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(लघुकथा) विरोध 

(लघुकथा) विरोध 

"पापाजी,मेरे स्कूल से नोटिस आया है।"
'उसमें क्या लिखा है ।"
 "उसमें लिखा है कि यदि आपने तीन दिन में अप्रैल,मई,जून माह की फीस जमा नहीं की,तो आपका नाम काट दिया जाएगा ।" 
    अंश ने अपने पिता से कहा ।
"पर,तीन माह से तो स्कूल बंद है।" पिता ने कहा ।
"पर,उससे क्या ? स्कूल की बात तो माननी ही पड़ेगी" बेटे ने कहा।
पर पिता जायसवाल को स्कूल की यह मनमानी स्वीकार नहीं थी,फलस्वरूप उन्होंने अपने जैसे पीड़ित अन्य अभिभावकों को इकट्ठा किया,और लेकर कमिश्नर महोदय के पास पहुंच गये ।कमिश्नर साब ने उनके निवेदन पर गौर किया ,और पाया कि चूंकि बच्चों ने स्कूल की बहुत सारी सुविधाओं का उपयोग नहीं किया है,केवल ऑनलाइन टीचिंग का उपयोग किया है,इसलिए उन्होंने स्कूल व्दारा पूरी फीस वसूलने को अनुचित माना ,और स्कूल को फीस का केवल आधा हिस्सा ही वसूलने की अनुमति दी।
     इस प्रकार जायसवाल की जागरुकता से सारे अभिभावक स्कूल-प्रशासन की मनमानी का शिकार होने से बच गए ।बेटे अंश ने पिता से कहा --" पापा,आपके इस कदम से मुझे बहुत बड़ी सीख मिली है कि जीवन में अन्याय व शोषण को कभी सिर झुकाकर स्वीकार नहीं करना चाहिए ,हमें ग़लत बात का न केवल विरोध करना चाहिए,बल्कि ग़लत निर्णय रद्द करने के लिए हर हाल में अड़ जाना चाहिए।"
(लेखक-प्रो. शरद नारायण खरे)

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