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 हमारा प्रयास है कि हमारी शिक्षा प्रणाली रोज़गार देने वाली होनी चाहिए: सीएम केजरीवाल

 हमारा प्रयास है कि हमारी शिक्षा प्रणाली रोज़गार देने वाली होनी चाहिए: सीएम केजरीवाल

नई दिल्ली । दिल्ली सरकार ने सरकारी स्कूलों के बच्चों को नौकरी तलाशने वाला नहीं, बल्कि नौकरी देने वाला बनाने के उद्देश्य से लाइव एंटरप्रिन्योर बातचीत की। लाइव कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एंटरप्रिन्योरशिप के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त अर्जुन मल्होत्रा के साथ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने हिस्सा लिया। साथ ही कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले स्कूलों के प्रधानाचार्य और छात्रों के सवालों का मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और अर्जुन मल्होत्रा ने जवाब दिया। दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने कहा कि हमारी शिक्षा प्रणाली में और भी सुधार की जरूरत है. हम बच्चों को उस दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं कि जब वे स्कूल से निकलें, तो नौकरी तलाशने वाले नहीं, बल्कि नौकरी देने वाले बनें। 
वहीं, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि कोई भी भाषा सीखना एक स्किल है, लेकिन मातृभाषा हिंदी गर्व करने वाली चीज है। हमें हिंदी बोलने में कभी शर्माना नहीं चाहिए। वहीं, मुख्य अतिथि अर्जुन मल्होत्रा ने कहा किसी भी सफल व्यक्ति के पीछे उसका वैल्यू सिस्टम है। यह वैल्यू सिस्टम ही है, जो उस व्यक्ति को अलग-अलग स्तर पर लेकर जाता है। लाइव एंटरप्रिन्योर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अर्जुन मल्होत्रा जी को आज के कार्यक्रम में बहुत-बहुत बधाई देना चाहता हूं। आप अपना बहुत ही कीमती समय निकाल कर हमारे बच्चों को अपनी यात्रा के बारे में बताने और उन्हें मोटिवेट करने के लिए आए हैं। 
सीएम केजरीवाल ने कहा कि मेरा यह पहला कार्यक्रम है। पिछले एक-डेढ़ साल से, जब से यह एंटरप्रिन्योरशिप माइंडसेट का कार्यक्रम शुरू हुआ, तब से कई सारे प्रतिष्ठित लोग बच्चों को संबोधित करने के लिए आए, लेकिन मैं पहली बार इस कार्यक्रम में भाग ले रहा हूं। मुझे जब पता चला कि अर्जुन मल्होत्रा जी आ रहे हैं, तो बहुत खुशी हुई। उनसे मेरे व्यक्तिगत संबंध भी हैं। हम दोनों एक ही काॅलेज से भी हैं। मल्होत्रा जी भी आईआईटी खड़गपुर से हैं और मै भी आईआईटी खड़गपुर से हूं। हमारा काॅलेज से भी एक रिश्ता है। मुझे गर्व है कि हमारे काॅलेज से निकले हुए अर्जुन मल्होत्रा जी ने बिजनेस और एंटरप्रिन्योरशिप की दुनिया में इतना नाम कमाया है और इतना अच्छा काम किया। 
सीएम केजरीवाल ने कहा कि हमारा विश्वास है कि हमारे देश के लोग बहुत ही बुद्धिमान हैं। हमारे देश के बच्चे बहुत बुद्धिमान हैं। दूसरी बात यह कि हमारे देश के लोगों में एंटरप्रिंन्योरशिप कूट-कूट कर भरी हुई है। एक रिक्शा वाला भी एंटरप्रिन्योर है, एक पान वाला भी एंटरपिन्योर है और हमारे देश के अंदर हर एक को धंधा करने आता है। लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली में कुछ न कुछ समस्या है। क्योंकि हमारी शिक्षा प्रणाली से जितना प्रोडक्ट निकलता है, वह बाहर निकलने के बाद सबसे पहले नौकरी ढूंढता है। हम इस माइंडसेट को बदलना चाहते हैं, ताकि हम अपने बच्चों को, जब वे स्कूल में होते हैं, उसी वक्त हम उनको उस दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं कि आपको स्कूल से निकलने के बाद नौकरी नहीं ढूंढनी है, बल्कि आपको स्कूल से निकलने के बाद कुछ न कुछ अपना काम करने को सोचना है। आपको नौकरी तलाशने वाला नहीं बनना है, बल्कि आपको नौकरी देने वाला बनना है। हम यह बच्चें के माइंडसेट में डालने चाहते हैं। दिल्ली के स्कूलों में हम अपने बच्चों को इंटरप्रेन्योरशिप की ट्रेनिंग दे रहे हैं ताकि हमारे बच्चे देश के इंटरप्रेन्योर बन सकें।  इसमें हम छोटे, मध्यम और बड़े बिजनेसमैन, सभी को बुलाते हैं और उनकी कहानियां जब बच्चे सुनते हैं, तो वे प्रेरित होते हैं। 
एक छात्र ने सवाल करते हुए कहा कि सरकारी स्कूलों में इंग्लिश में सुधार आया है, लेकिन हमारी मातृभाषा हिंदी है, उसके लिए भी कुछ होना चाहिए। हम देखते हैं कि जापान और चीन में उनकी मातृभाषा में उनका सारा काम होता है। क्या यहां पर भी ऐसा नहीं हो सकता है कि हमारा सारा काम हिंदी में हो, तो ज्यादा अच्छे से विकास हो सकता है?
सीएम केजरीवाल ने कहा कि आपकी बात बिल्कुल सही है कि अपनी मातृभाषा में सारा काम होना चाहिए। इसमें दो बातें हैं। एक, जो परिस्थिति है, उससे हम भाग नहीं सकते हैं। हमारे यहां पहले अंग्रेजों का राज था। देश से अंग्रेज चले गए, लेकिन अंग्रेजियट का सिस्टम और अंग्रेजी भाषा जारी रही। इसका हमारे देश के उपर काफी बड़ा प्रभाव पड़ा। अंग्रेजी भाषा को छोड़िए, हमारे देश के अंदर जो शिक्षा का सिस्टम है, वो भी हमने बदला नहीं है। 1830 में मैकाले ने जो सिस्टम बनाया था, आज तक वही चला आ रहा है। यह तो अर्जुन मल्होत्रा जी जैसे बहुत कम लोग हैं, जो सिस्टम से बाहर निकल कर अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं, अन्यथा हमारे देश के अंदर वो लोग जो सिस्टम बना कर गए थे, कि ऐसा सिस्टम बनाओ, जो क्र्लक पैदा करे। स्कूल से निकलने के बाद लोग नौकरियां ढूंढें, वही सिस्टम आज तक हमारे देश में चला आ रहा है। 
वही दूसरी बात, आज परिस्थितियां यह है कि जो बच्चा अंग्रेजी बोलता है और अंग्रेजी सीखता है, उसको अच्छी नौकरी मिलती है और उसका अच्छा भविष्य बनता है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसको अच्छा अवसर मिलता है। आज के हालात को देखते हुए हम इस सिस्टम को तुरंत बदले कि भारत सरकार और राज्य सरकारों में एकदम से हिंदी लागू हो जाए, तो ऐसा अभी नहीं हो सकता है। मैं समझता हूं कि अगर सभी मिल कर इस दिशा में प्रयास करेंगे, तो जरूर एक दिन ऐसा हो पाएगा। लेकिन आज की परिस्थिति ऐसी है कि अंग्रेजी सिस्टम भी है और अंग्रेजी भाषा के तौर पर चलती भी है। ज्यादातर पैरेंट्स से बात करें, तो सभी कहेंगे कि हमारे बच्चे अंग्रेजी सीखें, बोलें और आगे बढ़ें। फिलहाल तो यही सिस्टम है। लेकिन मैं जरूरत उम्मीद करता हूं कि एक दिन ऐसा आएगा कि जब सारा सिस्टम मातृभाषा हिंदी में काम करेगा। 
 

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