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कल घोषित हुई देश की नई शिक्षा नीति और महा सन्त आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज 

कल घोषित हुई देश की नई शिक्षा नीति और महा सन्त आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज 

केंद्र सरकार ने कल नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी इस शिक्षा नीति के अंतर्गत छात्रों को मनपसन्द विषय चुनने के कई विकल्प मिलेंगे।
पांचवी तक बच्चे मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा मे ही पढ़ेंगे तथा छटवी कक्षा से ही व्यवसायिक शिक्षा आरम्भ हो जाएगी।
क्या आप जानते है कि भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित के 9 सदस्यीय समिति एवम इस समिति के मुखिया  कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन, ने 21 दिसम्बर 2017 को डोंगरगढ़ में विराजित आचार्यश्री विद्यासागरजी महामुनिराज से नई शिक्षा नीति के विषय पर लगभग 53 मिनट चर्चा की थी।
देश के जानेमाने वैज्ञानिक व इसरो, बैंगलोर के पूर्व अध्यक्ष कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन, जो कि भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित देश की नौ सदस्यीय समिति के मुखिया थे आपके साथ प्रो. टीवी कट्टीमनी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय ट्राइबल केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति डॉ. विनय चंद्रा बी.के., नई शिक्षा नीति समिति के वरिष्ठ तकनीकी सलाहकार और इसरो मुख्यालय के सह निदेशक डॉ. पी.के. जैन उपस्थित थे।
आचार्यश्री एवम समिति के सभी सदस्यों के मध्य वार्तालाप के कुछ अंश
पद्मविभूषण डॉ. कस्तूरीरंगन ने आचार्यश्री से पूछा कैसी हो तीस साल के लिए नई शिक्षा नीति?
आचार्यश्रेष्ठ-  ऐसी नीति बनाइए कि शिक्षा उपभोग व विनिमय की वस्तु न हो। 53 मिनट की चर्चा में आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान शिक्षा नीति प्रासंगिकता खो चुकी है। शिक्षा धन से जुड़ गई है। आचार्यश्री ने कहा कि मैं भाषा के रूप में अंग्रेजी का विरोध नहीं करता हूं। इस भाषा को विश्व की अन्य भाषाओं के साथ ऐच्छिक रखा जाना चाहिए शिक्षा का माध्यम मातृभाषाएं ही हों।
अंग्रेजों ने भारत की परंपरा के साथ चालाकी करके ‘भारत’ को ‘इंडिया’ बना दिया। जबकि भारत के दो नाम नहीं हो सकते हैं।
भारत के साथ संस्कृति और इतिहास जुड़ा है। इंडिया ने हमारे भारत की भारतीयता, जीवन पद्धति, नैतिकता, रहन-सहन और खानपान सब कुछ छीन लिया है। अब शिक्षा भारतीय गणित, इतिहास, ज्ञान और परिवेश पर आधारित हो। प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषाओं में ही हो तथा एक सम्पूर्ण भाषा भारतीय भाषा ही हो। ऐसा होने से भारत की एकता मजबूत होगी। शिक्षा में शोधार्थी की रूचि किसमें है, इसकी स्वतंत्रता होनी चाहिए। 
आज मार्गदर्शक के अनुसार शोधार्थी शोध करता है। इससे मौलिकता नहीं उभर पा रही है। शिक्षा रोजगार पैदा करने वाली हो, बेरोजगारी बढ़ाने वाली नहीं हो। शिक्षा कोरी किताब नहीं हो। कौशल से जुड़ी हो। आज जब मैंने नई शिक्षा नीति के मुख्य अंश देखे तो मुझे आंखों के सामने आचार्यश्रेष्ठ की मनमोहक मुद्रा आ गई और मस्तक आप झुक गया। 
अब लोग कहते है कि... जग घुमिया तेरे जैसा न कोई...... तो इसमे क्या आश्चर्य !
शब्द भाव
(लेखक-राजेश जैन) 

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