सबसे पहले हमें चिकित्सक के सम्बन्ध जानना चाहिए उसके बाद चिकित्सा व्यवसाय हैं या सेवा। हमारी चिकित्सा चार स्तम्भों पर आधारित हैं। पहला चिकित्सक दूसरा औषधि ३ उपस्थाता यानी परिचारक चौथा रोगी। इनमे चार चार गन होने से चिकित्सा १६ गुणों से युक्त होती हैं ,जिस प्रकार चन्द्रमा में १६ कलाएं होती हैं तभी वह पूर्ण माना जाता हैं उसी प्रकार चिकित्सा के चार स्तम्भों के चार चार गुणों के कारण सम्पूर्ण चिकित्सा मानी जाती हैं। यहाँ चिकित्सक और सेवा या व्यवसाय की चर्चा करना उचित होगा।
श्रुते पर्यवादात्त्वम बहुशो दृष्टकर्मता। दाक्ष्यं शौचमिति ज्ञेयं वैद्ये गुणचतुष्टय।। (चरक सूत्रस्थान ९/६ )
वैद्य या चिकित्सक या डॉक्टर के गुण --- १ शास्त्र का अच्छी प्रकार का ज्ञान रखना २ अनेक बार रोगी ,औषधि -प्रयोग का प्रत्यक्ष-द्रष्टा होना ३ दक्ष होना अर्थात समय के अनुसार युक्ति की कल्पना करने में चतुर होना ४ पवित्रता रखना ये चारों गुण डॉक्टर के उत्तम माने जाते हैं।
विद्या मतिः कर्म दृष्टिरभ्यासः सिद्धिराश्रयः। वैध्य्शब्दाभिनिष्पत्तिवालमेकै कमप्यतः ।।
१ चिकित्सा विज्ञानं का पूर्ण ज्ञान यानी अपने क्षेत्र की विशेषज्ञता २ मति-- निर्मल बुद्धि ३ कर्मदृष्टि --चिकित्सा कर्म को बार बार देखना ४कर्मों का अभ्यास ५ सिद्धि --चिकित्सा कार्य में सफलता के लिए सिद्धि का होना ६ आश्रय -- श्रेष्ठ गुरुजनों के अधीन रहना
इसके अलावा अधिक धन लाभ के लिए अन्य प्रकार के हाथकंडे करना।
इसके बाद चिकित्सा को सेवा माने या व्यवसाय --इस सम्बन्ध में आयुर्वेद शास्त्रों में यह भी उल्लेखित किया गया हैं की वैद्य ,डॉक्टर ,चिकित्सक को रोगी से पैसा नहीं लेना चाहिए। पहले वैद्य चिकित्सा करते थे और रोगी प्रसन्न होने पर मौसमी सामग्री अन्न उपहार में भेट करते थे। और जब चिकित्सक के यहाँ कोई कार्य जैसे शादी आदि में सभी लोग चिकित्सक को भेट देते थे। अर्थ का महत्व कम था सेवा भाव अधिक था। आजकल या पहले से चिकित्सा क्षेत्र का व्यवसायीकरण हुआ उससे रोगी का शोषण बहुत किया गया या जा रहा हैं ,उसका मूल कारण शिक्षा का महंगा होना ,दूसरा हॉस्पिटल निर्माण में और उसके साथ महंगे उपकरण ,पदस्थ चिकित्सक ,कर्मचारियों का वेतन और जब व्यवसाय हैं तो उससे मुनाफा निकालना। आजतक किसी भी आयुर्वेद चिकित्सक या वैद्य ने आत्महत्या नहीं की ,कारण वह अपनी सीमायें जानता हैं।
इसके अलावा नए चिकित्सक पहले दिन से ही अपनी पढाई की पूर्ती के लिए कटिबद्ध होते ,जबकि पहले सीखो और बाद में कमाओ। इस कारण योग्यता का अभाव ,प्रतिस्पर्धा और दिन रात पैसों की मृगतृष्णा के कारण तनाव में रहते हैं। एक बाद समझ में नहीं आ रही हैं ,इस समय मानलो कोविद १९ के कारण नित्य मरीज़ मर रहे हैं ,मरते हुए मरीज़ अपने साथ कुछ धन ,सोना चांदी जमीन ,जायदाद या कोई परिवार जन को अपने साथ ले जा रहे हैं तो बताओ। हर चीज़ सीमा ,मर्यादा में होना चाहिए। असीमित चाहत कभी पूरी नहीं होती। और समय से पहले और किस्मत से ज्यादा ना किसी को मिला हैं और न मिलेगा। आत्महत्या का कारण कार्य का अधिक भार के साथ अयोग्यता ,धन की मृगतृष्णा। यदि प्रतिस्पर्धा और धन की मृगतृष्णा सीमित कर संतोष धर्म को अपनाये तो समाधान मिल सकता हैं।
दुनियाभर में प्रति 1 लाख में से १० चिकित्सक हर साल आत्महत्या करते हैं। सामान्य लोगों की तुलना में चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोगों में आत्महत्या के प्रकरण 2 से 3 गुना अधिक देखने को मिलते हैं। ऐसा क्यों है ?
दिल्ली एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर ने 8 जुलाई को रात के समय हॉस्टल की छत से कूदकर आत्महत्या कर ली। बताया जा रहा है कि सायकाइट्री में एमडी कर रहे ये डॉक्टर अवसाद यानी डिप्रेशन से पीड़ित थे। ...
चिकित्सक और आत्महत्या
आपको जानकर हैरानी होगी कि चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े जितने भी लोग दुनियाभर में आत्महत्या करते हैं, उनमें सबसे अधिक संख्या साइकाइट्री /मनोरोग चिकित्सकों की होती है...
हर साल मनोरोग चिकित्सक आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या
इनमें से भी सायकाइट्री से जुड़े मेडिकल डॉक्टर्स में इस तरह की घटनाएं 5 से 6 गुना अधिक देखने को मिलती हैं।
सबसे पहले समझें व्यक्तित्व को
चिकित्सा क्षेत्र को ज्यादातर वही लोग अपने कॅरियर के रूप में चुनते हैं, जो एक व्यक्ति के तौर पर अधिक संवेदनशील और सहानुभूति रखने वाले होते हैं। यह एक अच्छा चिकित्सक होने के लिए एक नैसर्गिक गुण भी है। क्योंकि आप दूसरे की पीड़ा को दूर करने में भावनात्मक सहायता तभी कर सकते हैं, जब आप खुद उस दर्द की पीड़ा को समझते हों।
यह एक बड़ी वजह है कि डॉक्टर्स अपने मरीज़ों के साथ भावनात्मक रूप से बहुत अधिक जुड़ जाते हैं। खासतौर पर मनोरोग विभाग से जुड़े लोग। ये लोग अपने मरीजों के जीवन में भरी नकारात्मकता को दूर करने के प्रयासों में इतना अधिक संलंग हो जाते हैं कि इ स्वयं अपने आपको उन जैसा महसूस करने लगते हैं।
व्यवसाय की जरूरत ही दिक्कत बन जाती है
बतौर व्यवसायिक चिकिसकों का स्वभाव बहुत अधिक प्रतिस्पर्धात्मक और महत्वाकाक्षी होता है। वे अपने क्षेत्र में में अच्छे से अच्छा कौशल करना चाहते हैं। अगर इस महत्वाकांक्षी और कॉम्पटिशन के बीच किसी तरह की समस्याएं आती हैं तो उन पर मानसिक दबाव और अधिक बढ़ जाता है।
कार्य प्रणाली से जुड़ी कमियां और कार्यावधि अगर बहुत ज्यादा हों तब भी डॉक्टर्स में तनाव का स्तर बढ़ जाता है और यह भी डिप्रेशन का एक कारण बन जाता है।विशेषज्ञ के अनुसार, डिप्रेशन चाहे किसी भी कारण से इसकी एक मुख्य वजह तनाव यानी स्ट्रेस होता है। यह तनाव व्यवसायिक जीवन या व्यक्तिगत जीवन किसी से भी प्रभावित हो सकता है।
जब बढ़ जाता है डिप्रेशन का स्तर
स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि डिप्रेशन का कारण चाहे जो भी हो, आत्महत्या करनेवाले लोगों में डिप्रेशन इसकी एक बड़ी वजह होता है। यानी जो लोग आत्महत्या का कदम उठाते हैं वे लोग इस हद तक तनाव और नकारात्मकता में डूब चुके होते हैं कि खुद को खत्म कर लेना ही उन्हें एक मात्र रास्ता नजर आने लगता है।कभी कभी प्रेम में असफलता भी कारण बनता हैं।
एल्कोहॉलिज़म/शराब या नशा भी है एक कारण
-तनाव के शिकार डॉक्टर या अन्य व्यवसाय करने वाले आमतौर पर एल्कोहॉल की तरफ मुड़ जाते हैं और आत्महत्या के पीछे शराब का सेवन दूसरा सबसे बड़ा कारण है। आमतौर पर आत्महत्या जैसा कदम कभी भी कोई व्यक्ति किसी एक वजह से नहीं उठाता है, इसमें मनोविज्ञान से जुड़े कई अन्य पहलू भी शामिल होते हैं। वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक द्वारा यह परिक्षण किया गया है कि मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता ही चिकित्सा को लेकर थोड़े से लापरवाह होते हैं।
-उदाहरण के लिए हम लोग इस बात को इस तरह समझ सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता को परामर्श /सलाह के बारे में और इसके काम करने के तरीकों के बारे में सबकुछ बहुत बारीकी से पता होता है। ऐसे में बतौर व्यक्ति उनके लिए खुद किसी और से ऐसा ट्रीटमेंट लेना आसान नहीं होता है। यह भी डिप्रेशन बढ़ जाने की एक बड़ी वजह होती है।
एकदम गलत धारणा है यह
-आमतौर पर लोगों के बीच यह धारणा होती है कि जो खुद बीमार है वह दूसरों का इलाज कैसे कर सकता है! लेकिन इस बात को समझना बहुत जरूरी है मनोचिकित्सकों को इस तरह की समस्या होने का सबसे बड़ा कारण उनका अपने मरीज़ के साथ भावनात्मक जुड़ाव होकर चिकित्सा करना होता।
-यहां हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चिकित्सक भी स्वास्थ्य विशेषज्ञ होने से पहले एक इंसान होते हैं और मानव का लगातार नेगेटिव माहौल में रहने के कारण खुद नकारात्मक विचारों का शिकार हो जाना बहुत ही सामान्य घटना है। हालांकि इस तरह के केसेज का प्रतिशत बहुत कम है कि मनोवैज्ञानिक खुद ही डिप्रेशन का शिकार हो जाए।
रोकथाम कैसे की जा सकती है?
-जो लोग भी अपने विभाग में वरिष्ठ पदों पर होते हैं, उन्हें अपने जूनियर्स या सहयोगियों के बदलते व्यवहार की देख रेख करना चाहिए। इस आधार पर कि ये किसी मनोवैज्ञानिक या भावनात्मक समस्या से जूझ रहे हैं। अगर कोई सहकर्मी इस तरह के बदलाव की देखरेख करे तो उसे अपने साथी के साथ इस बारे में बात करनी चाहिए, उसे चिकित्सा के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। साथ ही इस चिकित्सा या समस्या से जुड़ी बातों को गोपनीय रखना चाहिए।
मनोविज्ञानिक शिक्षा की जरूरत
इसके साथ ही व्यवसायिक शिक्षा और स्कूल शिक्षा में मानसिक जागरूकता शिक्षा जुड़ा कुछ भाग अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। ताकि लोगों के बीच मानसिक सेहत और इससे जुड़ी समस्याओं को लेकर जागरूकता बढ़े।
विषय संवेदनशील हैं ,अनेक दृष्टिकोण होंगे पर सत्यता भी/ही हैं
जब तक वैद्य, डॉक्टर, चिकित्सक अपनी शपथ को नहीं अपनाएंगे।
तब तक शोषण की सीमा /मर्यादा निश्चित नहीं करेंगे
जब तक स्व में संतुष्टि नहीं होगी ,तब तक सुखी नहीं हो सकते ,
हॉस्पिटल में सी सी टी वी लगा रखी हैं ,पर खुद क्या बचा पाओगे ?
नित्य देखते मौतें फिर भी नहीं समझते क्या ले जाता हैं मरने वाला ,
इसीलिए तो फिर कहना पड़ता हैं हो यमराज के बड़े भाई।
डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन
वरिष्ठ आयुर्वेद परामर्शदाता
(लेखक - डॉ. अरविन्द प्रेमचंद जैन)
आर्टिकल
डॉक्टरों द्वारा आत्महत्या क्यों ?--चिकित्सा व्यवसाय हैं या सेवा !