नई दिल्ली । दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि अस्पताल में आने वाली गर्भवती महिलाओं को कोरोना की जांच करवाना जरूरी नहीं है। यह हलफनामा दिल्ली सरकार द्वारा मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया। जवाब में कहा गया कि केवल कोरोना के संदिग्ध मामलों का परीक्षण किया जाता है। हाई कोर्ट ने पिछली सुनवाई में सरकार से पूछा था कि यदि गर्भवती महिला में कोरोना वायरस के कोई लक्षण नहीं हों, तो डिलीवरी के लिए अस्पताल ले जाने पर उनका कोरोना टेस्ट करवाना जरूरी है या नहीं? डी एन पटेल व प्रतीक जालान की पीठ ने कहा था कि अगर कोरोना जांच जरूरी है तो सैंपल एकत्र करना और रिपोर्ट जारी करने का काम कम से कम समय में होना चाहिए। इस मामले पर कोर्ट में अगली सुनवाई की तारीख 15 जुलाई तय की थी। हलफनामे को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि वह मामले की निगरानी करने के लिए नहीं जा रही है क्योंकि सरकार ने साफ दिशा-निर्देश जारी कर दिया है। बेंच ने कहा कि टेस्ट के लिए पर्याप्त कदम उठाए गए हैं और कुछ मामलों में परीक्षण की भी आवश्यकता नहीं है इससे पहले इस मामले को लेकर हुई सुनवाई में कोर्ट ने जब दिल्ली सरकार के वकील से पूछा कि गर्भवती महिलाओं के कोविड-19 के टेस्ट के परिणाम आने में कितना वक्त लगता है तो वकील की तरफ से बताया गया कि इसमें 48 घंटे तक का वक्त लगता है। इस पर कोर्ट ने कहा कि क्या ये सैंपल लेने से लेकर टेस्ट के नतीजे आने का वक्त है इस पर दिल्ली सरकार के वकील के पास इसका कोई साफ-साफ जवाब नहीं था, जबकि याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि गर्भवती महिलाओं के कोविड-19 के टेस्ट के नतीजे आने में 5 से 6 दिन तक का वक्त लग रहा है।
रीजनल नार्थ
गर्भवती महिलाओं को कोरोना जांच की जरूरत नहीं