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(चिंतन-मनन) प्रयत्न में ऊब नहीं 

(चिंतन-मनन) प्रयत्न में ऊब नहीं 

संसार में गति के जो नियम हैं, परमात्मा में गति के ठीक उनसे उलटे नियम काम आते हैं और यहीं बड़ी मुश्किल हो जाती है।  
संसार में ऊबना बाद में आता है, प्रयत्न में ऊब नहीं आती। इसलिए संसार में लोग गति करते चले जाते हैं। पर परमात्मा में प्रयत्न में ऊब आती है और प्रयत्न पहले ही उबा देगा, तो आप रुक जाएंगे। कितने लोग हैं जो प्रभु की यात्रा शुरू भर करते हैं, पर कभी पूरी नहीं कर पाते। कितनी बार तय किया कि स्मरण कर लेंगे प्रभु का घड़ीभर! एकाध दिन, दो दिन। फिर ऊब गए। फिर छूट गया। कितने संकल्प, कितने निर्णय, धूल होकर पड़े हैं चारों तरफ! लोग कहते हैं कि ध्यान से कुछ हो सकेगा? मैं कहता हूं जरूर हो सकेगा। कठिनाई सिर्फ एक है, सातत्य! कितने दिन कर सकोगे? मुश्किल से कोई मिलता है, जो तीन महीने भी सतत कर पाता है। दस-पांच दिन बाद ऊब जाता है!  
आश्चर्य है कि मनुष्य जिंदगी भर अखबार पढ़कर नहीं ऊबता, रेडियो सुनकर नहीं ऊबता, फिल्म देखकर नहीं ऊबता, रोज वही बातें करके नहीं ऊबता। ध्यान करके क्यों ऊब जाता है? आखिर ध्यान में ऐसी क्या कठिनाई है! कठिनाई एक ही है कि संसार की यात्रा पर प्रयत्न नहीं उबाता, प्राप्ति उबाती है और परमात्मा की यात्रा पर प्रयत्न उबाता है, प्राप्ति कभी नहीं उबाती। जो पा लेता है, वह फिर कभी नहीं ऊबता। बुद्ध ज्ञान के बाद चालीस साल जिंदा थे। चालीस साल किसी ने एक बार उन्हें अपने ज्ञान से ऊबते हुए नहीं देखा। कोहनूर हीरा मिल जाता चालीस साल तो ऊब जाते। संसार का राज्य मिल जाता तो ऊब जाते। महावीर भी चालीस साल जिंदा रहे ज्ञान के बाद। निरंतर उसी ज्ञान में रमे रहे, कभी ऊबे नहीं! कभी चाहा नहीं कि कुछ और मिल जाए। परमात्मा की यात्रा पर प्राप्ति के बाद कोई ऊब नहीं है।  
इसलिए कृष्ण कहते हैं कि बिना ऊबे श्रम करना कर्त्तव्य है, करने योग्य है। अर्जुन कैसे माने और क्यों माने? अर्जुन तो जब प्रयास करेगा, तो ऊबेगा, थकेगा। कृष्ण कहते हैं, इसलिए धर्म में ट्रस्ट का, भरोसे का एक कीमती मूल्य है। श्रद्धा का अर्थ होता है, ट्रस्ट। उसका अर्थ होता है, कोई कह रहा है।  अर्जुन भलीभांति कृष्ण को जानता है। कृष्ण को भी विचलित नहीं देखा है। कृष्ण को उदास नहीं देखा है। कृष्ण की बांसुरी से कभी दुख का स्वर निकलते नहीं देखा है। कृष्ण सदा ताजे हैं।  
 

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