नई दिल्ली । कोरोना के बायोमेडिकल कचरे और मॉनसूनी बारिश के संगम से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए एमसीडी की तैयारी क्या है? इस पर नॉर्थ एमसीडी मेयर जय प्रकाश का कहना है कि पहले तो कंटेनमेंट जोन और कोविड वाले घरों से करीब 30-32 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता था लेकिन अब ये बढ़कर रोज का 40-60 मीट्रिक टन हो गया है। नॉर्थ एमसीडी के करीब 104 वार्ड से निकले कूड़े को नरेला के एनर्जी प्लांट में ले जाया जाता है। वहीं, ईस्ट दिल्ली एमसीडी के पूर्व स्टैंडिंग कमेटी चेयरमैन का कहना है इलाके के बायोमेडिकल वेस्ट को दयानंद अस्पताल में लाकर नष्ट करते हैं और इसके लिए एजेंसी की मदद ली जा रही है। लेकिन हकीकत ये है कि नॉर्थ दिल्ली में सफाई कर्मचारी जितने होने चाहिए उससे करीब 12 प्रतिशत कम हैं। ईस्ट एमसीडी में 20 प्रतिशत अधिक स्टाफ चाहिए तो साउथ दिल्ली में 5 प्रतिशत अधिक स्टाफ की जरूरत है।वेस्ट मैनेटमेंट के एक्सपर्ट का कहना है कि अगर बायोमेडिकल कूड़ा सामान्य कूड़े से मिल गया ऊपर से मॉनसूनी बारिश के मिलने से कोरोना का संक्रमण तो बढ़ ही सकता है साथ ही मलेरिया, चिकनगुनिया, डेंगू जैसी जल जनित बीमारियां भी फैलेंगी।
कोरोना संक्रमण के इलाज के दौरान अधिक मात्रा में पीपीई किट, ग्लव्स, मास्क ही पहले बायो मेडिकल वेस्ट के रूप में शामिल थे। जबकि कोविड अस्पताल से निकलने वाला खाना, फूड पैकेट्स, पानी की बोतल और सभी तरह के कूड़े को अब सरकार ने बायोमेडिकल वेस्ट की लिस्ट में शामिल कर दिया है। लिहाजा इसकी मात्रा हर राज्य में बढ़ गई है। गाजियाबाद की बात करें तो गाजियाबाद में 390 पर्सेंट बायोमेडिकल वेस्ट और 12 हजार किलो से ज्यादा कचरा जून के महीने में
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कोरोना में दिल्ली के लिए नई मुसीबत