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जैनआहार--- सात्विक भोजन - इम्युनिटी का भण्डार 

जैनआहार--- सात्विक भोजन - इम्युनिटी का भण्डार 

बहुत समय  से विश्व स्तर पर यह बहस चल रही हैं की मांसाहार ,शाकाहार कौन लाभप्रद और हानिकारक हैं ,तर्क अपने अपने हो सकते हैं पर सत्यता एक ही हैं। यदि हम आहार /भोजन/शाकाहार /मांसाहार शब्दों को समझने का प्रयास करेंगे तो आधी से अधिक भ्र्म अपने आप समाप्त हो जायेंगे।
 आहार--आरोग्य वर्धक और हानि रहित उसे आहार कहते हैं। भोजन -- भोग से जल्दी नष्ट होना उसे आहार कहते हैं। शाकाहार --- शांतिकारक और हानिरहित जो आहार,वह शाकाहार हैं। मांसाहार -- यानी जिससे मन और शरीर को हानि पहुंचे उसे मांसाहार कहते हैं।
 इस बात पर भी विशेष बल दिया जाता हैं की अंडा, माँस, मछली ,आदि में शरीर के आवश्यक घटक के लिए आवश्यक  हैं यह मिथ्या धारणा हैं ,दूसरा माँस आदि में यदि मसाला आदिका उपयोग न किया जाय तो आप खा नहीं सकते ,तीसरा मानव शरीर माँस आदि खाने के लिए नहीं बना हैं ,और जब आप बीमार होते हैं तब मांसाहार का उपयोग क्यों नहीं करते ?जबकि शाकाहार नैसर्गिक भोज्य हैं ,उसमे सभी प्रकार के घातक प्रचुरता से मिलते हैं ,,मानव शरीर की संरचना शाकाहार के लिए हैं और शीघ्र पाचक होने से शरीर और मन को शांति देते हैं। चूँकि यह विषय विवादित हैं ,तर्क तर्क अपने अपने हैं ,सत्य कटु और एक ही होता हैं।
 जिस प्रकार मानव में सात्विक ,तामसिक और राजसिक प्रकृतियाँ होती हैं उसी प्रकार आहार भी सात्विक राजसिक और तामसिक होते हैं। राजसिक भोजन में मिर्च मसाला तली चीज़े पूड़ी परांठा गरिष्ठ पदार्थ ,प्याज लहसुन का उपयोग  होता हैं जिस कारण मनुष्य में काम वासना ,आलस्य आदि अधिकता से होते हैं और पाचन क्रिया थोड़ी विलम्ब से होती हैं। तामसिक भोजन में अधिकतर माँस मछली अंडा के साथ गरिष्ठ पदार्थ और अधिक मात्रा में तेल ,मिर्च मसालों का उपयोग किया जाता हैं। जो आगे चलकर अनेकों रोगों  को आमंत्रित कर  अस्वस्थकर होता हैं।
एक बात जो सूक्ष्मता से देखने लायक हैं जब हम फल और सब्जी बाज़ार में जाते हैं तो उनकी सुंदरता हमें आकर्षित करती हैं जबकि माँस ,मछली अंडा और शराब विक्रय स्थल पर एक प्रकार कि अजीबोगरीब घुटन और विकर्षण होता हैं। जो इनको पसंद करते हैं उनको छोड़कर।
   सात्विक भोजन पचने में आसान, हल्का और ऊर्जा देने वाला होता है। सात्विक आहार शुद्ध, स्वच्छ और पौष्टिक होता है और इसीलिए सात्विक आहार अपनाने की सलाह अब कई आहार विशेषज्ञ और फिटनेस एक्सपर्ट्स भी देते हैं।
 हम जिस प्रकार का भोजन करते हैं, हमारी सेहत उसी प्रकार निखरती या बिगड़ती है।  क्रियाशील   जीवनशैली के साथ पौष्टिक  आहार  भी  स्वस्थ रहने में मदद करती है। इसीलिए, मौसमी फल, सब्ज़ियां, डेयरी और अनाज खाया जाता है। इसी तरह सात्विक भोजन करना भी सेहतमंद रहने का एक तरीका साबित हो सकता है। विशेषज्ञ और शोधकर्ता  के अनुसार सात्विक खाना खाने से इम्यून सिस्टम  मज़बूत बनता है। जिससे, शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। सबसे खास बात यह है कि सात्विक भोजन हर उम्र और हर मौसम में सेवन के लिए सही है।
सत्व अर्थात शुद्ध। सात्विक भोजन को माइक्रोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर माना जाता है।  ऐसे ऋषि-मुनियों का भोजन कहा जाता है। इन दिनों ऑर्गेनिक फूड्स का जो चलन हो उसकी जड़ें, सात्विक आहार से ही जु़ड़ी हैं। सात्विक आहार में केवल शाकाहारी चीज़ें इस्तेमाल होती हैं। इसमें, प्याज और लहसुन भी नहीं मिलाया जाता। दरअसल, इस तरीके से भोजन की मूल प्रॉपर्टीज़ या गुणों को सहेजने की कोशिश की जाती हैं। सात्विक भोजन कम मसाले वाला, सादा और शुद्ध होने के साथ  पचने में आसान और पेट के लिए हल्का महसूस होता है। ऋषि-मुनि ऐसा ही भोजन खाते थे और उसी से ऊर्जा प्राप्त करते थे। इसे, योगी डायट /जैन फ़ूड के नाम से भी जाना जाता है।आजकल जैन फ़ूड का चलन बहुत अधिक हो गया हैं। देश विदेश के साथ हवाई यात्रा में भी इसको प्रदान किया जाता हैं।
सात्विक फूड से गुस्सा, तनाव, उत्तेजना जैसी भावनाओं पर काबू पाया जा सकता है और यह शरीर से जहरीले पदार्थों को बाहर फेंकने (डिटॉक्स) का भी काम करता है। जिससे, आपके इम्यून सिस्टम सहित शरीर के अन्य ऑर्गन्स को भी काम करने में आसानी होती है। इस तरह आप हमेशा एनर्जेटिक महसूस करते हैं। सात्विक भोजन में कम मात्रा में खाने की सलाह भी दी जाती है। जिससे, खुराक कंट्रोल का काम होता है। इसी तरह, सात्विक भोजन आसानी से पच जाता है। यह पेट और मन को आराम पहुंचाता है। जिससे, डायजेशन से जुड़ी समस्याएं महसूस नहीं होतीं।
     इसके विपरीत राजसिक और तामसिक भोजन से उत्तेजना ,तनाव ,क्रोध ,गुस्सा ,झगड़ा आदि जल्दी होने कि संभावना होती हैं ,इस सम्बन्ध में जितने अधिक लड़ाई झगड़े मांसाहार भोजनालयों में होते हैं उसका कारण जब खाना खाते समय चाकू छुरी का उपयोग होता हैं और कोई विपरीत बात पैदा होने पर तुरंत झगड़ा करते हैं। इन स्थानों में शराब और शबाव का भी चलन होता हैं ,जबकि शाकाहार भोजनालयों में इस तरह का माहौल नहीं होता। वहां सात्विकता का वातावरण होता /रहता हैं।
 स्ट्रेस होता है कम, सात्विक भोजन खाने वालों को मन शांत रहता है। जिससे, उन्हें जल्दी तनाव महसूस नहीं होता।
उम्र होती है लम्बी रोगरहित ,जबकि मांसाहारियों को कैंसर और असाध्य रोगों कि बहुलता मिलती हैं।
हेल्दी हेयर और ग्लोइंग स्किन मिलती ह।
ब्लड प्रेशर कंट्रोल में होती है मदद।
डायबिटीज़ को कंट्रोल करने में सहाय।
थकान और सुस्ती दूर होती हैं ।
मानसिक्तता पर भी प्रभाव पड़ता हैं।
जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन ,
जैसा पियोगे पानी ,वैसी होगी वाणी।
विशेष -- वैसे खाना -पीना, पहनावा ,पूजन पद्धति ,धरम पालन व्यक्तिगत होता हैं इसमें किसी का कोई  अनाधिकार चेष्टा नहीं करना चाहिए पर वास्तविकता से परिचय कराना मौलिक कर्तव्य हैं।
(लेखक-डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )

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