मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर "शिक्षा मंत्रालय" कर दिया गया है।वही देश की "नई शिक्षा नीति" को केंद्रीय कैबिनेट ने स्वीकार किया है। कई दशकों से इस मंत्रालय को "मानव संसाधन विकास" कह कर विद्यालयों और विश्वविद्यालयों से ज्ञान प्राप्त करने वालों को मात्र "संसाधन" यानि 'मेटेरियल' माना जाता रहा है।
अब शिक्षा संस्थानों से पढ़े-लिखे "मजदूर" अर्थात संसाधन मात्र नहीं मिलेंगे,बल्कि अब "शिक्षा प्राप्त विद्वान" मिलेंगे।
व्यवसायिक व व्यवहारिक स्तर पर देशभर में हिंदी अपनाये जाने को लेकर सक्रिय साहित्यकार डॉ रमेश पोखरियाल 'निशंक' अब मंत्रालय का नाम बदलने से देश के शिक्षा मंत्री कहलाये जाएंगे। केंद्रीय शिक्षा मंत्री साहित्यकार डॉ निशंक के अतीत में झांके तो उन्हें भी बचपन मे गरीबी से संघर्ष करना पड़ा और किस तरह माता, पिता व गुरुजनो की सेवा करते हुए अभाव में भी खुश रहना उन्होंने सीखा, उसे आज तक भी वे नही भूल पाए है।भाई के साथ खेत से गाय के लिए चारा लाना,कच्चे घर मे गोबर से लेपन में मां की मदद करना,स्कूल में बैठने के लिए टाट पट्टी न होने के कारण बस्ते में बोरी का टुकड़ा लेकर जाना,सरवे की लकड़ी से कलम बनाकर उपयोग करना और घर मे प्रेस न होने के कारण खुद कपड़ो को धोकर तकिये के नीचे रखकर उनकी सलवटे कम करना जैसी बातो को याद कर आज भी उनकी आंखों में आंसू आ जाते है। एक माली की मामूली नोकरी करने वाले एक गरीब ब्राह्मण के इस बेटे ने भी शायद ही कभी सोचा हो कि वह विधायक, मंत्री,मुख्यमंत्री, सांसद से लेकर देश के शिक्षा मंत्री जैसे ओहदे तक पहुंचेगा ।इसे एक सुखद स्वप्न के पूरे होने का एहसास कहे तो गलत नही होगा। वास्तव में उनकी अथक राजनीतिक यात्रा और साथ मे उनकी साहित्यिक छवि ही उन्हें इस ओहदे तक लेकर आई है। डॉ निशंक बचपन से ही कविता और कहानियां लिखते रहे है। उनका पहला कविता संग्रह वर्ष 1983 में ‘समर्पण’ प्रकाशित हुआ। अब तक उनके 10 कविता संग्रह, 12 कहानी संग्रह, 10 उपन्यास, 2 पर्यटन ग्रन्थ, 6 बाल साहित्य, 2 व्यक्तित्व विकास सहित कुल 4 दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वे नियमित लेखन जारी रखे हुए है।
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ मौलिक रूप से साहित्यिक विधा के व्यक्ति हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य की तमाम विधाओं कविता, उपन्यास, खण्ड काव्य, लघु कहानी, यात्रा साहित्य आदि में प्रकाशित उनकी कृतियों ने उन्हें हिन्दी साहित्य में सम्मान दिलाया है।
उनके साहित्य को विश्व की कई भाषाओं जर्मन, अंग्रेजी, फ्रैंच, तेलुगु, मलयालम, मराठी आदि में अनूदित किया जा चुका है। इसके अलावा उनके साहित्य को मद्रास, चेन्नई तथा हैंबर्ग विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। उनके साहित्य पर श्यामधर तिवारी, डाॅ0 विनय डबराल, डाॅ0 नगेन्द्र, डाॅ0 सविता मोहन, डाॅ0 नन्द किशोर और डाॅ0 सुधाकर तिवारी शोध कार्य तथा पी.एचडी. तक हो चुके हैं।उन्होंने अब तक हिन्दी साहित्य की लगभग सभी विधाओं कविता, उपन्यास, खण्ड काव्य, लघु कहानी, यात्रा आदि में साहित्य सृजन किया है। राष्ट्रवाद की भावना के साथ लेखन कार्य करने से उनका नाम राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य के क्षेत्र में चर्चित है। तमाम व्यस्तताओं के बावजदू उनका लेखन आज भी निरन्तर जारी है। डॉ0 ‘निशंक’ के साहित्य की प्रासंगिकता ही है कि उनके साहित्य को विश्व की कई भाषाओं जर्मन, अंग्रेजी, फ्रैंच, तेलुगु, मलयालम, मराठी आदि में अनूदित किया जा चुका है।
इसके अलावा इनके साहित्य को मद्रास, चेन्नई तथा हैंबर्ग विश्वविद्यालय के पाठय्क्रम में भी शामिल किया गया है। उनके साहित्य पर अब तक शिक्षाविद् डॉ0 श्यामधर तिवारी, डॉ0 विनय डबराल, डॉ0 नगेन्द्र, डॉ0 सविता मोहन, डॉ0 नन्द किशोर और डॉ0 सुधाकर तिवारी आदि शोध कार्य तथा पी.एचड़ी रिपोर्ट लिख चुके हैं। डॉ0 ‘निशंक’ के साहित्य पर कई राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में शोध कार्य कराये जा रहे है।
डॉ निशंक के अब तक 10 कविता संग्रह, 12 कहानी संग्रह, 10 उपन्यास, 2 पर्यटन ग्रन्थ, 6 बाल साहित्य, 2 व्यक्तित्व विकास सहित कुल 4 दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।
एक साहित्यकार होते हुुुये वे अपने शिक्षा मंत्री पद के साथ कितना न्याय कर पाते है ,यह तो वे ही बेहतर बता सकते है। लेकिन उनकी साहित्य साधना से साहित्य जगत का मान जरूर बढ़ा है।वही उनके नेतृत्व में तैयार नई शिक्षा नीति कितनी प्रभावी होगी यह आने वाला समय ही बताएगा।(लेखक विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के अवैतनिक उपकुलसचिव है)
(लेखक-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )
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मानव संसाधन से शिक्षा मंत्री तक निशंक!