श्री सम्प्रदाय के गुरु रामानंदाचार्य परंपरा के रामनंदी वैष्णव दर्शन को सुदृढ़ करने वाले गोस्वामी तुलसीदास एक कविए संतए समाज सुधारक और विचारक के रूप में आज भी दीप्तस्तंभ बने हुए हैं। भक्तिकाल सगुणधारा के प्रधान कवि तुलसी ने स्मार्त वैष्णव और विशिष्टद्वैतवादी दृष्टि से समाज को स्वस्थ्य और सुनियंत्रत बनाने के लिए राम के आदर्श चरित्र को रामलीला के माध्यम से जन.जन तक पहुंचाया। वैचारिक धरातल की कसौटी पर खरे उतरने की बजाय आज जब लोकतंत्र की बलि पर भोगवादी राजनीति अवसरवादी स्वरूप ले चुकी है ऐसे में तुलसी के वचन अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।
संग से जती कुमंत से राजाए मान से ग्यान पान ते लाजा
प्रीति प्रनय बिनु मद से गुनीए नासहि बेगि नीति अस सुनी
अर्थात विषयों के संग से सन्यासीए बुरी सलाह से राजाए अभिमान से ज्ञानए मदिरापान से लज्जाए नम्रता के बिना प्रीति और अहंकार से गुणवान शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। तुलसी का काव्य लोक कल्याण की चार पवित्र भावनाओं से प्रेरित है। भक्तिए सामाजिक आदर्शए धार्मिक समन्वयए दासता से मुक्ति। विश्रृंखलित समाज में व्याप्त धर्म के विकृति स्वरूप के निराकरण के लिए उनका काव्य महती भूमिका निभा रहा है। विदेशी दासता से मुक्ति के लिए जनता को संगठित शक्ति का संदेश सहित उस समय के विधर्मी अत्याचारोंए पन्थवाद और सामाजिक दोषों की आलोचना उनके कृतियों में मिलती है। उन्होंने भातृप्रेमए स्वराज के सिद्धांतए रामराज्य का आदर्शए अत्याचारों से बचने और शत्रु पर विजयी होने के उपाय जैसे राजनीतिक बातें उन प्रतिकूल परिस्थितियों में की जब कठोर दंड दिये जाते थे। लेकिन हमने उसे नहीं समझा। रामचरित मानस का राजनीतिक उद्देश्य सिद्ध नहीं होने की पीड़ा को उन्होंने इस प्रकार व्यक्त किया।
रामायण अनुहरत सिखए जग भई भारत रीतिए
तुलसी काठहिं को सुनैंए कलि कुचालि पर प्रीति।
शत्रु पक्ष से आये विभीषण जैसे शरणागत का विश्वास और धर्मपालन में सत्ता का परित्याग मौजूदा राजनीति को पोषित कर रही उन अतिभोगवादी तुच्छ स्वार्थों का दमन करती है जो पंण् दीनदयाल जी के सपनों का अंत्योदय है।
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारीए सोइ नृप अवसि नरक अधिकारी
औपनिवेशवद और बाजारवाद से प्रेरित फादर्सए मदर्सए फ्रेण्ड्स डे की तरह नाना प्रकार के विशेष दिवसो पर तुलसी की सूक्ष्म दृष्टि उनके काव्यों की ओर अभिमुख करती है। उन्होंने सुग्रीव। राम संवाद में जहां मित्र के प्रति कर्तव्यों और उसके लक्षणों को विस्तार से बताया है। वहीं शत्रु पक्ष के बालि और रावण वध के बाद उनकी शिक्षाओं को ग्रहण करने का आग्रह मौजूदा वैमनस्यता के निराकरण का माध्यम हो सकती है। नवधा भक्ति में उन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम की जिस धारणा जगत को ईश्वरमय दृष्टि दी उसने आज के विजित और विजेता को अभय प्रदान किया। प्रकृति की उनकी सम्यक दृष्टि देखिये।
उपजहि एक संग जग माहीए जलज जोंक जिमि गुण बिलगाहीए
सुधा सुरा सम साधु असाधूए जनक एक जग जलधि अगाधू।
सीय वियोगी राम सीता का पता पूछने को व्यक्त करने वाले तुलसी ने प्रकृति के चराचर जीव के बारे में कहा।
हे खग मृग हे मधुकर श्रेणीए तुम्ह देखी सीता मृगनयनी।
नारी कल्याण के प्रति तुलसी ने कहा है कि।
कत विधि सृजि नारि जग माहीए पराधीन सपनेह सुख नाही।
सती अनुसूइया द्वारा दी गई नारी शिक्षा के कृतृत्व ने सीता को वंदनीय बनाया। जिससे भारत में नारियों का सम्मान बढ़ा है। जैसे वृक्ष फल लगने और वर्षा के आने से बादल झुक जाते हैं वैसे ही मनुष्य के पास धन आने से उसमें नम्रता का वास हो जाना चाहिये। जो स्वयं परेशानी में रहकर वृक्ष की तरह ताप एवर्षा सहकर दूसरों को सुख देता है। भौतिक सुखों के बारे में उन्होंने उतनी कही कामना की सलाह दी है जितना सामथ्र्य हो। अभिनव बाल्मीकि और भक्त शिरोमण कहे जाने वाले तुलसीदास ने नरहरिदास को अपना गुरू माना। 2 वर्ष 3 माह 26 दिन में तैयार हुए श्रीरामचरितमानस विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 46वें स्थान पर है। इसके अलावा इन्होंने विनय पत्रिकाए दोहावलीए कवितावलीए जानकी मंगल जैसे 24 काव्यसंग्रह की रचना की। उनके जन्म के बारे में कहा गया है।
पन्द्रह सौ चैउन बिसे कालिंदी के तीर
श्रावन शुक्ला सप्तमीए तुलसी धरयौ शरीर।
इसे अनुसार उत्तरप्रदेश के राजापुर में सन 1490 में उनका जन्म हुआ। पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी के वात्सल्य से वंचिव रामबोला को गुरू नरहर्यानंद ने तुलसी नाम दिया। 1583 में 29 वर्ष की आयु में रत्नावली से उनका विवाह हुआ। तत्पश्चात शेषसनातन के सानिध्य में इन्होंने वेद.वेदांग का अध्ययन किया। स्वयं पर आशक्त होते देख पत्नी रत्नावली ने उन्हें धिक्कारते हुए कहा।
अस्थि चर्म मय देहमय ता में कैसी प्रीति
तैसी जो श्री धाम में होति न तब भय भीति।
अर्थात हाड़.मांसयुक्त इस नश्वर शरीर की अपेक्षा अविनाशी ईश्वर में इतनी लगन होती तो भवसागर से तर जाते। इस वचन ने तुलसी को ईशभक्ति में लीन कर दिया जिससने उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। उनके निधन के बारे में कहा जाता है।
सम्वत् सोलह से असीए असी गंग के तीर
श्रावण शुक्ला सप्तमीए तुलसी तज्यों शरीर।
देश को एक सूत्र में ग्रंथित करने का जो काम पहले जगत्गुरू शंकराचार्य ने किया वहीं अपने युग में और उसके पीछे भी गोस्वामी तुलसीदास करते रहे हैं। उनके कृतियों के विषय में किसी कवि ने कहा है। यश्य देवस्य काव्यं न मृणेति न जीर्यति। अर्थात् देवपुरुषों का काव्य तो देखिये जो न मरता है और न ही पुराना होता है।
(लेखक- राकेश कुमार वर्मा)
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