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दूध का जला छाछ.... :  प्रतिशोध के संकल्प के साथ पीछे हटा है चीन.....? 

दूध का जला छाछ.... :  प्रतिशोध के संकल्प के साथ पीछे हटा है चीन.....? 

ड्रेगन (चीन) की स्थिति इन दिनों उसके काफी खिलाफ है, न वह फुॐकार सकता है और न किसी का शिकार ही कर सकता है, सिर्फ मन मसौसकर बैठे रहने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि फिलहाल उसके चारों ओर खतरा है और इस स्थिति में उसके सामने अपना अस्तित्व बनाए रखने की भी महान समस्या खड़ी हो गई है। .....और यहाँ यह भी एक कटुसत्य है कि उसकी इस स्थिति के लिए कोई और नहीं, बल्कि वह स्वयं ही दोषी है, विश्व में तीसरे नम्बर की महाशक्ति माने जाने वाले चीन को ऐसे दुर्दिन भी देखना पड़ेगें, वह भी स्वयं की गलतियों के कारण? ऐसी कल्पना तो चीन क्या किसी ने भी नहीं की होगी, इसीलिए आज उसके साथ पाकिस्तान व नेपाल के अलावा कोई नहीं खड़ा है, और नेपाल, पाकिस्तान भी अपने कथित स्वार्थो के कारण उसके साथ खड़े है, नेपाली प्रधानमंत्री को तो चीन का साथ देने के कारण अपने देश की नाराजी भी झेलना पड़ रही है। 
चीन के दुर्दिन कोरोना वॉयरस के जन्म के साथ ही शुरू हुए, चीन ने इस वॉयरस को पैदा कर अपने आप को विश्व के अन्य देशों से अलग-थलग होने को मजबूर कर दिया। आज इस महामारी ने विश्व का कोई भी देश अछूता नहीं छोड़ा है, पूरे विश्व में करोड़ों लोग इस महामारी के शिकार हुए और स्वर्ग सिधारे और यह क्रम अभी भी दूत गति से जारी है, चूंकि इस महामारी का इलाज अभी तक खोजा नहीं जा सका है, इसलिए विश्व की महाशक्तियाँ भी इस महामारी की चपेट में है। .....तो चीन की इस एक गलती को आज विश्व के 190 देश भुगतने को मजबूर है और ये सभी देश चीन के कट्टर दुश्मन बन गए है। अब हर देश चीन से उसकी इस गुस्ताखी का बदला लेने को उत्सुक है, फिर उसका माध्यम चाहे उसके डिजिटल एप्स बंद करना हो या चीन द्वारा निर्मित सामग्री का सामुहिक बहिष्कार हो।  
यह तो हुई कोरोना महामारी को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की नाराजी की चर्चा, अब यदि हम अपने देश की बात करें तो हमें तो दुनिया के चीन पीड़ित 190 देशों में सबसे अधिक भुगतना पड़ रहा है, चूंकि चीन हमारा पड़ौसी होकर पारम्परिक रूप से हमारा दुश्मन ही रहा है, भारत-चीन का सत्तर साल पुराना सीमा विवाद अभी तक भी सुलझ नहीं पाया है और इसी कारण करीब चार हजार किलोमीटर लम्बी सीमा हर समय अशान्त रहती है, पिछले छ: दशक से तो वह हमारा सबसे बड़ा ’सरदर्द बना हुआ, वह अपनी विस्तारवादी नीति छोड़ता नहीं है और हमारी सीमा के क्षेत्रों पर कब्जा जमाने की हरदम कोशिश करता रहता है, आज जब अमेरिका, रूस सहित विश्व के अन्य देशों के साथ हम भी कोरोना महामारी से जूझ रहे है ठीक इसी मौके का चीन लाभ उठाकर हमारी सीमा पर उत्पात मचाए हुए है, कभी वह हमारी सीमा रक्षक सेना की टुकड़ियों पर हमला करता है और हमारे सैनिकों की हत्या करता है तो कभी हमारी सीमा के अन्दर युद्ध की पूरी तैयारी के साथ आ जाता है, हमें भी मजबूरी में उसे उसी के लहजें में जवाब देना पड़ता है, किंतु अब जबकि विश्व के चीन विरोधी सभी छोटे-बड़े देश भारत के प्रति सहानुभूति दिखाने लगे है, अमेरिका व रूस जैसी महाशक्तिशाँ भी भारत के साथ खड़ी हो गई है, तब चीन कुछ नरम पड़ने का नाटक दिखाने को मजबूर हुआ है, उसके दिखावे को नाटक इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि चीन कभी भी किसी के प्रति भी विश्वसनीय नहीं रहा वह इसी तरह की नाटकबाजी/नौटंकी करता आ रहा है, 1962 में भी हमारी सीमा से आज जैसा ही पीछे हटने का नाटक किया था और उसके बाद पूरी तैयारी के साथ हमारे देश पर हमला किया था। 
.....किंतु 1962 और आज में अंतर यह है कि अब न तो हम 1962 जैसे रहे है और न वह ही। आज विश्व की सभी शक्तियाँ हमारे साथ खड़ी है और वे हर तरह की हमें सहायता करने को तत्पर है, जबकि 1962 में ऐसा नहीं था, फिर आज जिस तरह से चीन के 59 डिजिटल एप्स का हमने बहिष्कार करके चीन को करोड़ों-अरबों की आर्थिक क्षति पहुँचाई वैसा ही अमेरिका व अन्य देश भी करने जा रहे है, चीन तो सिर्फ हमारे ही कदमों से परेशान हो गया तो फिर विश्व के अन्य देश भी भारत जैसा ही सुलूक उसके साथ करेगें तो फिर चीन का क्या होगा यही सब सोचकर ड्रेगन ने गुर्राना व फुफकारना बंद किया है और अपने आपको समेटना शुरू किया है, पर हमें ही नहीं पूरे विश्व को यह याद रखना चाहिए कि यह भी उसका दिखावा या नाटक मात्र है, वह प्रतिशोध का संकल्प लेकर पीछे हट रहा है, उसका कोई भरोसा नहीं, वह कब परिस्थिति अपने अनुकूल देखकर फिर रौद्र रूप धारण कर ले, इसलिए हमें सतर्क रहना बेहद जरूरी है। 
(लेखक - ओमप्रकाश मेहता)

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