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कर्मयोगी का गीता चिन्तन  (तिलक जयन्ती 1 अगस्त) 

कर्मयोगी का गीता चिन्तन  (तिलक जयन्ती 1 अगस्त) 

कुछ जेलें बहुत प्रसिद्ध रही हैं। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध रही हैं  मण्डाले जेल, यरवदा जेल और अण्डमान की सेलुलर जेल। यरवदा जेल का महत्त्व महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी के निधन के कारण बढ़ गया। वैसे महात्मा गांधी भी इस जेल में कारावास की सजा काट चुके थे। अण्डमान की सेलुलर जेल सावरकर के कारण अधिक प्रसिद्ध हुई। मण्डाले जेल में बहादुर शाह जफर और लोकमान्य तिलक ने कारावास की सजा काटी । लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ एक अभूतपूर्व संस्मरण भी जुड़ा   है।  उन्होंने इस जेल को अमर बना दिया। उन्होंने इस जेल में रहकर गीता रहस्य नामक ग्रंथ की रचना कर इस जेल को इतिहास की किताबों में अमर कर दिया। जहां दूसरे लोग जेल में रहना दुर्भाग्य जनक मानते हैं वहां  तिलक ने इस कारावास का उपयोग एक अमर ग्रंथ की रचना में किया। यह कहा जाता हैैं कि यदि तिलक और कुछ भी नहीं करते तब 
यह ग्रंथ उनकी कीर्ति को अमर बनाने केलिए पर्याप्त था। वैसे बाल गंगा धर तिलक के मन में गीता पर लिखने का विचार पहले से था। मण्डाले  की सजा ने उनको यह स्वर्णिम अवसर दे दिया। 
मण्डाले  तत्कालीन बर्मा (अब म्यांमार) के उत्तर में बसा एक शहर है। भारतीय इतिहास में  बहादुर शाह जफर के कारावास के कारण यह पहले से जाना जाता है। तिलक के बाद भी अनेक स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को यहां तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने रखा था लेकिन मण्डाले को लोक मान्य तिलक ने गीता रहस्य लिख कर अभूतपूर्व प्रसिद्धि दी।मण्डाले में रहकर  लोक मान्य तिलक ने कुछ पुस्तकों के अध्ययन की अनुमति मांगी । तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने तिलक की इच्छा अनुसार पूने से कुछ ग्रंथ बुलाने की अनुमति दे दी। यदि अंग्रेज जानते कि तिलक एक महान ग्रंथ का प्रणयन करने वाले हैं तो शायद उनकी इच्छा पूरी नहीं  करते। यदि उन्हें यह मालूम होता कि तिलक अपने ग्रंथ में उनके धर्म को गीता  पर अपने अकाट्य तर्कों तथा तथ्यों के आधार पर बाद में बनाया गया  बतायेंगे और उनके धर्म के सिद्धांतों को गीता  से उधार लिया गया निरूपित करेंगे तो वे कभी उनकी इच्छा पूरी नहीं करते।गीता की बहिरंग परीक्षा अध्याय में लोकमान्य तिलक ने यह सिद्ध किया है कि बौद्ध धर्म से ईसाई धर्म में अनेक तत्व लिए गए हैं और ये तत्व बौद्ध धर्म में परम्परा से वैदिक धर्म से लिए गए हैं। तिलक का यह भी कहना था कि  ईसा जीवन के प्रारंभ में आयु के   12 वर्ष से लेकर 30 वर्ष तक कहां रहे  यह स्पष्ट नहीं है। यदि यह सिद्ध होता हैं कि ईसा ने यह समय भारत में गुजारा तो और कुछ सिद्ध होने की जरूरत नहीं रह जाती। यह गौरतलब है कि आधुनिक खोजों से ईसा के इस समय काश्मीर में रहने की बात सामने आई  है।
जैसा पहले लिखा  गया है तिलक के मन में बाल्यावस्था से गीता पर लिखने का विचार था। उनके कुछ 
व्याख्यान भी पूर्व में हुये थे। तिलक के मन में यह धारणा बहुत पहले से थी कि श्रीमद्भागव गीता में निवृत्ति नहीं प्रवृत्ति मार्ग का दिग्दर्शन किया गया है। तिलक का मत था कि कर्म कभी छूटते नहीं और उन्हें छोड़ना भी नहीं चाहिए। गीता में इसी विचार का प्रतिपादन किया गया है - कर्मेण्येव अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही समझाया है कि तुम्हें कर्म करने का अधिकार है इसलिए तुम अपने कर्म करो लेकिन फल की चिंता मत करो।  तिलक ने इसी सिद्धांत को अपने जीवन में उतार लिया।उनका दृढ़ विश्वास था कि गीता में ज्ञानमूलक भक्ति प्रधान कर्म योग का निरूपण किया गया है तथा अनेक प्राचीन टीकायें इस कारण अपूर्ण हैं।
तिलक ने खूब पढ़ा और और फिर लिखा। यह ग्रंथ गीता रहस्य इसका प्रमाण है। इसमें सभी मतों का विश्लेषण है और पुराने ग्रंथों का उद्धरण भी लिया गया है। उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के अतिरिक्त प्रचलित अन्य गीताओं का अध्ययन किया और यह सिद्ध किया कि अनुगीता तथा अन्य ग्रंथ बाद में रचित हैं। लोकमान्य तिलक का यह मत उल्लेखनीय है कि श्रीमद्भागवत गीता में प्रवृत्ति मार्ग की व्याख्या है न कि निवृत्ति मार्ग की ,अतः व्यक्ति को कर्म करना चाहिए। व्यक्ति को कर्मफल की आशा किये बिना अपना काम करना चाहिए तथा कर्म फल ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। तिलक ने  स्वयं भी इस सिद्धांत का अनुसरण किया।  उन्होंनेे गीता रहस्य के अतिरिक्त भी किताबें लिखीं।वास्तव में तिलक महान विद्वान थे। उनकी लिखी पुस्तक ओरियन में वैदिक युग के पूर्व के आर्यों का वर्णन है तो उनकी लिखी अन्य पुस्तक   आर्कटिक  एज इन वेदाज  में  इस सम्भावना का विश्लेषण है कि आर्यों का भारत आगमन आर्कटिक से हुआ था। लेकिन  उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि गीता रहस्य से मिली।
लोकमान्य तिलक ने उद्घोष किया कि स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है  और मैं इसे लेकर रहूंगा।स्वयं तिलक अपनी उद्घोषणा को अपने जीवन काल में पूरा होते नहीं देख सके लेकिन उन्होंने जिस मंत्र का बीजारोपण किया वह उनके देहावसान के बाद फलीभूत हुआ। उनके नारे स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूंगा को कांग्रेस ने तथा गांधी जी नेअंगीकार किया। वे कांग्रेस में गरम दल के माने जाते थे। उस समय लाल बाल पाल की तिकड़ी मशहूर थी। लाल का मतलब है लाला लाजपत राय , बाल अर्थात बाल  गंगा धर तिलक और पाल से विपिन चन्द्र पाल पाल। 
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक  गीता के मर्मज्ञ विद्वान और अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी तो थे ही , वे दूरदर्शी समाज सुधारक भी थे। उन्होंने गणेशोत्सव की  शुरुआत की।आज यदि महाराष्ट्र के बाहर भी गणेशोत्सव मनाया जाता है तो तिलक को इसका श्रेय जाता है। वे यह तथ्य समझ गये थे कि राष्ट्रीय भावना जागृति के बिना स्वराज्य की प्राप्ति सम्भव नहीं है। इसके लिए गणेश पूजा को उन्होंने सबसे अच्छा माध्यम समझा। तिलक सही थे। वे कुशल पत्रकार और शिक्षा शास्त्री  भी थे। उन्होंने जन जागरण के लिए केसरी और मराठा नामक दो पत्रों का सम्पादन और प्रकाशन भी किया तो विख्यात फर्ग्युसन कालेज की स्थापना में भी उनका योगदान रहा।  लोकमान्य तिलक का देहांत एक अगस्त को हुआ।यह विचित्र तथ्य है कि महात्मा
गांधी का असहयोग आंदोलन एक अगस्त को प्रारंभ होना था उसी रात को लोकमान्य तिलक का निधन हुआ। गांधी जी लोकमान्य तिलक के आकस्मिक निधन से बहुत दुखी हुए। उन्होंने कहा कि आज मेरी ढाल मुझसे छिन गई।
(लेखक- हर्षवर्धन पाठक )

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