मानव की तेजी के साथ बढती जनसंख्या और सभ्यता के विकास के साथ ही उत्पन्न पर्यावरणी असंतुलन ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया हैं। इसमें से एक महत्वपूर्ण समस्या है बदलते परिवेश में अपनी जैविक क्षमता को परिश्क्रत न करपाने वाले प्राणियों का विलुप्त होते जाना ।मिथक बन चुके डायनासौर इसी के शिकार हुए थे। आज कृ+ित्रम -यांत्रिक डायनासौर को देखकर लोग रोमांचित होते है। डायनासौर ,डोडो पृथ्वी से विलुप्त हो चुके हैंऔर अनेक प्रजतियां इस और अग्रसर है। पृथ्वी पर पायी जाने वाली 8करोड प्राणी जातियों में से तकरीवन 14 लाख प्राणियों की पहचान की जा चुकी हैं।इनमें से 25 फीसदी प्रजातियां अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही है।
इन तथ्या sको ध्यान में रखकर संकटग्रस्त प्राणियों के सरक्षण की कोशिष विभिन्न स्तर पर की जा रही है इस दिशा में ब्राजील के जैव व़ैज्ञानिक ने एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है।वैज्ञानिको के द्वारा डी एन ए तकनीक का उपयोग कर संकटग्रस्त पक्षियों में प्रजनन शक्ति पैदा की गई है। इस तकनीक से पक्षी की संख्या में वृ,िद्व हुई है। अभी यह प्रयोग एक विशेष प्रकार के तोते स्पिक्स मकाव पर ही किया जा रहा है। प्रयोग की सफलता से यह विश्वास व्यक्त किया जाने लगा है कि अब किसी भी प्राणी को लुप्त होने से बचाना संभव हो सकेगा।
यधपि वन्य प्राणियों के विलुप्त होने का एक बडा कारण है इनका शिकार और खरीद -फरोख्त हालकि विश्व के अधिकाश देशों में वन्य प्राणियों के शिकार एवं खरीद-फरोख्त पर प्रतिवंध लगा हुआ है फिर भी विश्व बाजार में नशीली दवाओं और हथियारों के प्पश्चात वन्य प्राणियों का अवैध ब्यापार सबसे अधिक होता है। प्रतिवर्श 218 अरब रूप्ये के वन्य प्राणियों की खरीद-फरोख्त होती है। संकटग्रस्त वन्य प्राणियों में से एक स्पिक्स मकाव जो दक्षिण अमरीकी पक्षी है अपनी सुन्दरता के कारण लोगों के आकर्शण का केन्द्र होता है। बाजार में इसकी एक जोडी की कीमत दस लाख रूपये तक आसानी से मिल जाती है।इस पक्षी की सुन्दरता ने इसकी प्रजाति को विनाश के कगार पर ला खडा किया हैं और अब मात्र 32 स्पिक्स मकाव शेश बचे है।हालात यह है कि बाजार तो दूर जंगलो में भी स्पिक्स मकाव दिखाई देना बंद हो गया हैं। यह माना जाने लगा था कि स्पिक्स मकाव लुप्त हो चुका है। स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए ब्राजील की सरकार ने वैज्ञानिक ,निजी पक्षी प्रजनको और वन्य प्राणी संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं को मिलाकर एक समिति बनायी।
समिति ने डी एन ए फिंगरप्रिट पद्वति से इस विलुप्तप्राय पक्षी के बारे में अध्ययन की सिफारिश की ।अध्ययन के दौरान पता चला कि स्पिक्स मकाव भी तोतों में पायी जाने वाली तकरीवन 30 गंभीर बीमारियों से ग्रस्त थे। इन बीमारियों के कारण ही उनकी प्रजनन क्षमता क्षीण होती चली गई और पूरी प्रजाति विनाश के कगार पर पहुच गयी।
समिति ने इस विलुप्त प्राय पक्षी के इकलौते जोडे को खोजने के लिए अभियान शुरू किया इस अभियान में सबसे बडी बाधा अन्य पक्षियों की तरह मकाव के लिंग निर्धारण की समस्या थी ।इस समस्या के समाधान के लिए डी एन ए तकनीक को सर्वाधिक उपयुक्त माना गया और वैज्ञानिकों की एक टीम ने लगातार 15 माह तक कार्य कर आक्सफोर्ड विश्वविधालय में डी एन ए तकनीक को विकसित करने में सफलता हासिल की ं। डी एन ए तकनीक के अंतर्गत स्पिक्स मकाव के जंगल में गिरे हुए पंख से प्राप्त डी एन ए का षु,द्वीकरण फोरजेन मेमथ के डी एन ए की मदद से की गयी । स्पिक्स मकाव के डीएनए परीक्षण से पता चला । कवह नर था। ऐसा पहली बार हुआ जब किसी पक्षी का लिग निर्धारण उसके पंख से प्राप्त डी एन ए की मदद से सभव हो सका हो ।
डीएनए तकनीक के उपयोग से ही पक्षियों के लिग निर्धारण और फिर इससे मिलते जुलते अन्य पक्षियों से प्रजनन करवाने की कोशिष हो रही है।वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके लिए रक्त के उतक के प्रत्यारोपण या अन्य शल्यकर्म के द्वारा भी प्रजनन करवाया जा सकता है। इसके साथ ही अन्य संरक्षणात्मक कदम भी उठाए गए है जिसके बेहतर परिणाम सामने आए है।बाजील के संग्रह से मादा स्पिक्स मकाव को प्रादेशिक वनक्षेत्र में जैविक प्रशिक्षण के बाद छोडा गया थां ।तीन माह तक यह दिखाई नही दिया लेकिन कुछ दिन पहले ही दो स्पिक्स मकाव एक साथ दिखाई दिए ।अब तक इस जोडी को मकाव संरक्षण के लिए चलाए जा रहे अभियान के संचालनकर्ता मारकास डॉ रे ने ही देखा है।उन्हे भरोसा है कि प्रजनन काल तक इसकी संख्या में अवश्य इजाफा होगा और अगर एक बार पुन: स्पिक्स मकाव दक्षिण अमरीका में चहकने लगे तो ऐसे ही अभियानो के द्वारा अन्य संकटग्रस्त प्राणियों की रक्षा भी की जा सकेगी।
(लेखक- मुकेश तिवारी )
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