ का अलग खर्च, उसके बाद सफलता की कोई गारंटी नहीं।इसकी अपेक्षा सामान्य और माध्यम वर्ग को घर पर रखकर इलाज़ करे और उसको समाधि मरण जैसी क्रिया करके परिवार धन बचत करे जिससे उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा, अन्यथा आपका कमाया धन, अर्थालोलुप डॉक्टरों और मालिकों के पास जायेगा और आप अपने प्रियजन को अंतिम समय न देख सकेंगे और यहाँ तक की आप दाह संस्कार तक न कर सकेंगे.रोग जितना भयावह नहीं हैं उससे अधिक डरवाया गया हैं।इस रोग का इलाज मात्र बचाव हैं, इलाज तो तीर में तुक्का चल रहा हैं।
आज चिकित्सक दिवस होने से प्रत्येक वैद्य /चिकित्सक /डॉक्टर /विशेषज्ञ को आत्म चिंतन करना चाहिए की और आयुर्वेद में जो चिंतन दिया हैं और चिकित्सा का सिद्धांत/प्रयोजन हैंकी स्वस्थ्य के स्वास्थ्य का रक्षण और रोगी का रोग मुक्त के रूप में उपयोग किया जाता हैं न की पैसों के पीछे रोगी का रोग बढाकर पैसा ऐठा जाय।
चिकित्सा व्यवसाय नहीं सेवा हैं.पर आर्थिक प्रतिस्पर्धा, खर्चीले यंत्र तंत्र, पढाई लिखाई में खरचा, स्थापना व्यय के कारण के अलावा अपने व्यवसाय में विशेषज्ञता,और लोभ लालच के वशीभूत इलाज़ महंगा हो गया हैं।यदि मानवता, नैतिकत्ता और स्वयं रोगी होने की स्थिति का आकलन कर कार्य करे तो निःसंदेह यह आदर्श, जीवनदायक, आनंददायक सेवा क्षेत्र हैं।
क्वचित धर्मः क्वचित मैत्री क्वचित अर्थः क्वचित यशः !
कर्मभ्यासः क्वचित चेति,चिकित्सा नास्ति निष्फलाः !!
चिकित्सा करने से वैद्य /डॉक्टर को क्या लाभ ?कहीं पर धर्म,कहीं पर मित्रता, कहीं पर द्रव्य-लाभ, कहीं पर यश और कहीं पर चिकित्सा करने से करने का अभ्यास का लाभ होता हैं, इसलिए चिकित्सा कभी निष्फल नहीं होती हैं
यह बोधि वाक्य पर्याप्त हैं आधुनिक डॉक्टर /चिकित्सक/वैद्य /हकीम के लिए।
(लेखक-डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
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चिकित्सक दिवस आयुर्वेद दृष्टिकोण से ! (१ जुलाई चिकित्सक दिवस पर विशेष आलेख )