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कहानी - प्रायश्चित 

कहानी - प्रायश्चित 

मन के क्रोध और क्षोभ को सीने में दबाए उमाशंकर जी अपने कमरे में बैठे स्वयं को संयत करने का भरसक प्रयत्न कर रहे थे । 6 महीने पहले बड़े बेटे सतीश की सड़क दुर्घटना में मृत्यु होने के बाद छोटा बेटा मनीष जिद करके उन्हें  विधवा भाभी और भतीजे के साथ शहर ले आया था ताकि वह अपने भाई के परिवार की जिम्मेदारी निभा सके ।अभी गांव से आए मुश्किल से 15 दिन भी नहीं हुए थे की छोटी बहू के इन विचारों को सुनकर उन्हें गहरा सदमा लगा था।
            वहीं दूसरे कमरे में उनकी बड़ी बहू विभावरी जिसने  कुछ दिनों पहले ही अपना सुहाग खोया था अपने 10 साल के बेटे राजू को कस के अपने सीने से चिपकाए  अपने मन के आवेग को आंखों के रास्ते बहा रही थी ।अभी कुछ ही देर पहले जब वह अपनी देवरानी मीना को चाय देने गई  तो वह अपनी सहेली से फोन पर कह रही थी ..अरे यार तुझे क्या बताऊं हमारी नई नई शादी है और प्राइवेसी नाम की कोई चीज नहीं है। ससुर जी के साथ  मेरी जेठानी को भी गांव से यहीं बुला लिया  है मनीष ने , उसका बस चले तो पूरा गांव ही बुला ले मैं अपनी लाइफ में कुछ इंज्वाय ही नहीं कर पा रही हूं ।उसपर सारा दिन भाभी मनीष के आगे पीछे  घूमती रहती हैंः मनीष ये खा लो मनीष  वो खा लो  जैसे मुझे तो कोई फिक्र ही नहीं है उसकी ।मुझे तो डर है वो मनीष पर डोरे ही ना डाल रही हो। तू ही कोई रास्ता बता ताकि मैंने उन्हे यहां से दफा कर सकूं ..इसके आगे विभावरी ना सुन सकी।  
       उसके हाथ पांव कांपने लगे  सारा बदन पसीने से तरबतर हो गया किसी तरह दीवार का सहारा लेकर  खुद को  संभाला और उल्टे पांव वापस  कमरे में आकर  रोने लगी  वह तो वैसे भी आना नहीं चाहती थी  पर मनीष की जिद के आगे इंकार ना कर सकी। किसी के आने की आहट सुनकर उसने जल्दी से आंसू पोछे और पलट कर देखा  तो सामने उमाशंकर जी खड़े थे।  उन्होंने भी शायद मीना की सारी बातें  सुन ली थी। वे जैसे ही मीना को कुछ कहने के लिए आगे बढ़े विभावरी ने हाथ जोड़कर इशारे से उन्हें रोक दिया वे । वे भी कुछ सोच कर चुपचाप अपने कमरे में चले गए ।नन्हे राजू की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि मां क्यों रो रही है.. बस उसे तो इतना पता था कि जब से पापा भगवान जी के पास गए तब से मां अक्सर रोती रहती है ।
      शाम को मनीष जब ऑफिस से आया तो उसने देखा बाबूजी और भाभी अपना सामान बांधे  कहीं जाने की तैयारी कर  रहे है उसने पूछा बाबूजी कहां जा रहे हैं आप ? उमाशंकर जी बोले बेटा मैं और बड़ी बहू गांव जा रहे हैं शायद यही ठीक होगा हम सबके लिए ..मनीष ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा पर क्यों बाबूजी... क्या बात हो गई.. भाभी आप ही कुछ बताइए ना.. हमसे कुछ गलती हो गई क्या.. विभावरी कुछ ना बोल सकी। उमाशंकर जी बोले कोई बात नहीं बेटा पर मुझे लगता है कि हमें उसी परिवेश की आदत है यहां मन नहीं लगता ।और बहू भी शायद वही ज्यादा सुकून से रह सकेगी वहां सतीश की यादें जो है। 
     मनीष के लाख पूछने पर भी उमाशंकर जी और विभावरी ने कुछ नहीं बताया ।  परंतु विभावरी की सूजी हुई आंखें देखकर उसे  इतना एहसास तो हो गया था कि कुछ बात तो हुई है। उसने मीना से पूछा तुमने कुछ कहा क्या उसने तुनककर कहा मैं क्यों कुछ कहूंगी मैंने तो उनसे कुछ भी नहीं कहा चाहो तो खुद ही पूछ लो। मनीष को कुछ समझ नहीं आ रहा था। परंतु जब उमाशंकर जी किसी भी तरह रुकने को तैयार नहीं हुए तो लाचार होकर मनीष  उन्हे स्टेशन छोड़ने के लिए चल दिया  ।जाते वक्त  मीना ने ससुर के पैर छूते हुए कहां जब कभी समय हो आप लोग आते रहिएगा ।वह मन ही मन बड़ी खुश थी कि उसे कुछ कहना भी ना पड़ा और उसका काम भी हो गया । 
          अगली सुबह जब मनीष ऑफिस के लिए तैयार होकर नाश्ता करने डाइनिंग टेबल पर बैठा तो मीना रसोई मे गुनगुनाते हुए मनीष के लिए नाश्ता बना रही थी । मनीष ने गौर किया बाबूजी और भाभी के जाने के बाद कल से मीना के चेहरे में अलग ही चमक थी  उसका फोन टेबल पर रखा था अनायास ही  मनीष ने मीना का फोन उठाकर चेक किया  और उस की सहेली से हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग खोली.. . . तो सन्न रह गया मोबाइल कांपते हुए हाथों से छिटक कर नीचे गिर गया उसे अभी भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि मीना की सोच इतनी छोटी हो सकती है। मीना रसोई से निकली तो  मनीष के चेहरे पर बेतहाशा गुस्से और  घृणा के भाव देखकर डर गई, तभी उसकी नजर नीचे गिरे हुए फोन पर पड़ी और वह समझ गई कि मनीष को सारी बात पता चल गई है। 
    वह अपनी सफाई में कुछ कहती उससे पहले ही मनीष ने  उसने कहा मीना तुमने भाभी का नहीं हमारे घर की देवी का अपमान किया है वह सिर्फ रिश्ते में हमारी भाभी थी हकीकत में तो हमारी मां  बनकर ही उन्होंने हमें पाला है । मां के गुजर जाने के बाद भैया की शादी जल्दी इसीलिए की गई थी क्योंकि घर में कोई औरत नहीं थी जो घर  संभाल सके। बाबूजी दूसरी शादी   कर के बच्चों के लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहते थे ।कुछ दिन उन्होंने खुद ही घर संभालने की कोशिश की  जब ना बन पड़ा तो उन्होंने 18 साल की उम्र में भैया की ही शादी करने का निश्चय किया। जब भाभी हमारे घर आई तो सिर्फ 16 साल की थी मैं और  दीदी बहुत छोटे थे। ऐसे मे खुद  बच्ची होते हुए भी वे हमारी मां बन गई थी और हम बच्चों की ही नहीं बाबूजी की भी मां बनकर ही उन्होंने हमेशा उनका  ख्याल रखा। जब भी वो बाबू जी को मीठा ना खाने और दवाइयां समय से लेने की ताकीद करती  तो बाबूजी भी हंस कर कहते अच्छा मेरी मां जैसा तू कहेगी मैं वैसा ही करूंगा ।तन मन से इस गृहस्ती और हम को संवारने में उन्होंने अपनी जिंदगी गुजार दी। कभी भी अपनी खुशियों के बारे में न सोचा , अगर उन्होंने भी सिर्फ अपने बारे में सोचा होता तो आज मैं कही मेहनत मजदूरी कर रहा होता । इस घर की खुशियां और रौनक उन्हीं की ममता और त्याग का प्रतिफल है ।और तुमने आज इतनी ओछी बात कह दी उनके लिए ,छिः ..जरूर भाभी ने तुम्हारी यह बातें सुन ली है, और मेरी स्वाभिमानी भाभी के लिए इससे बड़ा अपमान हो भी क्या सकता है आज से  ये घर सिर्फ तुम्हारा है मैं यहां नहीं रहूंगा ,और तुमने तो मुझे इस लायक भी नहीं छोड़ा कि मैं भाभी के पास जा सकू  आज तुमने मुझे सचमुच  अनाथ कर दिया। 
      इतना कहकर मनीष गाड़ी लेकर बाहर निकल गया मीना ने उसे रोकने की  बहुत कोशिश की  पर रोक ना सकी। मनीष सारा दिन इधर-उधर भटकता रहा ना तो उसकी बाबूजी के पास जाने की हिम्मत हो रही थी और ना ही घर वापस आने की इच्छा ।सारा दिन भटकने के बाद थक कर उसे फिर उसी मां का आंचल याद आने लगा जिसके साए में उसने अपनी मां की यादें भी भुला दी थी ।और उसने अपनी गाड़ी गांव की ओर घुमा दी ।
              इधर मीना मनीष के जाने के बाद अपने किए पर पछता रही थी ,उसे स्वयं  पर ग्लानि हो रही थी । आखिर वह इतनी छोटी बात सोच भी कैसे सकती है ..भाभी की महानता पर आज उसने कितना गन्दा कलंक लगा दिया ।फिर भी उन्होंने कुछ ना कहा.. उनकी महानता के समक्ष  वह स्वयं को बहुत तुच्छ महसूस कर रही थी ।
       और इस समय  सबसे अधिक तो उसे मनीष की चिंता हो रही थी उसने मनीष के सभी दोस्तों से  फोन करके उसके बारे में पूछा पर किसी को  कुछ पता नहीं था ।और मनीष का फोन भी बराबर स्विच ऑफ आ रहा था ।घबराहट से उसके प्राण निकले जा रहे थे अंत मे कोई रास्ता ना देख  उसने अपनी गाड़ी निकाली और गांव के लिए चल दी वहां पहुंची तो मनीष वहां भी नहीं था। जाते  ही उसने भाभी के पैर पकड़ लिये मुझे माफ कर दो भाभी मैंने बहुत बडा पाप किया है ।मेरा अपराध तो अक्षम्य है पर तुम तो  ममता की देवी हो मां ..प्लीज मुझे  माफ कर दो ,चाहो तो मुझे सजा दे लो पर मुझसे रूठो ना ...विभावरी ने मीना को उठाकर गले से लगा लिया और कहा चुप हो जा पगली रो मत अपनों से गलती हो जाए तो उन्हें छोड़ थोड़ी ना देते हैं । सच्चे प्रायश्चित के आंसू तो बड़े से बड़ा गुनाह धो देते हैं।
मीना ने  मनीष के बारे में सारी बात बताई जिसे सुनकर उमाशंकर जी और विभावरी बहुत परेशान हो गए संध्या का समय हो रहा था विभावरी ने भगवान के सामने दीपक जलाया  और आंचल पसार कर मनीष की सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने लगी ।अभी वह संध्या  पूजा करके उठी ही थी कि बाहर मनीष की गाड़ी आकर रुकी सभी दौड़ कर बाहर आ गए ।आते ही मनीष विभावरी के पैरों में  लिपट कर रोने लगा भाभी तुमने तो मां बन कर दिखा दिया पर मैं बेटा नहीं बन सका क्या अपने बेटे को उसकी इस हार के लिए क्षमा ना करोगी। विभावरी ने प्यार से उसे उठाया उसके सर पर हाथ फेरा ।मीना उसके लिए  पानी लेकर आई मीना को देखकर मनीष आपे से बाहर हो गया और कहा  तुम यहां क्या कर रही हो. इस घर में तुम्हारा कोई काम नहीं है तुम अपने घर में जाओ और अपनी फ्रीडम और  प्राइवेसी  के साथ रहो।  विभावरी ने मनीष को डांटा घर की बहू को ऐसे नहीं कहते बड़ों का बड़प्पन छोटो की गलतियां क्षमा करने में ही है ।उमाशंकर जी  ने भी मनीष को समझाया बेटा घर बनाना है  तो रिश्तो को संभालने में ही समझदारी है तोड़ने में नहीं  ,और गलती हमारी ही है छोटी बहू के आते ही हमने ही उसका परिचय इस घर की आत्मा से नहीं कराया तो वह उसके महत्व को कैसे समझ पाती।
सुबह मनीष और मीना ने उमाशंकर जी से कहा चलिए सब लोग घर चलते हैं विभावरी ने कहा नहीं मीना मैं तो यहीं रहूंगी इस घर के बिना तो  मेरा जी ही नहीं लगता है यहां के कोने कोने में तुम्हारे भैया की यादें हैं और मैं अपना बाकी जीवन  इन्हीं यादो के  साथ गुजारना चाहती हू ।और बाबूजी को भी शहर में बिल्कुल अच्छा नहीं लगता यहाँ उनके अपने हम उमर लोग हैं जिनके साथ इनका समय अच्छे से कट जाता है और वैसे भी हम लोग अकेले कहां है तुम दोनों तो आते ही रहोगे ना ।जब वे लोग किसी तरह चलने को तैयार नहीं हुए  तो मीना ने कहा भाभी कम से कम राजू को तो मेरे साथ भेज दीजिए अगर आप मनीष की मां बन सकती हूं तो क्या  मैं राजू की मां नहीं बन सकती.. विभावरी ने कहा क्यों नहीं बन सकती तुम उसकी मां हो पर मेरे बारे में सोचो यह भी चला जाएगा तो मैं किसके सहारे जिऊंगी उमाशंकर जी ने भी मीना और मनीष को समझाया कि यकीन मानो बेटा  हम सिर्फ तुम लोगों के संकोच में गए थे वहां हमारा दिल जरा भी ना लगता था  हमारी आत्मा इसी घर में बसी हुई है । रही राजू की बात तो अभी वह छोटा है उसके पढ़ने के लिए यहां बढ़िया स्कूल है ।और मनीष और सतीश भी तो यही से पढ़ लिखकर ही काबिल बने थे। जब राजू बड़ा हो जाएगा तब उसे तुम्हारे पास भेज देंगे और  । जरूरी तो यह है कि हमारे दिल एक रहें घर अलग होने से कोई फर्क नहीं पड़ता । मन में परिवार के एक होने की खुशी और अपनों से दूर जाने का दर्द लिए मीना और मनीष शहर के लिए वापस चल दिए और जाते-जाते  राजू से हर हफ्ते आने का वादा भी कर गए। विभावरी राजू को स्कूल भेजकर अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई, और उमाशंकर जी चौपाल की ओर चल दिए जहां उनके मित्र उनका इंतजार कर रहे थे।
(लेखिका-सोनिया सिंह)

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