भारत देश में तीन बातें बहुत सामान्य हैं। पहला हर समय चाय का समय रहता हैं, दूसरा प्रत्येक भारतीय डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, सलाहकार और तीसरा हर जगह टॉयलेट करने की सुविधा। एक बात बहुत अच्छी हैं वकालत में, उसमे कोई भी वकील बिना सनद और जिला अधिवक्ता परिषद् में पंजीयन बिना न्यायालय में दलील नहीं दे सकता चाहे वकील का मुंशी, बहुत ज्ञानवान हैं, इसके बाद वह वकील अन्य जिले में रहने लगता हैं तो उस जिले की परिषद्ब में पंजीयन कराता भी हैं । इसी प्रकार भवन सड़क का प्रमाणीकरणअधिकृत अभियंता द्वारा किया जाता हैं और वह मान्य होता हैं,
हमारे देश में इंडियन मेडिकल कौंसिल, सेंट्रल कौंसिल ऑफ़ इंडियन मेडिसिन और होमियोपैथी कौंसिल ऑफ़ इंडिया, इनमे जो पंजीकृत होते हैं वे ही चिकित्सक चिकित्सा करने के लिए अधिकृत होते हैं। पर हमारे देश में चिकित्सा के मामलों में इनके अलावा नेचुरोपैथी, कलर थेरेपी, म्यूजिक थेरेपी, टच थेरेपी, स्टोन थेरेपी, जल थेरेपी, जादू टोना, ज्योतिषी आदि न जाने कितनी पद्धतियां चिकित्सा में काम कर रही हैं और ये करती रहेंगी, इनको कोई भीप्रतिबन्धित नहीं कर सकता कारण ये भावनाओं, विश्वास पर आधारित हैं।
इसका मूल कारण क्या हो सकता हैं ?आबादी के अनुपात में पंजीकृत चिकित्सकों की संख्या आटे में नमक के समान हैं। सरकारी चिकित्सकों की संख्या जितनी भी हैं उनका ९०% शहरी/महानगरों में हैं, और मात्र १० प्रतिशत रहते भी हैं तो वे मुख्यालय में नहीं रहते। मुख्यालय पर न रहने के कारण उनकी प्रतिष्ठा उतनी नहीं रहती जितनी चौबीस घंटे लगातार गांव या शहर में रहने वाले फ़र्ज़ी तथाकथित डॉक्टरों की होती हैं, उसका मुख्य कारण लगातार उनकी उपलब्धता और आकस्मिक चिकित्सा देने में तत्पर। यदि फ़र्ज़ी चिकित्सक न हो और सरकारी चिकित्सकों के भरोसे वहां की जनता रहे तो बहुत सीमा तक आबादी नियंत्रण न करना पड़ेगी सरकार को कारण चिकित्सा के आभाव में मौतें बहुत होंगी। सरकारी सुविधाओं के अलावा सरकारी चिकित्सक जो निजी चिकित्सा अधिकतम करते हैं वे ही सफल हुए अन्यथा उनको भी कोई नहीं पूछता। निजी चिकित्सक जो पंजीकृत होते हैं वे अपने लाभ के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं फ़र्ज़ी चिकित्सक बनते कैसे हैं ?सबसे पहले वे कहीं पर जाकर मामूली इलाज़ का तरीका सीखते हैं, उसके बाद अपने गांव में स्थापित होकर सेवा देते हैं, केस बिगड़ने पर उनका सरकारी या निजी चिकित्सकों से संपर्क होने से वे उनका बचाव करते हैं, वह फ़र्ज़ी डॉक्टर उनके लिए दूध देने वाली गाय का काम करती हैं, उसके बाद औषधि विक्रेता भी उनको ज्ञान देते हैं क्योकि उनकी औषधि बिक्री होती हैं और बाकी मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव उनको पारंगत कर देते हैं। फ़र्ज़ी चिकित्सक का समाज में बहुत इज़्ज़तदार स्थान होने से कोई उनके खिलाफ कुछ नहीं बोलता और यदि यहाँ तक की राजनेता भी उनका सहारा लेते हैं।
ऐसा नहीं की सभी फ़र्ज़ी चिकित्सक अयोग्य होते हैं। काबुल में घोड़े ही घोड़े होते हैं, गधे नहीं होते। बहुत होते हैं। आज मेडिकल कॉलेज से निकलने वाले चिकित्सकों को आज भी ब्लड प्रेशर, इंजेक्शन और यहाँ तक की ग्लूकोस की ड्रिप लगाते नहीं बनती। बड़े बड़े डी एम्, एम् डी इमरजेंसी में इंजेक्शन लगवाने कम्पाउण्डर पर आश्रित होते हैं। खैर यह सब बातें अलग हैं।
मैं फ़र्ज़ी चिकित्सको के बहुत खिलाफ हूँ पर उनका क्या विकल्प हैं। आज शहरों, महानगरों में डॉक्टर्स, नर्सिंग होम्स, सरकारी अस्पतालों की भीड़ और सुविधाएँ हैं पर क़स्बा, गांव और दूरस्थ अंचलों में को उन देशवासियों की सेवा करने कौन जा रहा हैं.आज चिकित्सा लाक्षणिक हो रही हैं, किस कारण से रोग हो रहे उस पर कोई मेहनत नहीं करना चाहता। आजकल आप अपनी जाँच रिपोर्ट के आधार पर चिकित्सा ले सकते हैं, मरीज़ को देखने की जरुरत नहीं हैं। जांच रिपोर्ट किसी विशेष स्थान की होना चाहिए जो विश्वनीय हो क्योकि उसमे उनकी सुविधा शुल्क जुड़ा रहता हैं।
मैं चाहता हूँ सब फ़र्ज़ी चिकित्सको पर प्रतिबन्ध लगे और इसकी जिम्मेदारी मुख्य स्वास्थ्य और चिकित्सा अधिकारी और जिला प्रशासन की हैं। क्या उन सक्षम अधिकारीयों के पास इतना समय हैं कार्यवाही करने की। यदि उनके द्वारा पच्चीस -पचास प्रकरण बनादिये तो समझलो उनकी सेवा निवृति कचहरी में बीतेंगी, इसके लिए उनके द्वारा प्रभावकारी कार्यवाही न करके लाओ और आदेश ले जाओं। अधिकांश मामले सुविधा शुल्क के आधार पर निपटाते हैं या निपटते हैं।
सरकारों को चिकित्सा क्षेत्र में गुणवत्ता चाहिए हैं तो सभी पद्धतिओं को सम्मान दे, शिक्षा व्यवस्था समुचित हो और उन छात्रों का भविष्य अन्धकारमय न हों। नौकरी की व्यवस्था सुनिश्चित हो,आज सभी पद्धतियों के स्नातक बड़े बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल, नर्सिंग होम्स में कम्पाउंडर का कार्य निष्पादित कर रहे हैं। कुछ शिक्षा का स्तर, कुछ डोनेशन के द्वारा भर्ती होना और अपने ऊपर आत्मविश्वास की कमी।
एलॉपथी चिकित्सा पद्धति अन्य पद्धतियों से चिकित्सा करने में सरल हैं। क्योकि एंटीबायोटिक्स आदि रामबाण हैं जिसको देने से नुक्सान के साथ लाभ भी होता हैं। आज बड़े बड़े चिकित्सकों की रोगी पर्ची सिद्धांतों के विपरीत होती हैं और उनको मान्यता हैं.कारण बड़े और पंजीकृत हैं।
इस देश में क्या पूरे विश्व में फ़र्ज़ी डॉक्टर्स का इलाज़ नहीं हैं, यह बहुत बड़ा असाध्य रोग हैं, और असाध्याने प्रति नास्ति चिंता।
विषय अत्यंत विवादित हैं और हर वर्ग अपने अपने तर्क देकर अपने को स्थापित करने में सक्षम हैं, पर इसका निदान न होने से इस देश में सब चलता हैं और चलेगा। इस विषय पर खुले मन से निष्पक्ष दृष्टिकोण रखकर निदान और चिकित्सा ढूढ़नी चाहिए। सबके विचारो का स्वागत हैं क्योकि स्वास्थ्य हमारे लिए बहुत संवेदनशील मामला होता हैं।
(लेखक- डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
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