भारत पर पिछले पचहत्तर महीनों से राज कर रही भारतीय जनता पार्टी की ‘नामनीति’ अब ‘रामनीति’ में परिवर्तित होने जा रही है, चूंकि इस सत्तारूढ़ दल में सब कुछ मोदी जी के ‘नाम’ पर ही होता आ रहा है और इसी ‘नामनीति’ के नाम पर ‘कामनीति’ भी तैयार की गई थी, वह अब ‘रामनीति’ में परिवर्तित होने जा रही है, क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के बाद अब मोदी जी के शेष कार्यकाल में ‘रामनीति’ पर ही राज चलने वाला है और मोदी जी के अगली 2024 में पुनः ताजपोशी भी इसी रामनीति के आधार पर होगी, अर्थात अब अयोध्या में राम मंदिर और मोदी जी की अगली सरकार का स्वर्णिम भवन दोनों एक साथ ही तैयार होगें और जैसा कि कहा जा रहा है कि भव्य मंदिर के निर्माण में तीन साल का समय लगेगा, तो यह भव्य राम मंदिर जुलाई-अगस्त 2023 तक पूरा हो पाएगा और इसके सिर्फ आठ महीने बाद अप्रैल-मई में लोकसभा के चुनाव सम्पन्न होना है, तो मोदी जी की अगली विजय का भी मुख्य आधार भी यह राम मंदिर ही होगा, अर्थात् यदि यह कहा जाए कि मंदिर के भूमिपूजन के साथ मोदी जी की सत्ता के तीसरे चरण का भी यह शिलान्यास हो रहा है, तो कतई गलत नहीं होगा। क्योंकि भाजपा अपना एक बरसों पुराना वादा इसी कार्यकाल में पूरा करने जा रही है, जो भाजपा के साथ देश के हिन्दुओं का भी सुनहरा सपना था।
देवता के शयनकाल के दौरान कराये जा रहे इस मांगलिक कार्य के बारे में जब प्रदेश के प्रकाण्ड विद्वान और ज्योतिषचार्य पण्डित आनन्द शंकर व्यास जी से पूछा गया तो उनका कहना था कि- हमारे धर्मशास्त्रों में सिर्फ आवास निर्माण ही भगवान के शयनकाल याने चतुर्मास में वर्जित नहीं है और चूंकि अयोध्या में राम मंदिर भगवान राम का आवास रहेगा, इसलिए इसके शिलान्यास को धर्म-विरूद्ध नहीं माना जा सकता, उन्होंने साथ ही यह भी जोड़ा कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने शिलान्यास की जो दो तिथियाँ तीन व पाँच अगस्त सुझाई है उनमें तीन अगस्त की तिथि इस पुनीत कार्य हेतु उचित नहीं है, क्योंकि उस दिन रक्षाबंधन याने श्रावणी पर्व है, जिसमें शिलान्यास वर्जित है, हाँ, इस कार्य हेतु पांच अगस्त की तिथि एकदम सही व उचित है। अतः प्रधानमंत्री जी को इस पुनीत व धर्म कार्य हेतु पांच अगस्त की तिथि तय करना चाहिए। ट्रस्ट का तो संकल्प है कि इस भव्य राम मंदिर का शिलान्यास और भगवान श्रीराम के मंदिर का लोकार्पण दोनों ही पुनीत कार्य श्री मोदी जी के करकमलों से ही सम्पन्न होंगे, इसलिए इसमें कोई आशंका नहीं है, मंदिर का निर्माण कार्य इसकी निर्धारित अवधि तीन साल में निश्चित रूप से पूरा हो जाएगा और संभव है 2023 में भगवान राम जन्म दिवस (रामनवमी) को इस मंदिर को आराध्य को सौंप दिया जाए?
यहाँ यह भी एक उल्लेखनीय तथ्य है कि राम जन्मभूमि विवाद सम्बंधी सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के नौ महीने बाद राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है, यहाँ भी नौ माह का विशेष महत्व है, क्योंकि विवाद के साथ ‘जन्म’ जो जुड़ा था?
जो भी हो, ‘‘होई है वही जो राम-रूचि राखा’’ अर्थात् जैसा राम चाहेगें वैसा ही होगा, फिर चाहे इसके लिए भगवान राम के ससुराल (नेपाल) वाले कितना ही शोर क्यों न मचा लें? क्योंकि रामजी का उनकी ससुराल (नेपाल) से नाता तो बाद में जुड़ा, पहले तो उनका जन्म हुआ यह सर्वज्ञात है, इसलिए जन्मभूमि प्रकरण में ससुराल का कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि त्रेतायुग व द्वापर युग दोनों ही पुण्य कालों में युगपुरूषों के अवतरण उत्तरप्रदेश की पुण्य भूमि पर हुए, यद्यपि त्रेतायुग के भगवान राम पुरातन है, कृष्ण का अवतरण तो भगवान राम के कई हजार वर्षों बाद हुआ, किंतु कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में उनके अनेक भव्य मंदिर बन गए और भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में अब भव्य मंदिर बनने जा रहा है, वह भी काफी विवादों के बाद। खैर, ‘‘देर आयत, दुरूस्त आयत’’ इसी में संतोष व प्रसन्नता है, इसीलिए कहा गया है- ‘‘जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये’’
जय श्रीराम......!
(लेखक-ओमप्रकाश मेहता)
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जय श्रीराम भाजपा की ‘नामनीति’ के बाद अब ‘रामनीति’....?