चम्बल एक्सप्रेस-वे के निर्माण की घोषणा ने सदियों से उपेक्षित, पिछड़े और घोर अभावों में जीने वाले चम्बल के सैकड़ों गाँवों के मन में आशा का संचार कर दिया है। इस परियोजना के अंतर्गत 8250 करोड़ रुपये की राशि से चम्बल के किनारे-किनारे राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य की सीमा पर जहाँ सामान्यतः बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता 404 किलोमीटर लम्बे राजमार्ग का निर्माण 2023 तक किया जाना है। यह एक्सप्रेस-वे राजस्थान के कोटा से प्रारंभ होकर मध्यप्रदेश के श्योपुर, मुरैना और भिंड जिले से होता हुआ उत्तर प्रदेश के इटावा के पास एन –एच 27 से जुड़ेगा जो कानपुर से कोटा के लिए वैकल्पिक मार्ग खोलेगा। इस राजमार्ग के बनने से राजस्थान मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश से सटे चम्बल के बीहड़ों में विकास की एक नई संभावना पैदा होने जारही है।
इस एक्सप्रेस-वे का सर्वाधिक क्षेत्र केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह जी तोमर के निर्वाचन क्षेत्र में आता है इसीलिये वे इस प्रोजेक्ट को लेकर व्यक्तिगत रूप से भी प्रयासरत हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी के लिए यह प्रोजेक्ट चम्बल क्षेत्र में सरकार के प्रति विश्वास जगाने का सुनहरा अवसर है। क्योंकि वर्तमान सरकार बनाने में इस क्षेत्र के विधायकों की बड़ी भूमिका है। माननीय मुख्यमंत्री जी ने इस एक्सप्रेस-वे को प्रोग्रेस-वे की संज्ञा दी है। यही नहीं उन्होंने कैविनेट मीटिंग में इसका प्रस्ताव भी पारित कर दिया है।
भारत की सुरक्षा में बड़ी संख्या में अपने बच्चों को भेजने वाले चम्बल अंचल के लिए कितने दुःख की बात है कि उसे आज भी डाकुओं के लिए ही उल्लेखित किया जाता है जबकि चम्बल बहुत पहले ही डाकुओं से मुक्त हो चुकी है। पीला सोना (सरसों) उपजाने वाली चम्बल को अभी तक विकास का उचित अवसर नहीं दिया गया। राजनीतिक रूप से पिछड़े होने के कारण यह क्षेत्र अभी भी विकास की मुख्य धारा से कटा हुआ है। मुरैना जिले की रतन बसई ग्राम पंचायत के चम्बल नदी के किनारे बसे हुए गाँव सुखध्यान का पुरा, इन्द्रजीत का पूरा, रामगढ़ आदि चौमासे (वर्षा के दिनों) में मुख्य मार्गों से पूरी तरह कट जाते हैं। यहाँ कृषि के अतिरिक्त जीविका का अन्य कोई साधन नहीं है और कृषि भी चम्बल पर निर्भर है। पिछले वर्ष आई बाड़ के कारण हुए दल-दल ने चुस्सलई गाँव जहाँ तक अब पक्का मार्ग बनगया है, तक कई किसानों के खेत छीन लिए थे। बेरोजगारी और निर्धनता के कारण धीरे-धीरे लोग गाँवों से पलायन करते जा रहे हैं। ऐसे में इस राजमार्ग ने पुनः एक आशा का दीप जलाया है किन्तु वह तभी कारगर होगा जब यहाँ उद्योग स्थापित हों व लोगों को स्व रोजगार के लिए भी प्रेरित और प्रशिक्षित किया जाए। चम्बल के बीहड़ों की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ मिट्टी के पहाड़ (टीले) हैं जिन्हें आसानी से समतल किया जा सकता है,जबकि अन्य जंगलों और बीहड़ों में पथरीली भूमि होने के कारण खुदाई में बहुत कठिनाई आती है।
इसके साथ-साथ चम्बल अंचल में ऊर्जावान युवकों की एक बड़ी संख्या है जो बेरोजगारी से जूझ रही है। यदि उद्योग-व्यापार को बढ़ावा दिया जाए तो यहाँ की लैंड पॉवर और मैंन पॉवर दोनों का ही सदुपयोग किया जा सकता है। चम्बल नदी की सहायक नदियाँ क्वारी,आसन आदि के किनारे भी भूमि का एक बड़ा भाग बीहड़ों के रूप में है। शासन की लापरवाही के कारण इन बीहड़ों के अधिकांश भाग पर अवैध कब्जे होते जा रहे हैं। ध्यान यह भी रखना होगा कि यदि सभी बीहड़ तोड़ कर भूमि समतल कर दी गई तो बाड़ के समय चम्बल का पानी इन गांवों को नष्ट कर देगा। इसीलिये चम्बल के किनारे दोनों ओर दो किलो मीटर भूमि के बीहड़ों को उनके प्राकृतिक रूप में रखते हुए वहाँ वृक्षा रोपण भी कराना चाहिए।
यद्यपि चम्बल को लेकर देश और प्रदेश की सरकारों ने अब तक उतना ध्यान नहीं दिया जितना दिया जाना चाहिए था। अशिक्षा और जागरूकता के अभाव में विकास की अधिकांश परियोजनाएँ घोषित हो कर रह जाती हैं या फाइलों में हीं समाप्त हो जाती हैं। आज से लगभग तीस वर्ष पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी जी ने पिनाहट उसैद घाट पुल का शिलान्यास किया था किन्तु अब तक पुल का निर्माण नहीं हो पाया है एक पीढ़ी इस पुल के निर्माण कार्य के आरम्भ होने बाट जोहते हुई ही चली गई। अनेक प्रयासों के बाद अब जाकर निर्माण कार्य आरंभ हुआ है। यदि उसैद घाट पुल 25-30 वर्ष पूर्व बन गया होता तो इस मार्ग पर अब तक अनेक व्यापारिक गतिविधियाँ प्रारंभ हो चुकी होतीं।
कहा जा रहा है कि इस उन्नत राजमार्ग के द्वारा चम्बल अंचल स्वर्ण चतुर्भुज गलियारे से क्रॉस कनेक्टिविटी में आ जाएगा। सुदूर अंचल में बसे गाँवों के लिए भी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि शहरों तक आने जाने का मार्ग सुगम हो जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस उन्नत राजमार्ग के बनने से चम्बल में विकास के एक नए युग का प्रारंभ होगा। किन्तु इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार और स्थानीय जिला प्रशासन को विशेष परिश्रम करना होगा । एक्सप्रेस-वे के आस-पास के गाँवों की श्रम शक्ति और भूमि के अध्ययन द्वारा समयानुकूल प्रोजेक्ट तैयार करने होंगे। चम्बल में अभी सरसों,गेहूँ,बाजरा,चना आदि ही मुख्य रूप से पैदा किये जाते हैं। यहाँ की भूमि के मृदा परीक्षण द्वारा जैविक एवं औषधीय कृषि की दिशा में कार्य किया जा सकता है। डेयरी उद्योग, फूड प्रोसेसिंग,पशुपालन व कृषि से जुड़े हुए प्रोजेक्ट्स आरम्भ करके भी इसे प्रोग्रेस-वे बनाया जा सकता है।
(लेखक- डॉ.रामकिशोर उपाध्याय)
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