जब से विश्व में कोरोना वायरस का कहर तेज गति से प्रभावित होने लगा तब से एक अप्रत्याशित भय सभी के मन में समा गया। सबसे ज्यादा इसका प्रतिकूल प्रभाव आपसी रिश्तों पर पड़ा। जहां एक दूसरे से मिलना - जुलना तो बंद हुआ ही, एक दूसरे के दिये सामान पर भी भयात्मक संदेह समा गया। इसका असर इबादत से लेकर सामाजिक हर गतिविधियों पर पड़ा। मधुसुदन को अपने 70 वर्षीय जीवन काल के अंतिम क्षण तक भी इस तरह के वायरस से पाला नहीं पड़ा न उसे इस तरह के वायरस के बारें में पहले कभी भी अपने घरवालों के बुर्जुगों से सुनने को मिला हो। देश में प्लेग, चेचक जैसी खतरनाक महामारी भी आयी, स्वाइन , वर्ड फल्लू वायरस का दौर भी सामने आया पर इस तरह का भय आज तक मधुसुदन को सुनने को नहीं मिला । जहां मानव मानव से मिलने में डरने लगा हो। जहां घूमना तो दूर घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया हो। जब से इससे बचाव के लिये देश भर में लॉकडाउन का दौर शुरू हुआ है तब से वह अपने घर में कैद है। उम्र ज्यादा होने के कारण उसके परिवार वाले घर से बाहर निकलने की बिल्कुल इजाजत नहीं देते। लॉकडाउन शुरू होने से पहले बाहर से फल, सब्जी, दूघ आदि घरेलू उपयोग की हर बस्तुएं स्थानीय बाजार से स्वयं ही वे लाते, सुबह - सुबह घर के बाहर सड़क पर चहलकदमी भी कर लेते, बगल के पार्क का भी आनन्द ले लेते पर जब से लॉकडाउन शुरू हो गया तब से बेटा ही सबकुछ बाहर से लाने लगा है। पार्क में जाना एवं सड़क पर मार्निग वाक करना अब सब कुछ बंद हो गया है। घर का अधिकांश सामान तो ऑनलाइन ही बुक हो जाता हैं। वे बड़े घ्यान से देखते कि सामान लाने वाला पॉकेट घर के दरवाजे पर ही रखकर चला जाता है फिर वह सामान घर के एक कोने में रख दिया जाता है जिसे कम से कम तीन दिन तक छूने की इजाजत किसी को नहीं होती । यह सब देखकर वे मन नही मन इस विकट समय का आंकलन करने लगते एवं अप्रत्याशित भय से ग्रसित होकर घर के एक कोने में दुबककर प्रभु से इस तरह की आई विपदा से शीघ्र मुक्ति हेतु प्रार्थना करने लग जाते। इस दौरान मंदिर जाना तो बंद रहा, घर के अन्दर से स्नान के बाद सूर्य नमस्कार एवं दीप धूप बत्ती कर प्रभु की अराधना उनकी दिनचर्या बन चुकी।
मधुसुदन को कोरोना वायरस आने से पूर्व के दिन बार - बार याद आते ,जब किसी भी तरह का प्रतिबंद नहीं था। तब वे आराम से सुबह- शाम सड़क पर टहलते, पार्क में घंटों अपने बचपन के दोस्त रामबदन से बतियाते। उसके घर कोई नई चीज बनती तो बड़े प्रेम से दोनों उसका रसास्वादन करते। मधुसुदन भी रामबदन की तरह अपने घर बने मिष्ठान, तो कभी पकवान तो कभी पकौड़ें उसके घर दे आता। न कोई भय, न कोई भेद भाव, केवल प्रेम और आज सबकुछ कोरोना के भय से खत्म हो गया। न वह राम बदन के यहां जा सकता न रामबदन मधुसुदन के घर आ सकता। रामबदन भी लॉकडाउन में अपने घर में मधुसुदन की तरह ही कैद है। बीच -बीच में दोनों दूरभाष पर बतिया लेते, मन की भड़ास निकाल लेते। कब दोनों घर से निकलकर मिल पायेंगे , कुछ कहा नहीं जा सकता।
इस तरह के हालात लाॅकडाउन खुलने के दूसरे चरण के बाद भी देश के अधिकांश शहरों के बने हुये है जहां कोरोना संक्रमण के बढ़ते दर ने मधुसुदन एवं रामबदन जैसे अनेक के मन को इतना भयभीत कर डाला है कि एक दूसरे मिलने में सभी डरते है। कोरोना ने हमारे मधुर रिश्तों पर बड़ा ही प्रतिकूल प्रभाव डाला है जिससे आज सभी के रिश्ते बदले - बदले आने लगे है। जब तक इस वायरस से बचाव के टीके उपलबध नहीं होते रिश्तों के बीच दरार पड़ी ही रहेगी। आज सभी को कोरोना वायरस से वचाव के टीके बाजार में उपलबध होने का इंतजार है।
(लेखक-डॉ. भरत मिश्र प्राची )
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कोरोना से बदलते रिश्ते एवं बचाव हेतु टीके का इंतजार